Editorial: आईएमएफ के कोटे में ‘सम-आनुपातिक’ वृद्धि….कठिन चयन

IMF के कोटे की समीक्षा से तात्पर्य है आईएमएफ को और अधिक संसाधन प्रदान करना ताकि वह सदस्य देशों को अधिक ऋण प्रदान कर सके।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- October 27, 2023 | 8:18 PM IST

मोरक्को के मराकेश शहर में हाल ही में संपन्न हुई विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की बैठकों में इस बात को लेकर सहमति बनी कि आईएमएफ के कोटे में ‘सम-आनुपातिक’ वृद्धि की जानी चाहिए।

कोटे में वृद्धि का यह निष्कर्ष उसकी सोलहवीं समीक्षा से निकला। आईएमएफ के कोटे की समीक्षा से तात्पर्य है आईएमएफ को और अधिक संसाधन प्रदान करना ताकि वह सदस्य देशों को अधिक ऋण प्रदान कर सके। इस कोटे में इजाफे की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। इस प्रकार की कोटा समीक्षा में आमतौर पर सदस्य देशों द्वारा किए जाने वाले सहयोग में आपसी सहमति से किया गया इजाफा शामिल होता है।

कोटा अनुपात में पिछला संशोधन करीब 13 वर्ष पहले 2010 में किया गया था। ताजा समझौते के बाद देश की केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बयान में कहा, ‘यह एक तात्कालिक और अस्थायी हल था।’

उन्होंने कहा कि सापेक्षिक कोटों में बदलाव जारी रहेगा। यहां सापेक्षिक कोटे से तात्पर्य है आईएमएफ के मामलों में मतदान करने का अधिकार और संस्थान पर नियंत्रण कायम करना।

भारत वैश्विक बहुपक्षीय संस्थानों में सुधारों को लागू करने का मजबूत समर्थक है। वह चाहता है कि ऐसे संस्थानों पर कायम पारंपरिक पश्चिमी देशों के दबदबे के बीच इनमें विकासशील देशों की आवाज भी प्रमुखता से पहुंचे और सुनी जाए। परंतु इस बार भारत सरकार आईएमएफ के नियंत्रण ढांचे में बदलाव को लेकर बहुत उत्सुक नहीं नजर आई।

फिलहाल आईएमएफ पर पश्चिमी देशों का नियंत्रण

फिलहाल आईएमएफ पर पश्चिमी देशों का नियंत्रण बरकरार है। उसके अध्यक्ष की नियुक्ति भी वही करते हैं और मतों में उनकी भारी हिस्सेदारी है। 17 फीसदी योगदान करने वाले अमेरिका के पास भी एक वीटो है।

आर्थिक ढांचे और आकार के हिसाब से जिस देश का योगदान सबसे असंगत है वह है चीन। वह आईएमएफ के ढांचे में बदलाव के लिए जी जान से प्रयास कर रहा है। यह कहने की पर्याप्त वजह है कि इस संस्थान पर पश्चिमी नियंत्रण उसे पूर्वग्रह से ग्रस्त और गलत निर्णय लेने वाला संस्थान बनाता है।

उन देशों के लिए नियम बार-बार तोड़े जाते हैं जिन्हें यूरोपीय दायरे का सदस्य माना जाता है या जो अमेरिका अथवा यूरोपीय संघ के लिए भूराजनीतिक महत्त्व रखते हैं। उदाहरण के लिए यूरो जोन संकट के समय आईएमएफ ने सबसे बड़ा बेल आउट पैकेज ग्रीक सरकार को दिया था। उसे ऐसी शर्तों का पालन नहीं करना पड़ा था जिनका पालन अन्य विकासशील देश करते हैं।

ऐसा शायद इसलिए कि ग्रीस यूरोपीय संघ और यूरो जोन का सदस्य है या फिर शायद इसलिए कि अफ्रीका और एशिया के देशों को पश्चिमी देशों द्वारा नामित आईएमएफ प्रमुख अविश्वसनीय मानते हैं। अभी हाल ही में आईएमएफ के ऋण देने के नियमों में बदलाव किया गया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि युद्ध से जूझ रहे यूक्रेन को संस्थान से धन मिल सके। हालांकि इससे पहले ऐसे संकट से जूझ रहे किसी देश को मदद नहीं दी गई।

आईएमएफ पर पश्चिम का दबदबा जहां ऐसी अन्यायपूर्ण परिस्थितियां बना सकता है, वहीं चीन को अधिक अधिकार देने या वीटो देने वाला सुधार भी भारत की नजर में उतना ही खतरनाक है।

भारत के सामने यही दुविधा है कि वह बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार करके विकासशील देशों की बात मजबूती से रखवाना चाहता है लेकिन वह नहीं चाहता कि इस प्रक्रिया में उसका सामरिक प्रतिद्वंद्वी चीन मजबूत हो। इसका कोई हल नहीं है और यही वजह है कि भारत को अपना चयन टालना पड़ा और नेतृत्व पश्चिमी देशों के पास बना रहने दिया गया।

First Published : October 23, 2023 | 10:08 PM IST