इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के निर्माताओं ने इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक कचरे के पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) और निपटान के लिए न्यूनतम मूल्य निर्धारित करने वाले केंद्र सरकार के नवीनतम मसौदा दिशानिर्देशों के खिलाफ जो शिकायतें की हैं वे एक ऐसे क्षेत्र में अव्यावहारिक ढंग से नियम थोपे जाने की ओर संकेत करती हैं जिसे तत्काल अनौपचारिक क्षेत्र से संगठित क्षेत्र में बदलने की जरूरत है। उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिकी के निर्माताओं का आरोप है कि मसौदा दिशानिर्देश में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के समक्ष उनके प्रतिनिधित्व की अनदेखी कर दी गई है।
नियमों के कारण उस लागत में भारी इजाफा हुआ है जो उत्पादकों को रीसाइकल करने वालों को ई-कचरे को रीसाइकल करने की अच्छी खासी कीमत चुकानी पड़ती है। उदाहरण के लिए धातुओं को रीसाइकल करने की कीमत बढ़कर 80 रुपये प्रति किलो हो गई है जबकि उत्पादक अनुबंध के मुताबिक रीसाइकल करने वालों को प्रति किलो छह से 25 रुपये तक का भुगतान करते हैं।
उत्पादकों को इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय का समर्थन हासिल है और उसने अपना नजरिया हाल ही में सभी पक्षों की एक बैठक में प्रस्तुत किया। ये मसौदा नियम बताते हैं कि सरकार 2011 से ही ई-कचरे से जुड़ी प्रमुख दिक्कतों को निपटा पाने में नाकाम रही है। उसी साल ई-कचरा प्रबंधन के नियम बनाए गए थे।
भारत दक्षिण एशिया में दुनिया के सबसे अधिक ई-कचरा उत्पन्न करने वाले देशों में शामिल है और यह मोबाइल फोन, लैपटॉप, डेस्कटॉप और अन्य उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों से हर वर्ष 16 लाख टन कचरा उत्पन्न करता है। इसमें से करीब 67 फीसदी कचरा ऐसा होता है जिसमें लेड, कैडमियम, मर्करी, आर्सेनिक, एस्बेस्टॉस सहित तमाम नुकसानदायक तत्त्व शामिल होते हैं जो इस कचरे के साथ जमीन में मिल जाते हैं और न केवल आम लोगों बल्कि वनस्पतियों के लिए भी स्वास्थ्य तथा पर्यावरण संबंधी खतरे उत्पन्न करते हैं।
इस मसले का दूसरा पहलू यह है कि ई-कचरे को रीसाइकल करने का 90 फीसदी काम असंगठित क्षेत्र के लोगों द्वारा किया जाता है जो असुरक्षित हालात में अंजाम दिए जाते हैं और बच्चों से भी यह काम कराया जाता है। वर्ष 2016 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस समस्या को हल करने के लिए अधिक ढांचागत ई-कचरा प्रबंधन नियम प्रस्तुत किए जिन्होंने इस नियमों के दायरे में आने वाले उत्पादों की संख्या भी बढ़ाई और इनका निपटान करने वालों, विनिर्माताओं और रीसाइकल करने वालों की भूमिकाएं और कर्तव्य भी तय किए। उन्होंने विस्तारित उत्पादक जवाबदेही (ईपीआर) तय की जिसके तहत उत्पादकों को कहा गया कि वे ईपीआर के बदले अपने पूरी तरह उपयोग किए जा चुके उत्पाद वापस लें।
हालांकि इन नियमों के कारण संग्रहीत होने वाले ई-कचरे और उसके निपटान में काफी तेजी आई लेकिन उल्लंघन के लिए किसी दंडात्मक व्यवस्था के अभाव में यह आंकड़ा फिर भी कमजोर ही बना रहा। इन कमजोरियों को दूर करने की कोशिश में ई-कचरा प्रबंधन नियम 2022 ने इस कानून के तहत आने वाले उत्पादों के दायरे को विस्तृत किया और हर विनिर्माता और रीसाइकलर के लिए यह जरूरी किया कि वह केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा तैयार ऑनलाइन पोर्टल पर पंजीयन कराए।
नियमों के मुताबिक ऐसे इलेक्ट्रॉनिक कलपुर्जों के निर्माण को सीमित किया गया जिनमें लेड और मर्करी जैसे जहरीले पदार्थ अधिकतम तय सीमा से अधिक थे। ऐसे कई कानून हैं जो पर्यावरण संरक्षण पर केंद्रित हैं लेकिन उनका प्रवर्तन मुश्किल रहा है। इसके अलावा असंगठित क्षेत्र जिस कीमत पर काम करता हैवह भी संगठित क्षेत्र के कारोबारियों को इस बाजार में प्रवेश करने से हतोत्साहित करती है।
कुछ अनुमानों के अनुसार देश में ई-कचरे का उत्पादन सालाना 30 फीसदी की दर से बढ़ रहा है जबकि कुछ अन्य अनुमानों के मुताबिक समुचित रिसाइक्लिंग सुविधाएं विकसित करने के लिए जरूरी फंड के 20 फीसदी से भी कम का आवंटन किया जा रहा है।
ई-कचरे के निपटान और रीसाइक्लिंग को अधिक व्यवहार्य बनाने के सार्थक उपाय आने के बाद भी इस कारोबार की प्रकृति बदलती नहीं दिखती। यह देखते हुए कि इस क्षेत्र में 10 लाख से अधिक लोग काम करते हैं, सरकार को केवल कॉरपोरेट मुनाफे से इतर आजीविका के प्रश्न को भी ध्यान में रखना चाहिए।