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समझ से परे

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 4:10 AM IST

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने प्रसारकों को आदेश दिया है कि वे नए टैरिफ आदेश 2.0 (एनटीओ 2.0) को 10 अगस्त तक क्रियान्वित करें। इसके लिए न केवल समय का गलत चयन किया गया है बल्कि यह दर्शाता है कि प्रतिस्पर्धी बाजार संचालन को लेकर इसमें बुनियादी समझ का भी अभाव है। आदेश में चैनलों द्वारा वसूले जाने वाले शुल्क पर ऐसे प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है जिनके कारण प्रसारण उद्योग पर यह खतरा उत्पन्न हो जाएगा कि वह उपभोक्ताओं से हासिल होने वाले शुल्क के बजाय विज्ञापन राजस्व पर असंगत ढंग से निर्भर हो जाए। एनटीओ 2.0 ने चैनलों द्वारा वसूले जाने वाले शुल्क को 12 रुपये तक सीमित करते हुए कह दिया है कि इससे अधिक शुल्क वसूलने वाला कोई भी चैनल संबंधित समूह का हिस्सा न बन सकेगा। उसने यह भी कहा है कि एक समूह में शामिल चैनलों का अलग-अलग चयन किए जाने पर उनका मूल्य भी पूरे समूह के मूल्य से डेढ़ गुना से अधिक नहीं होना चाहिए।
नई व्यवस्था जहां ग्राहकों के लिए सस्ती हो सकती है, वहीं यह प्रसारकों के लिए कीमतों के लचीलेपन की व्यवस्था को खत्म करती है। जबकि प्रसारक आमतौर पर अपने कर राजस्व का करीब 93 प्रतिशत ऐसे ही समूहों से हासिल करते हैं। कोविड-19 के आगमन के पहले ही आर्थिक मंदी असर दिखाने लगी थी और प्रसारण उद्योग इससे अछूता नहीं था। बीते एक वर्ष में करीब 15 चैनल बंद होने के कारण हजारों लोगों को रोजगार गंवाना पड़ा। एनटीओ 2.0 के प्रवर्तन के बाद कई अन्य चैनल उसी गति को प्राप्त हो सकते हैं। चार चैनलों ने पहले ही घोषणा कर दी है कि वे आने वाले दिनों में सेवाएं बंद करेंगे। प्रसारक पहले ही कह चुके हैं कि लोकप्रिय चैनलों की शुल्क दर सीमित करने से उन्हें छोटे चैनलों की शुल्क दर में इजाफा करना होगा। विडंबना यह है कि इस आदेश से जहां उपभोक्ताओं के केबल या डीटीएच बिल में कमी आनी थी वहीं उसके प्रतिकूल यह लंबी अवधि में उनके हितों के विपरीत साबित होगा।
बुनियादी बाजार अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों के अलावा ट्राई के आदेश के समय पर भी सवाल उठ रहे हैं। पहली बात, यह ऐसे समय में हो रहा है जब प्रसारकों के विज्ञापन राजस्व में कमी आ रही है क्योंकि कोविड-19 महामारी ने काफी उथलपुथल मचा रखी है। दूसरा, मामला अभी न्यायालय के अधीन है। मूल रूप से इस वर्ष जनवरी में अधिसूचित एनटीओ 2.0 को इसलिए स्थगित करना पड़ा था क्येांकि कुछ प्रसारक यह कहते हुए बंबई उच्च न्यायालय चले गए थे कि आदेश में मूल्य नियंत्रण की बात शामिल है। हालांकि अदालत ने लिखित रूप से इसके क्रियान्वयन पर रोक नहीं लगाई लेकिन उसने मौखिक रूप से दोनों पक्षों से कहा कि आदेश पारित होने तक आगे पेशकदमी न की जाए। ट्राई ने न्यायालय के समक्ष इस बात पर सहमति जताई कि वह आगे कदम नहीं उठाएगा। मई में सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने प्रसारकों को आश्वस्त किया कि नियामक इस अनौपचारिक स्थगन आदेश का मान रखेगा। नियामक ने हाल ही में अदालत से जल्द निर्णय देने का अनुरोध भी किया।
ऐसे में यह स्पष्ट नहीं कि नियामक ने न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा क्यों नहीं की। ट्राई का कहना है कि आदेश को इसलिए लागू किया गया ताकि इस क्षेत्र की व्यवस्थित वृद्धि को बढ़ावा दिया जा सके और सेवा प्रदाताओं तथा उपभोक्ताओं के हितों में संतुलन कायम किया जा सके। चूंकि उक्त बातें सात महीने पुरानी हैं इसलिए समझना मुश्किल है कि ट्राई महामारी का प्रभाव खत्म होने की प्रतीक्षा क्यों नहीं कर सका। प्रसारण उद्योग पर नियामक के इस कदम का असर जल्द सामने आ सकता है।

First Published : July 28, 2020 | 11:29 PM IST