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बैंकिंग : बीता कल, आज और आने वाला कल

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 9:16 AM IST

वर्ष 2021 में आगे बढऩे से पहले हम पीछे मुड़कर यह देखते हैं कि इस शताब्दी के पहले दो दशक के दौरान भारत में बैंकिंग का विकास कैसा रहा है और आगे क्या उम्मीद की जाए। पहले दो दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि और महंगाई के स्तर से संदर्भ तय होना चाहिए। स्थिर कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पहले दशक में 6.28 फीसदी और दूसरे दशक में 6.66 फीसदी सालाना औसत दर से बढ़ा है। पहले दशक में औसत महंगाई 5.4 फीसदी थी, जो दूसरे दशक में बढ़कर 6.30 फीसदी पर पहुंच गई। भारतीय रिजर्व बैंक ने पहले दशक में अपनी दरों के फैसलों के लिए थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई को अपनाया। लेकिन जनवरी 2012 से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक या खुदरा महंगाई पर ध्यान दिया जाने लगा। मैं आकलनों के लिए कैलेंडर वर्ष का इस्तेमाल कर रहा हूं। अंतिम तिमाही के जीडीपी को शामिल नहीं किया गया है।
दिसंबर 2000 मे बैंकिंग प्रणाली की जमा राशि करीब 9.33 लाख करोड़ रुपये थी। इस समय कम से कम छह बैंकों का कुल जमा में बड़ा हिस्सा है। इस मामले में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) सबसे आगे है। दिसंबर 2010 तक उद्योग की जमाएं पांच गुना बढ़कर 48 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गईं। पिछले दशक के अंत तक यह बढ़कर 144.8 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच चुकी थीं, लेकिन वृद्धि दर में गिरावट आई है।
बैंकिंग प्रणाली के ऋण दिसंबर 2000 तक 4.98 लाख करोड़ रुपये थे, जो दिसंबर 2020 में बढ़कर 36.4 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गए। अब यह 105 लाख करोड़ रुपये से मामूली अधिक है। सदी के पहले दशक में बैंक जमाओं की चक्रवृद्धि सालाना वृद्धि दर 17.8 फीसदी थी, जो पिछले दशक में लुढ़ककर 11.7 फीसदी पर आ गई। इस अवधि के दौरान बैंक ऋण में गिरावट 22 फीसदी से फिसलकर 11.2 फीसदी पर आ गई।
ऐसा क्यों हुआ? फंसे ऋण (एनपीए) में लगातार बढ़ोतरी से। जब फंसे ऋण बढ़ते हैं तो बैंकों को इसके लिए अलग से धनराशि रखनी पड़ती है, जिससे उनकी पूंजी घटती है। अगर उनके पास पूंजी नहीं है तो वे ऋण नहीं दे सकते हैं। आरबीआई ने अधिक फंसे ऋण और अपर्याप्त पूंजी के कारण पिछले दशक में 11 बैंकों के नए ऋण देने पर रोक लगा दी थी। बैंकिंग प्रणाली का सकल एनपीए वित्त वर्ष 1994 में 19.5 फीसदी था, जो वर्ष 2001 में घटकर 11.4 फीसदी पर आ गया। वर्ष 2006 तक यह घटकर 3.3 फीसदी रह गया और अगले चार वर्षों यानी पहले दशक के अंत तक यह 2.2 फीसदी से 2.5 फीसदी के बीच बना रहा। लेकिन वर्ष 2013 तक एनपीए तीन फीसदी से आगे निकल गया और आरबीआई के 2015 में आस्ति गुणवत्ता समीक्षा करने के बाद वर्ष 2018 में 11.2 फीसदी पर पहुंच गया। आरबीआई की इस समीक्षा से बैंकों को अपने ऋण खातों को साफ-सुथरा बनाना पड़ा। वर्ष 2020 तक सकल एनपीए घटकर 8.5 फीसदी पर आ गया।  
प्रावधान के बाद शुद्ध एनपीए की वक्र रेखा समान है। शुद्ध एनपीए वर्ष 1995 में 10.7 फीसदी था, जो वर्ष 2001 में गिरकर 6.2 फीसदी पर आ गया। वर्ष 2006 से 2010 के बीच यह लगभग एक फीसदी रहा। इसके बाद वर्ष 2014 में बढ़कर दो फीसदी और वर्ष 2018 तक छह फीसदी हो गया। उद्योग के लिए तीन फीसदी शुद्ध एनपीए के साथ दशक समाप्त हुआ। आरबीआई की नीतिगत दर और बाजार दरों की दिशा कैसी रही? वहीं नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) का स्तर क्या रहा? सीआरआर वर्ष 2001 में 8.25 फीसदी था। यह वर्ष 2003 में घटकर 4.5 फीसदी हो गया। मगर आरबीआई ने ओवरहीट बैंकिंग बाजार को नियंत्रित करने के लिए अगस्त, 2008 में सीआरआर बढ़ाकर 8.5 फीसदी कर दिया। लीमन ब्रदर्स होल्डिंग्स इंक के दिवालिया होने के बाद सीआरआर फिर से घटने लगा। यह इस समय तीन फीसदी है, जो उसका अब तक का सबसे निचला स्तर है। रीपो दर वर्ष 2001 में नौ फीसदी थी, जो वर्ष 2009 में 4.75 फीसदी तक गिरने के बाद पहले दशक के अंत में 6.25 फीसदी रही।  यह इस समय चार फीसदी के रिकॉर्ड निचले स्तर पर है।
बाजार दरों में दूसरे दशक के दौरान पहले दशक की तुलना में ज्यादा उतार-चढ़ाव रहा है। 91 दिन के ट्रेजरी बिल पर प्रतिफल पहले दशक में 3.15 फीसदी (सितंबर 2009) से 9.36 फीसदी (जुलाई 2008) के बीच रहा है। इसकी तुलना में दूसरे दशक में प्रतिफल 2.93 फीसदी (नवंबर 2020) से 12.02 फीसदी (अगस्त 2013) के बीच रहा। लंबी अवधि के प्रतिफल में पहले दशक के दौरान ज्यादा उतार-चढ़ाव रहा। 10 साल के ट्रेजरी बिलों पर प्रतिफल जनवरी 2001 में 10.91 फीसदी था, जो अक्टूबर 2003 में रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया। पिछले दशक में इसका सबसे निचला स्तर मई 2020 में (5.72 फीसदी) और सबसे ऊंचा स्तर (9.47 फीसदी) अगस्त 2013 में रहा।
 जून 2000 में 65,340 बैंक शाखाएं थीं। यह आंकड़ा 2010 तक बढ़कर 92,335 और फिर 1,58,262 पर पहुंच गया। मार्च 2011 और मार्च 2020 के बीच एटीएम नेटवर्क 99,523 से बढ़कर 1,08,818 पर पहुंच गया।
पहले दशक की तरह दूसरे दशक में भी दो नए यूनिवर्सल बैंकों का जन्म हुआ। बैंकिंग क्षेत्र में दो तरह के नए बैंक- लघु वित्त बैंक और भुगतान बैंक आए हैं। हमारे यहां लगातार अत्यधिक नियंत्रित वित्तीय प्रणाली बनी हुई है, लेकिन प्रधानमंत्री जन धन योजना की बदौलत बैंकों की पहुंच में अहम बढ़ोतरी हुई है। प्रधानमंत्री जन धन योजना विश्व की सबसे महत्त्वाकांक्षी वित्तीय समावेशन पहल है, जिसे अगस्त 2014 में शुरू किया गया था। दिसंबर 2020 के मध्य तक इस योजना के तहत 41.2 करोड़ खाते खोले गए और 30.6 करोड़ डेबिट कार्ड जारी किए गए।
नए दशक में उपभोक्ताओं के लिए बहुत से विकल्प होने से बैंकिंग उद्योग को डिजिटल बनने या अपना वजूद खत्म करने में से किसी एक विकल्प को चुनना होगा।

First Published : January 25, 2021 | 8:53 PM IST