अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने इस वर्ष के अंत तक ब्याज दर एक बार फिर बढ़ाने के संकेत दिए हैं। मार्च 2022 के बाद से फेडरल रिजर्व मानक या प्रधान उधारी दर 11 बार बढ़ा चुका है। अमेरिका में 1980 के दशक के बाद नीतिगत दर इतनी तेजी से लगातार कभी नहीं बढ़ाई गई थी।
लगभग इसी दौरान बैंक ऑफ इंगलैंड (बीओई) ने ब्याज दर बढ़ाने का सिलसिला रोक दिया और आधार दर 5.25 प्रतिशत पर अपरिवर्तित छोड़ दिया। इससे पहले 2021 से बीओई लगातार 14 बार ब्याज दरें बढ़ा चुका था। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए इंगलैंड में ब्याज दर वर्तमान स्तर पर दीर्घ अवधि तक के लिए स्थिर रह सकती है।
यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी) ने 14 सितंबर को मुख्य ब्याज दर 25 आधार अंक बढ़ाकर इसे 4 प्रतिशत के उच्चतम स्तर तक पहुंचा दिया। ईसीबी ने ऐसे संकेत दिए कि मुद्रास्फीति रोकने के लिए वह ब्याज दर लंबे समय तक नए स्तर पर बरकरार रख सकता है। तुर्किये के केंद्रीय बैंक ने भी दो अंकों में पहुंची मुद्रास्फीति से निपटने के लिए मुख्य ब्याज दर 5 प्रतिशत अंक बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया।
इस बीच, बैंक ऑफ जापान ने अपनी मौद्रिक नीति अपरिवर्तित रखी है। कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया ने भी अपनी मौद्रिक नीति बैठकों में ब्याज दरें अपरिवर्तित रखी हैं। दूसरी तरफ, सेंट्रल बैंक ऑफ ब्राजील और पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने ब्याज दरों में कटौती की है।
अब स्वाभाविक प्रश्न यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इस सप्ताह मौद्रिक नीति समीक्षा में क्या निर्णय लेगा? मई 2022 से नीतिगत दर 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत तक पहुंचाने के बाद आरबीआई ने इस साल अप्रैल में बढ़ोतरी रोक दी थी। अगस्त में भी दर अपरिवर्तित रखी गई। जून में आरबीआई की नजर में आर्थिक परिदृश्य थोड़ा साफ दिखा था, मगर अगस्त में आरबीआई की मौद्रिक नीति में शब्दों का चयन अधिक सतर्कता के साथ किया गया था।
फरवरी में आखिरी बढ़ोतरी हुई थी जब आरबीआई ने ब्याज दर 25 आधार अंक तक बढ़ाई थी। उस बढ़ोतरी के बाद नीतिगत दर बढ़कर 6.5 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, जो फरवरी 2019 में दिखी थी। तब सालाना उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई 2.57 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। फरवरी में नीतिगत दर बढ़ाने के बाद आरबीआई ने भविष्य को लेकर कोई अनुमान नहीं दिया था। मौद्रिक नीति के बाद आयोजित संवाददाता सम्मेलन में आरबीआई गवर्नर ने ‘सकारात्मक हालात’ की तरफ इशारा जरूर किया था।
भारत में खुदरा मुद्रास्फीति जुलाई में बढ़कर 15 महीने के उच्चतम स्तर 7.44 प्रतिशत पर पहुंच गई थी, जो अगस्त में नरम होकर 6.83 प्रतिशत रह गई। इससे पहले मई में 4.25 प्रतिशत के स्तर पर आ गई थी, जो पिछले 25 महीनों में सबसे कम रही थी।
आरबीआई ने मुद्रास्फीति का अधिकतम दायरा 4 प्रतिशत (2 प्रतिशत ऊपर-नीचे) तय कर रखा है। कोविड महामारी के बाद महंगाई दर इस सीमा से आगे निकल गई थी मगर आरबीआई इसे वहन कर रहा था। मगर अब उसका ध्यान इसे 4 प्रतिशत के लक्ष्य तक सीमित रखने पर है ताकि आर्थिक वृद्धि में निरंतरता रखी जा सके।
अगस्त में मौद्रिक नीति की घोषणा में आरबीआई गवर्नर ने खुदरा मुद्रास्फीति में अचानक वृद्धि को अधिक तूल नहीं दिया था मगर पूरे साल के लिए मुद्रास्फीति का लक्ष्य अवश्य बढ़ा दिया था। मॉनसून सामान्य रहने की संभावनाओं के आधार पर खुदरा मुद्रास्फीति का अनुमान वित्त वर्ष 2024 के लिए अगस्त में 5.4 प्रतिशत कर दिया गया था।
वित्त वर्ष 2024 की दूसरी तिमाही के लिए अनुमान 1 प्रतिशत अंक बढ़ाकर 6.2 प्रतिशत कर दिया गया, जबकि चौथी तिमाही के लिए अनुमान 5.2 प्रतिशत के स्तर पर अपरिवर्तित रखा गया। वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही के लिए यही अनुमान रखा गया था।
दुनिया में तेल के दाम बढ़ने से वैश्विक वित्तीय स्थिरता के लिए थोड़ी चिंता बढ़ गई है। तेल की कीमतें आरबीआई के अनुमान 85 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 90 डॉलर प्रति बैरल का भी स्तर पार कर गई हैं। मगर आरबीआई को विश्वास है कि खाद्य वस्तुओं की कम होती कीमतों से सितंबर में खुदरा मुद्रास्फीति कम रहेगी। अधिकांश विश्लेषकों को लगता है कि वित्त वर्ष 2024 के लिए मुद्रास्फीति का अनुमान आरबीआई के अनुमान से थोड़ा अधिक रहेगा। क्या आरबीआई मुद्रास्फीति का अनुमान बढ़ाएगा? शायद नहीं।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आरबीआई नीतिगत दर में बदलाव नहीं करेगा। क्या उसके रुख- वित्तीय प्रणाली में रकम उपलब्ध कराना या हटाना- में कोई बदलाव आएगा? नहीं। वित्तीय तंत्र में आवश्यकता से अधिक नकदी रहने से मुद्रास्फीति बढ़ने का कारण मौजूद हो जाता है। आरबीआई ने अगस्त में नकद आरक्षी अनुपात बढ़ा दिया था।
उसने बैंकों को 19 मई से 28 जुलाई के बीच शुद्ध मांग एवं समय देयता (नेट डिमांड ऐंड टाइम लायबिलिटी) में बढ़ोतरी का 10 प्रतिशत के समतुल्य अतिरिक्त सीआरआर भी बरकरार रखने के लिए कहा था। इस रास्ते आरबीआई ने वित्तीय तंत्र से 1.1 लाख करोड़ रुपये की निकासी की थी। इसका एक चौथाई हिस्सा 9 सितंबर को वापस जारी कर दिया गया और 23 सितंबर को फिर इतनी ही रकम वापस आई। शेष रकम 7 अक्टूबर को वापस आ जाएगी।
इस बीच, सितंबर के तीसरे सप्ताह में वित्तीय प्रणाली में नकदी की कमी बढ़कर 1.47 लाख करोड़ रुपये हो गई, जो अप्रैल 2009 के बाद सर्वाधिक थी। त्योहारों के नजदीक आने और इसके बाद कई राज्यों एवं केंद्र में चुनाव होने से तरलता पर असर होगा क्योंकि लोगों के पास नकद रकम बढ़ जाएगी।
तरलता प्रबंधित करने के लिए आरबीआई के पास कई माध्यम हैं मगर यह अपने रुख पर डटा रहेगा क्योंकि इसका लक्ष्य खुदरा मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत तक सीमित रखना है। हालांकि, आरबीआई को आर्थिक वृद्धि और वित्त वर्ष 2024 में सरकार के लिए भारी भरकम 15.43 लाख करोड़ रुपये के उधारी कार्यक्रम के लिए पर्याप्त संसाधनों का भी इंतजाम करना होगा।
इस बीच, नवंबर और जनवरी के बीच 2.81 लाख करोड़ रुपये मूल्य के बॉन्ड भी भुनाए जाएंगे। माना जा रहा है कि आरबीआई वित्त वर्ष 2024 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर का अनुमान भी 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखेगा। (लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं)