देश के कई हिस्सों में महामारी की विनाशकारी दूसरी लहर अपने चरम पर पहुंच चुकी है। बीते करीब 10 दिनों से सक्रिय मामलों में बढ़ोतरी की दर ऋणात्मक हो चुकी है जबकि जांच लगातार बढ़ाई जा रही है। परंतु एक और लहर आने की पूरी आशंका है। गत वर्ष पहली लहर के चरम पर पहुंचने के बाद सरकार ने हर स्तर पर ढिलाई की। इस बार ऐसा नहीं होने दिया जा सकता। इस बात पर ध्यान देना होगा कि इस लहर से क्या सबक सीखे गए और भविष्य में देश को ऐसी लहर से बचाने के लिए क्या तैयारी की जा सकती है। पहला सबक है वायरस के रूप में बार-बार बदलाव। वायरस का बी.117 स्वरूप सबसे पहले ब्रिटेन के केंट में पाया गया था और बी.1617 स्वरूप महाराष्ट्र में। इनके कारण ही भारत में अत्यधिक संक्रामक दूसरी लहर आई। इसका एक अर्थ यह भी है वायरस के मूल स्वरूप से बचने के लिए दी गई सलाहें अब शायद प्रसार रोकने में सक्षम नहीं हैं। सरकार और खुलेपन की मांग करने वालों को इस बात को समझना होगा। इन स्वरूपों की मौजूदगी में देश में जनवरी और फरवरी जैसा खुलापन नहीं लाया जा सकता है। यदि ऐसा हुआ तो तीसरी लहर अवश्यंभावी है। इन स्वरूपों ने आर्थिक सुधार को भी क्षति पहुंचाई है।
हमें यह भी समझना होगा कि भारत बहुत बड़ा देश है और यहां संक्रमितों की संख्या भी बहुत है और वायरस में बदलाव की आशंका भी अधिक है। बी.1617 के बाद अन्य संक्रामक स्वरूप भी सामने आ सकते हैं। पिछले महीनों की गलतियों ने संक्रमण बढ़ाया। सरकार उन्हें दोहराने नहीं दे सकती। हाल ही में देश की वायरस के स्वरूप का पता लगाने वाली समिति के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने इस्तीफा दे दिया। संकेत यही थे कि सरकार वैज्ञानिकों की बात नहीं सुन रही। अब इस रुख की समीक्षा होनी चाहिए। खासतौर पर जीनोम सीक्वेंसिंग बढ़ानी होगी। यदि देश में ऐसा करना संभव न हो तो अंतरराष्ट्रीय साझेदारों की मदद लेनी चाहिए।
आशंका है कि कहीं ऐसे स्वरूप सामने न आ जाएं जिन पर टीका बेअसर हो। दक्षिण अफ्रीका में पाया गया बी.1351 ऐसा ही स्वरूप है जो अत्यधिक संक्रामक है और घातक भी। मृत्यु दर इस बात पर भी निर्भर करती है कि अस्पतालों में भीड़ है या नहीं। संक्रमण के आसान प्रसार से अस्पतालों पर दबाव बढ़ता है। पिछले अनुभव बताते हैं कि आवश्यक नहीं कि ऐसे स्वरूप अधिकाधिक घातक हों। सन 1918 की स्पेनिश फ्लू महामारी ऐसे ही समाप्त हुई और उसका एक वंशज एच1एन1 आज भी हमारे साथ है। 1968 में आई हॉन्गकॉन्ग फ्लू महामारी में 10 से 40 लाख लोग मारे गए थे लेकिन उसका एच3एन2 स्वरूप आज भी मौजूद और नियंत्रित है।
कोविड-19 को लेकर वैज्ञानिक समझ अभी विकसित हो रही है। मसलन अब यह समझा जा चुका है कि यह महामारी हवा से फैल रही है और बिना हवादार जगहों पर वायरस दूर-दूर तक प्रसारित हो रहा है। अब वायरस के हवा में होने का खतरा अधिक है और उससे बचाव का तरीका तलाशना होगा। जल्द से जल्द बेहतर गुणवत्ता वाले मास्क वितरित करने होंगे। मास्क को लेकर जागरूकता बढ़ानी होगी और जगहों को हवादार बनाना होगा। भीड़भाड़ वाली, अपर्याप्त हवादार और वातानुकूलित जगहें जोखिम भरी हैं। निकट भविष्य में कार्यालयों में पूरी क्षमता से काम होना मुश्किल है। उसके लिए एचईपीए (हाई-एफिशिएंसी पर्टिकुलेट एयर)फिल्टर, एन-95 मास्क या हवा का अल्ट्रावॉयलेट-सी विसंक्रमण करना होगा। सरकार को भी आगे लॉकडाउन को लेकर बेहतर तैयारी रखनी होगी। लॉकडाउन की लागत समझी जा सकती है। समाज के सबसे गरीब तबके को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। परंतु अब ग्रामीण इलाकों में लहर का असर साफ है। यदि तीसरी लहर को थामना है तो लॉकडाउन को लेकर हिचकिचाहट समाप्त करनी होगी। हम जांच में कमी भी नहीं कर सकते। भारत जैसे देश में जहां संसाधन सीमित हैं, जांच बहुत अहम है। इससे पता चल सकता है कि कहां चिकित्सक, दवा और ऑक्सीजन की आपूर्ति करके संकट को कम किया जा सकता है।
सरकार के चिकित्सा सलाहकारों को भी खराब उपचार प्रोटोकॉल पर ध्यान देना चाहिए। स्टेरॉयड के अतिशय इस्तेमाल और उच्च प्रवाह ऑक्सीजन के कारण ब्लैक फंगस की समस्या उत्पन्न हुई है। भारत को प्लाज्मा से दूरी बनाने में भी बहुत वक्त लगा। यह उपचार एकदम बेकार साबित हुआ। चिकित्सकों और परिवारों के लिए स्पष्ट, केंद्रीकृत और वैज्ञानिक चिकित्सा सलाह आवश्यक है। ऑक्सीजन चिकित्सा में साधारण पानी का इस्तेमाल करने के खिलाफ चेतावनी देकर ब्लैक फंगस का प्रसार थामा जा सकता था।
हमें यह मानना होगा कि महामारी से निपटने में टीका ही आखिरी उम्मीद है। इस लहर में देखा जा चुका है कि टीकाकरण के कारण बुजुर्ग मरीज इस बार कम जोखिम में हैं। सरकार को टीका निर्माताओं से यह शिकायत करना बंद करना चाहिए कि वे दायित्व निर्धारण संबंधी मामलों में संरक्षण चाहते हैं। यदि केवल इस वजह से देश बेहतर प्रभाव वाली एमआरएनए तकनीक आधारित टीकों से वंचित रह गया तो यह गलत होगा। आपूर्ति बढ़ाने के लिए हरसंभव कदम उठाया जाना चाहिए। यदि सरकार को निजी सेवाप्रदाताओं को ज्यादा राशि चुकानी पड़ रही है तो वह भी सही। यूरोप ने टीकाकरण में बहुत कम खर्च किया जबकि अमेरिका ने ज्यादा। आज किसकी अर्थव्यवस्था बेहतर है?
यह सही है कि टीकों को लेकर हिचकिचाहट से दिक्कत होगी। कई राज्यों में ग्रामीण क्षेत्रों में टीकाकरण केंद्रों पर कोई नहीं जा रहा। सरकार को यह हिचक मिटानी होगी। कई देश टीकाकरण पर प्रोत्साहन दे रहे हैं। चीन ने ऐसे प्रयास करके महज नौ दिन में 10 करोड़ लोगों को टीके की खुराक दे दी। जिन देशों ने जरूरत पडऩे पर लॉकडाउन लगाया और सही टीकों और दवाओं पर काम किया वे आर्थिक रूप से भी जल्दी बेहतर हुए। दूसरी लहर का बड़ा सबक यही है कि हम महामारी की कीमत पर आर्थिक सुधार को तवज्जो देना बंद करें।