Long-duration funds: पिछले एक साल में लंबी अवधि के फंडों ने अन्य सभी डेट फंड श्रेणियों से बेहतर प्रदर्शन करते हुए औसतन 9.8 फीसदी रिटर्न दिया है। जाहिर है कि निवेशक इन फंडों में रकम लगाना चाहेंगे मगर इनसे जुड़ा जोखिम समझकर उचित अवधि के लिए निवेश करना ही सही होगा।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के कायदे कहते हैं कि इन फंडों की अवधि सात साल से अधिक होनी ही चाहिए। ऐक्सिस म्युचुअल फंड के सह-प्रमुख (फिक्स्ड इनकम) देवांग शाह कहते हैं, ‘इनमें से अधिकतर फंडों ने अपने पोर्टफोलियो का एक बड़ा हिस्सा सरकारी बॉन्ड अथवा राज्य विकास ऋण (राज्य सरकार के बॉन्ड) में निवेश किया है क्योंकि भारत में कंपनियां आम तौर पर लंबी अवधि के ज्यादा बॉन्ड जारी नहीं करतीं।’
पिछले कुछ साल में आर्थिक संकेतकों में सुधार देखा गया है। निप्पॉन इंडिया म्युचुअल फंड के वरिष्ठ फंड मैनेजर (स्थिर आय) प्रणय सिन्हा कहते हैं, ‘हमने मुद्रास्फीति, खास तौर पर मुख्य मुद्रास्फीति एवं चालू खाते के घाटे के अच्छे आंकड़े देखे हैं। सरकार ने राजकोषीय घाटे को कोविड काल के सर्वोच्च स्तर से नीचे लाने के लिए कमर कस ली है। पिछले एक साल में इन सभी के कारण 10 साल के बॉन्ड की यील्ड कम हुई है।’
फेडरल रिजर्व के बयानों से लगता है कि अमेरिका में ब्याज दरें अपने चरम पर हैं। जेपी मॉर्गन बॉन्ड सूचकांक में शामिल होने से भी भारतीय सरकारी बॉन्डों को फायदा होगा।
चालू कैलेंडर वर्ष की दूसरी छमाही में दरें घटना शुरू हो सकती हैं। इसी उम्मीद में पिछले एक साल के दौरान बॉन्ड बाजार की यील्ड 25 से 35 आधार अंक बढ़ गई। दीर्घावधि फंडों की अवधि अधिक होने के कारण यील्ड बढ़ने का असर और भी ज्यादा हो जाता है।
फंड मैनेजरों को ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद भी बहुत अधिक है। शाह का कहना है, ‘भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपनी मौद्रिक नीति रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि अगले साल (2024-25) मुद्रास्फीति 4.5 फीसदी रहेगी। रीपो रेट फिलहाल 6.5 फीसदी है। 10 साल के सरकारी बॉन्डों का यील्ड अब भी 7 फीसदी से ऊपर है। हमारे हिसाब से ब्याज दरें नीचे आनी चाहिए।’ उन्हें उम्मीद है कि अगले 12 से 18 महीनों में 10 साल के बॉन्ड की यील्ड 6.5 से 6.75 फीसदी रह सकती है।
दुनिया भर में भी तस्वीर अच्छी दिख रही है। सिन्हा की राय है, ‘अधिकतर वैश्विक केंद्रीय बैंकों की दरें चरम पर पहुंच चुकी हैं। इसलिए संभावना यही है कि कई केंद्रीय बैंक इस साल से दरों में कटौती शुरू कर देंगे।’ यील्ड में नरमी के साथ ही लंबी अवधि के फंडों को और भी मार्क टु मार्केट फायदा हो सकता है।
दर में कटौती का सिलसिला छह महीने से एक साल तक रह सकती है और उसमें केवल 50 से 75 आधार अंक की कटौती के आसार लग रहे हैं। कॉरपोरेट ट्रेनर (डेट बाजार) और लेखक जयदीप सेन ने कहा, ‘दर में कटौती का सिलसिला खत्म हुआ तो किसी भी वक्त बढ़ोतरी शुरू हो सकती है। ब्याज दरें बढ़ने पर इस श्रेणी प्रदर्शन कमजोर होगा।’ ऐसे में इन फंडों की अवधि अधिक होने से पूंजीगत नुकसान भी अधिक होगा।
आम तौर पर दो तरीके के निवेशक इन फंडों में निवेश कर सकते हैं। प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के मुख्य वित्तीय योजनाकार विशाल धवन समझाते हैं, ‘पहली श्रेणी के निवेशक ब्याज दर के चक्र का फायदा उठाना चाहते हैं और दोबारा बढ़ोतरी होने पर अपना निवेश समेटने के लिए तैयार रहते हैं।’ मगर इन्हें ध्यान रखना चाहिए कि निवेश कब करना और कब समेटना है वरना उन्हें घाटा हो जाएगा।
दूसरी श्रेणी वाले निवेशक लंबी अवधि में धीरे-धीरे ब्याज दरें घटने की उम्मीद करते हैं। धवन की सलाह है, ‘उन्हें लंबी अवधि के लिए निवेश करने के साथ ही समय-समय पर दिखने वाले उतार-चढ़व से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए।’
सेन का कहना है कि कम अवधि के निवेशकों को कम से कम छह महीने से एक साल तक के लिए निवेश करना चाहिए। लंबी अवधि के निवेशकों के लिए निवेश की अवधि कम से कम 10 साल और उससे अधिक होनी चाहिए।
निवेशकों को इन फंडों में निवेश करने से पहले डेट बाजार की बारीकियां समझ लेनी चाहिए। सेन समझाते हैं, ‘उन्हें समझना चाहिए कि इन फंडों में ज्यादा रिटर्न कहां से आया है और पिछला रिटर्न देखकर ही रकम नहीं लगा देनी चाहिए। निवेश करते समय यह भी देखना चाहे कि सही परिपक्वता अवधि क्या होगी।’ धवन की राय में ऐसा फंड सही रहेगा, जिसके फंड मैनेजरों को कई ब्याज दर चक्र का अनुभव हो और जिसका व्यय अनुपात सबसे कम हो।