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Gilt funds: क्या निवेश के लिए बेहतर?

यदि आप ब्याज दरों में गिरावट से ठीक पहले इस स्कीम में एंट्री करते हैं और ब्याज दरों में बढ़ोतरी से ठीक पहले एग्जिट करते हैं तो आपको बेहतर रिटर्न मिल सकता है।

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बीएस वेब टीम   
Last Updated- September 27, 2023 | 5:09 PM IST

फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) पर ब्याज दरों में और बढ़ोतरी की संभावना बेहद कम दिख रही है। उल्टे कुछ बैंकों ने तो ब्याज दरों में कटौती भी करना शुरू कर दिया है। 1 से लेकर 5 साल के एफडी पर इस समय ब्याज तकरीबन 7 फीसदी के करीब है। वैसे निवेशक जो चाहते हैं कि बगैर ज्यादा जोखिम लिए एफडी के मुकाबले उन्हें ज्यादा रिटर्न मिले तो वे इस समय लंबी अवधि के डेट फंड खासकर गिल्ट फंडों में निवेश की सोच सकते हैं। गिल्ट फंडों ने पिछले एक साल में बेहतर प्रदर्शन किया है। इस कैटेगरी के फंडों का औसत रिटर्न पिछले एक साल में तकरीबन 7.5 फीसदी रहा है। मगर इन गिल्ट फंडों में निवेश से पहले इनके बारे में ठीक से समझ लेना चाहिए।

गिल्ट फंड क्या है ?

गिल्ट फंड डेट म्युचुअल फंड की एक कैटेगरी है जहां सरकारी प्रतिभूतियों (गवर्मेंट सिक्योरिटीज/G-Sec) में निवेश किया जाता है। सेबी के नियमों के मुताबिक गिल्ट फंडों को अपने एसेट का कम से कम 80 फीसदी सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करना जरूरी है। सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश की वजह से यहां डिफॉल्ट /क्रेडिट रिस्क यानी निवेश के डूबने का खतरा नहीं है।

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गिल्ट फंड दो तरह के होते हैं। एक जो अलग-अलग अवधि में मैच्योर होने वाले सरकारी सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं और दूसरे जो दस साल की मैच्योरिटी वाली सरकारी सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं।

रिटर्न

गिल्ट फंड रेट सेंसिटिव होते हैं । ब्याज दरों में गिरावट के वक्त ये स्कीमें अच्छा प्रदर्शन करती हैं, लेकिन ब्याज दरों के बढ़ते ही इनमें नुकसान होने लगता है। इसलिए इसमें एंट्री और एग्जिट का समय अहम होता है । कहने का मतलब यदि आप ब्याज दरों में गिरावट से ठीक पहले इस स्कीम में एंट्री करते हैं और ब्याज दरों में बढ़ोतरी से ठीक पहले एग्जिट करते हैं तो आपको बेहतर रिटर्न मिल सकता है। इकोनॉमी की मौजूदा स्थितियों को देखते हुए आने वाले समय में ब्याज दरों में और बढ़ोतरी की संभावना बेहद कम है । इसलिए आगे भी इन फंडों से बेहतर रिटर्न मिल सकता है।

निप्पॉन इंडिया म्युचुअल फंड में सीनियर फंड मैनेजर (फिक्स्ड इनकम) प्रणय सिन्हा कहते हैं, ‘इस समय ब्याज दरें या तो चोटी पर पहुंच चुकी हैं या पहुंचने वाली है। इस लिहाज से निवेशकों के लिए इनमें रकम लगाने का यह अच्छा मौका है। सिन्हा कहते हैं, ‘जब भी दरों में कटौती शुरू होती है, निवेशक लंबी अवधि के फंडों में अपने निवेश से लाभ कमा सकते हैं।’

हालांकि सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकार दीपेश राघव कहते हैं, ‘भारतीय रिजर्व बैंक ने लगातार तीसरी बार अगस्त में दरें नहीं बढ़ाईं इसका मतलब यह नहीं है कि भविष्य में दरें घटने ही लगेंगी। महंगाई बढ़ती जाएगी तो रिजर्व बैंक फिर दरें बढ़ा सकता है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की तरफ से यदि ब्याज दरों में आगे बढ़ोतरी हुई तो रिजर्व बैंक भी मजबूर हो जाएगा।’

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टैक्स के नियम

गिल्ट फंड डेट म्युचुअल फंड की कैटेगरी में आते हैं इसलिए टैक्स के नियम भी डेट म्यूचुअल फंड की तरह हैं। 1 अप्रैल 2023 से लागू नए नियम के अनुसार डेट फंड (वैसे म्युचुअल फंड जहां इक्विटी में एक्सपोजर 35 फीसदी से ज्यादा नहीं है) को रिडीम करने के बाद जो भी कैपिटल गेन/लॉस होगा वह शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन/लॉस मानी जाएगी। शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन आपकी इनकम में जुड़ जाएगा और आपको टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स देना होगा। जबकि 1 अप्रैल 2023 से पहले इस तरह के फंड से होने वाली कमाई पर टैक्स होल्डिंग पीरियड (खरीदने के दिन से लेकर बेचने के दिन तक की अवधि) के आधार पर लगता था। मतलब 36 महीने से कम के होल्डिंग पीरियड पर शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन टैक्स जबकि 36 महीने के ऊपर के होल्डिंग पीरियड पर इंडेक्सेशन के फायदे के साथ 20 फीसदी (सेस मिलाकर 20.8 फीसदी) लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स का प्रावधान था।

जबकि डिविडेंड ऑप्शन में डिविडेंड पर टैक्स पेयर्स को टैक्स उनके टैक्स स्लैब के हिसाब से देना होगा। यानी डिविडेंड टैक्स पेयर के इनकम में जोड दिया जाएगा। अगर सालाना डिविडेंड 5 हजार रुपये से ज्यादा है तो एसेट मैनेजमेंट कंपनी आपको जो डिविडेंड देगी उसमें से 10 फीसदी बतौर टीडीएस काट लेगी।

टोटल एक्सपेंस रेश्यो

निवेशक को यह भी पता होना चाहिए कि उसके फंड का टोटल एक्सपेंस रेश्यो (TER) और एग्जिट लोड क्या है। अगर किसी फंड का एक्सपेंस रेश्यो अधिक है तो लांग टर्म में रिटर्न पर असर पड़ेगा। सेबी के दिशा निर्देशों के मुताबिक डेट स्कीम के लिए अधिकतम टोटल एक्सपेंस रेश्यो 2.25 फीसदी है।

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सलाह

गिल्ट फंडों में तभी निवेश करें जब आप ब्याज दरों पर नजर रखने में सक्षम हों। आपको पता होना चाहिए कि स्कीम से कब एग्जिट करना है और कब इसमें एंट्री करना है। चूंकि ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव का रिटर्न पर बहुत फर्क पड़ता है। इसलिए गिल्ट फंड में निवेश के मामले में काफी सावधानी की जरूरत है। ब्याज दरों में उतार-चढाव के निगेटिव असर को कम से कम करने के लिए आप एसआईपी (SIP) के जरिए भी गिल्ट फंड में निवेश कर सकते हैं।

प्लानयोरवर्ल्ड डॉट कॉम (planyourworld.com) के संस्थापक विप्लव मजूमदार का कहना है कि निवेशकों को सही समय पर निवेश करने और निकलने के लिए विशेषज्ञों की सलाह लेनी चाहिए। इन फंडों में रकम लगा रहे हैं तो उतार-चढ़ाव के लिए तैयार रहें। दरें बढ़ती हैं तो इनका नेट एसेट वैल्यू (NAV) तेजी से गिर जाता है। दरों में कटौती की तस्वीर भी साफ नहीं है।

First Published : September 27, 2023 | 3:57 PM IST