भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की स्टॉक एक्सचेंजों से क्लियरिंग कॉरपोरेशन (सीसी) को अलग करने की योजना पर अनिश्चितता के बादल छाए हुए हैं। इनमें लाभप्रदता, कार्यशील पूंजी की जरूरतों और निपटान गारंटी फंड (एसजीएफ) में योगदान जैसी अनिश्चितताएं शामिल हैं। सूत्रों ने कहा कि जब तक इन मसलों का समाधान नहीं निकालता है, तब तक क्लियरिंग कॉरपोरेशन का स्वामित्व स्टॉक एक्सचेंजों से स्थानांतरित करना चुनौतीपूर्ण होगा।
पिछले सप्ताह सेबी के चेयरमैन तुहिन कांत पांडेय ने प्रशासन, प्रौद्योगिकी और कानूनी चिंताओं के साथ-साथ क्लियरिंग कॉरपोरेशन के स्वामित्व को एक ऐसा प्रमुख मसला बताया था जिसे नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के आईपीओ की मंजूरी से पहले निश्चित ही हल करना जरूरी है।
नवंबर 2024 में सेबी ने क्लियरिंग कॉरपोरेशन के स्वामित्व में विविधता लाने का प्रस्ताव किया था। अभी इनका स्वामित्व स्टॉक एक्सचेंजों के पास है। नियामक ने तर्क दिया कि स्वतंत्र स्वामित्व से क्लियरिंग कॉरपोरेशन को प्रौद्योगिकी को उन्नत बनाने, संचालन और एसजीएफ में योगदान करने में मदद मिलेगी। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि कई तरह के स्वामित्व से ये प्रयास जटिल बन सकते हैं।
उद्योग के एक अंदरूनी सूत्र ने कहा, क्लियरिंग कॉरपोरेशन गैर-लाभकारी संस्थाएं हैं। प्रस्ताव को अंतिम रूप देने से पहले सेबी को हितधारकों से व्यापक परामर्श की जरूरत होगी। लागत, खर्च और पूंजी आवश्यकताओं का फिर से आकलन किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, नियामक को यह भी आकलन करना चाहिए कि क्या स्वायत्तता से वाकई संकेन्द्रण का जोखिम कम होता है, जो स्वतंत्रता की मांग करने के प्रमुख कारणों में से एक है।
सेबी एक्सचेंजों और क्लियरिंग कॉरपोरेशन के बीच हितों के संभावित टकराव की भी जांच कर सकता है। हालांकि हाल की बोर्ड मीटिंग में इस प्रस्ताव पर चर्चा नहीं हुई। लेकिन सूत्रों का कहना है कि इस पर विचार-विमर्श होना है। प्रस्ताव के तहत क्लियरिंग कॉरपोरेशन 49 फीसदी स्वामित्व बरकरार रख सकते हैं जबकि एक्सचेंजों को अन्य संस्थाओं को शेयर बेचकर अपनी हिस्सेदारी 51 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी करने के लिए पांच साल मिलेंगे।
एक अन्य सूत्र ने बताया, संभावित निवेशक हिचक सकते हैं क्योंकि क्लियरिंग कॉरपोरेशन मुनाफे से ज्यादा सारवजनिक उपयोगिता को प्राथमिकता देते हैं। अगर कोई स्पष्ट वित्तीय लाभ नहीं है तो एसजीएफ के लिए पूंजी जुटाना भी मुश्किल हो सकता है। अगर एक्सचेंजों के मौजूदा शेयरधारकों का स्वामित्व कम हो जाता है तो धन जुटाना भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इन निवेशकों में कई खुदरा निवेशक हैं।
वैश्विक स्तर पर अधिकांश क्लियरिंग कॉरपोरेशन जैसे कि सीएमई क्लियरिंग, आईसीई क्लियर क्रेडिट और यूरेक्स क्लियरिंग का स्वामित्व अकेले एक्सचेंज के पास ही है। अपवादों में यूरोक्लियर (बहुशेयरधारक) और चीन का सीएसडीसी (दोहरे एक्सचेंज स्वामित्व वाला) शामिल है। भारत क्लियरिंग कॉरपोरेशन और क्लियरिंग सदस्यों के बीच टकराव टालने के लिए डीटीसीसी मॉडल (सदस्य स्वामित्व वाला) की अनुमति नहीं देता है।
भारत में क्लियरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआईएल) की हिस्सेदारी बैंकों, प्राथमिक डीलरों और वित्तीय संस्थानों के पास है। एक्सचेंजों में कारोबार की पुष्टि, निपटान और अंतर-संचालन में क्लियरिंग कॉरपोरेशन अहम भूमिका निभाते हैं। वित्त वर्ष 2024 में एनएसई क्लियरिंग कॉरपोरेशन ने कोर एसजीएफ में 1,103 करोड़ रुपये का योगदान किया, वहीं इंडियन क्लियरिंग कॉरपोरेशन ने 92 करोड़ रुपये दिए। इस बारे में पूछे जाने पर सेबी ने कोई जवाब नहीं दिया।