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कोविड-19 से आईपीओ की रफ्तार पर विराम

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 1:50 AM IST

कोविड-19 महामारी का प्रभाव आईपीओ लाने की इच्छुक कंपनियों पर भी पड़ा है। इस साल अब तक सिर्फ 11 कंपनियों ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के समक्ष अपने प्रस्ताव दस्तावेज सौंपे, जो 2019 के 27 आवेदनों के मुकाबले कम है।
बाजार कारोबारियों का कहना है कि लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग मानकों ने कंपनियों, निवेश बैंकरों और कानूनी कंपनियों को आईपीओ आवेदन करने के लिए जरूरी कागजी प्रक्रिया पर काम करना मुश्किल बना दिया है। इसके अलावा, महामारी से पैदा हुए आर्थिक झटके से कई कंपनियों के लाभ एवं नुकसान खाते प्रभावित हुए हैं।
कोटक इन्वेस्टमेंट बैंकिंग में इक्विटी कैपिटल मार्केट्स के प्रमुख वी जयशंकर ने कहा, ‘जब अर्थव्यवस्था की स्थिति अच्छी नहीं है, आपको विकास पूंजी की ज्यादा आवश्यकता नहीं है। दूसरा कारण यह भी है कि कई क्षेत्र कोविड-19 से बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। पूरी तरह सेकंडरी सेल पर निर्भर कंपनियों से जुड़े क्षेत्र महामारी से प्रभावित हुए हैं तो उन्हें भी अभी इंतजार करना होगा।’
मूल्यांकन से संबंधित अनिश्चितता से भी कंपनियों को अपनी आईपीओ योजनाओं को ठंडे बस्ते में डालने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
सेंट्रम कैपिटल के प्रबंध निदेशक (निवेश बैंकिंग के प्रमुख) राजेंद्र नाइक ने कहा, ‘कंपनियों को पिछले लेखा परिणामों के साथ आईपीओ आवेदन करने होंगे। आप जैसे ही आवेदन करेंगे, लोग मूल्यांकन का आकलन शुरू करेंगे। कोई खराब आंकड़ों के साथ आवेदन क्यों करेगा? अच्छी बिक्री स्थिर है, और ऐसी स्थिति में आपको बाजार से अपेक्षित मूल्यांकन नहीं मिलेगा।’
कंपनियां अपने व्यवसायों पर महामारी के प्रभाव से जुड़ी निवेशकों की चिंताओं से भी चिंतित हैं।
जयशंकर ने कहा, ‘जब कोई आईपीओ लाता है, उसे अपनी सफलता की कहानी स्पष्ट तौर पर बताने की जरूरत होती है, उसे यह स्पष्ट करने की भी जरूरत है कि हालात अब चुनौतीपूर्ण क्यों हैं। इसलिए आईपीओ को इच्छुक कंपनियां ऐसे समय में इंतजार कर सकती हैं जब अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही है।’
स्पार्क कैपिटल में निवेश बैंकिंग के प्रबंध निदेशक स्कंत जयारामन ने कहा, ‘कंपनियों को हालात का जायजा लेने के लिए काफी डेटा की जरूरत होगी और अपने व्यवसायों पर महामारी के प्रभाव को बचाना होगा। कई कंपनियों के पास मौजूदा समय में इसे लेकर पर्याप्त आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।’
बैंकरों का कहना है कि आईपीओ पेशकश लंबी और कठिन प्रक्रिया है। सेकंडरी बाजार की तेजी में निरंतरता को लेकर भ्रम ने कंपनियों के लिए आईपीओ के संदर्भ में समय चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
जयारामन ने कहा, ‘बाजार अतिरिक्त नकदी की वजह से चढ़े हैं। यह एक वैश्विक घटनाक्रम है। आईपीओ लाना एक हिस्सा है, आईपीओ के बाद, कंपनी को कीमत समर्थन की जरूरत होती है, जिसके लिए आपको दीर्घावधि रकम लगानी होती है जिससे कंपनी को मदद (यदि अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ता है) मिलेगी।’
अक्सर सितंबर के महीने में आईपीओ आवेदनों में इजाफा देखा जाता है, क्योंकि कंपनियां मार्च आंकड़ों के आधार पर अपने आवेदन पेश कर सकती हैं। सितंबर के बाद आईपीओ के लिए किए जाने वाले आवेदनों के लिए कंपनियों को अपनी जून तिमाही के आंकड़े जारी करने जरूरी होते हैं।
चूंकि जून तिमाही ऐसा समय है जब ज्यादातर कंपनियां चुनौतियों का सामना करती हैं, इसलिए आईपीओ आवेदन प्रक्रिया में कमजोरी बनी रह सकती है। विश्लेषकों का कहना है कि जो कंपनियां यह साबित कर सकती हैं कि वे कोविड-19 महामारी से मजबूती के साथ उबर गई हैं, वे ही मौजूदा समय में अपने आईपीओ दस्तावेज फाइल करने का साहस दिखा सकती हैं।

First Published : September 17, 2020 | 12:11 AM IST