बेंचमार्क सूचकांकों में शुक्रवार को लगातार छठे दिन बढ़ोतरी दर्ज की गई और इस तरह से सूचकांकों ने अक्टूबर 2021 के बाद सबसे लंबी बढ़त रही। महंगार्ई के उच्चस्तर पर पहुंचने और केंद्रीय बैंकों की तरफ से ज्यादा मौद्रिक सख्ती न किए जाने को लेकरआशावाद के बीच विदेशी निवेश की बहाली ने जोखिम वाली परिसंपत्तियों में निवेश को लेकर मजबूती लाने में मदद की।
शुक्रवार को सेंसेक्स 390 अंक चढ़कर 56,072 पर बंद हुआ। निफ्टी ने 114 अंकों की उछाल के साथ 16,719 अंक पर कारोबार की समाप्ति की। हफ्ते के दौरान दोनों सूचकांकों में 4 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज हुई, जो नौ महीने में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी है।
सितंबर के बाद पहली बार विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की तरफ से शुद्ध निवेश जुलाई महीने में सकारात्मक देखने को मिला। एनएसडीएल के मुताबिक, एफपीआई ने इस महीने में देसी शेयरों में 1,100 करोड़ रुपये का निवेश किया। यह देखना बाकी है कि क्या लंबी अवधि में शेयरों में विदेशी निवेश बना रहेगा क्योंकि केंद्रीय बैंक लगातार मौद्रिक नीति में सख्ती बरत रहे हैं। शुक्रवार को एफपीआई 676 करोड़ रुपये के शुद्ध बिकवाल रहे।
विश्लेषकों ने कहा कि निवेशक पिछले कुछ हफ्तों में जिंस की कीमतों में नरमी, कच्चे तेल में फिसलन आदि के कारण निवेशक उम्मीद कर रहे हैं कि महंगाई सर्वोच्च स्तर पर पहुंच चुकी है और अब उसमें नरमी आएगी। साथ ही ब्याज दर अब आक्रामक नहीं रहेगा। शुक्रवार को ब्रेंट क्रूड 102.6 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था। पिछले पांच हफ्तों में ब्रेंट क्रूड 16 फीसदी फिसला है, जिससे भारत सरकार ईंधन पर हाल में आरोपित अप्रत्याशित कर में कटौती के लिए प्रोत्साहित हुई।
बैंकिंग व वित्तीय शेयरों में तेजी आई क्योंकि कुछ बैंकों ने अच्छे तिमाही नतीजे पेश किए, इससे भी अवधारणा में सुधार लाने में मदद मिली।
इक्विनॉमिक्स के संस्थापक जी चोकालिंगम ने कहा, जिंसों की कीमतें घटने और अच्छे मॉनसून आदि से निवेशकों में आशावाद नजर आया है। नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन के जरिए रूस की तरफ से गैस आपूर्ति बहाल होने से भी निवेशकों को कुछ राहत मिली। दोनों घटनाएं तब हुई जब मूल्यांकन में नरमी आई है।
विश्लेषकों ने कहा, आर्थिक रफ्तार और कंपनियों के लाभ पर इसके असर को लेकर चिंता बढ़त पर लगाम रख सकती है।
चोकालिंगम ने कहा, अगले कुछ महीने तक बढ़त स्थिर व स्थायी नहीं होगी। फेडरल रिजर्व की तरफ से बैलेंस शीट का सिकुड़न आगामी महीनों में और आक्रामक होगा। साथ ही उभरते बाजारों की मुद्राएं और कमजोर हो सकती हैं। यहां तक कि पिछले कुछ कारोबारी सत्रों में एफपीआई की तरफ से हुई खरीदारी भी शायद टिकी नहीं रहेगी।