भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने मंगलवार को प्रतिभूति अपील पंचाट (सैट) को बताया कि जेन स्ट्रीट के साथ कोई और डेटा साझा नहीं किया जाएगा। यह जानकारी अमेरिकी ट्रेडिंग फर्म के खिलाफ चल रही जांच का हवाला देते हुए दी गई।
न्यायमूर्ति पी एस दिनेश कुमार की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय सैट पीठ ने जेन स्ट्रीट और उसकी समूह संस्थाओं की ओर से दायर अपीलों को स्वीकार कर लिया और सेबी को तीन सप्ताह के भीतर यह बताने का निर्देश दिया कि फर्म द्वारा मांगे गए दस्तावेजों का क्यों नहीं दिया जा सकता। जेन स्ट्रीट अगले तीन सप्ताह के अंदर अपना जवाब दाखिल कर सकती है। मामले की अगली सुनवाई 18 नवंबर को होगी।
भारत के डेरिवेटिव बाजार पर इसके संभावित असर के मद्देनजर इस मामले पर सबकी करीब से निहाग है। इस बीच, सेबी के 3 जुलाई के एकपक्षीय अंतरिम आदेश के संबंध में जेन स्ट्रीट की व्यक्तिगत सुनवाई स्थगित कर दी गई है। यह पहले 15 सितंबर को होनी थी।
उस आदेश में सेबी ने जेन स्ट्रीट पर बाजार में धांधली का आरोप लगाया था। नियामक के अनुसार कंपनी ने दोतरफा रणनीति अपनाई – पहले निफ्टी बैंक के शेयरों में नकद और वायदा दोनों में लॉन्ग पोजीशन बनाकर सूचकांक को ऊपर बढ़ाया, फिर इंडेक्स ऑप्शंस में शॉर्ट पोजीशन बनाए रखते हुए उन्हें बेच दिया। सेबी ने 4,844 करोड़ रुपये जमा करने के बाद जेन स्ट्रीट पर लगा अस्थायी ट्रेडिंग प्रतिबंध हटा लिया , जिसे नियामक ने हेराफेरी करने वाली गतिविधियों’ से हुए लाभ के रूप में वर्गीकृत किया।
सेबी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गौरव जोशी ने कहा कि फर्म को पहले ही 10 गीगाबाइट से अधिक डेटा उपलब्ध कराया जा चुका है और कोई अतिरिक्त जानकारी साझा नहीं की जाएगी।
लेकिन जेन स्ट्रीट ने पिछली निगरानी और जांच रिपोर्टों की मांग की है जिनमें एक सेबी के एकीकृत निगरानी विभाग की है और उसने नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के साथ हुआ पत्राचार भी मांगा है। कंपनी का दावा है कि ये दस्तावेज उसे किसी भी गलत काम से मुक्त करते हैं और उसके बचाव के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
सेबी ने तर्क दिया कि 3 जुलाई के आदेश में मांगी गई सामग्री पर भरोसा नहीं किया गया था और इसमें गोपनीय या अप्रासंगिक विवरण हैं।
जोशी ने तर्क दिया, ‘जांच बहुत ही महत्वपूर्ण चरण में है। हम हर एक दस्तावेज नहीं देंगे। अधिकांश सामग्री अप्रासंगिक या गोपनीय है और इस स्तर पर देने की आवश्यकता नहीं है। कोई कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया गया है क्योंकि हम अभी भी मामले की जांच कर रहे हैं। यह अवधि काफी लंबी हो सकती है। कारण बताओ नोटिस का दायरा अंतरिम आदेश में बताई गई अवधि से कहीं अधिक बड़ा हो सकता है।’