निफ्टी के 17 प्रमुख सेक्टर सूचकांकों में से 11 ‘करेक्शन’ मोड में हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि एनर्जी, ऑटो तथा केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (सीपीएसई), खपत, एफएमसीजी सूचकांक पर बाजार में हाल की गिरावट की सबसे ज्यादा मार पड़ी है।
अपने ताजा ऊंचे स्तर से 10 प्रतिशत से लेकर 20 प्रतिशत तक गिरने वाले सूचकांक या शेयर को ‘करेक्शन’ फेज में माना जाता है। सूचकांक या शेयर के लिए 20 प्रतिशत या उससे अधिक की गिरावट को ‘मंदी’ का चरण कहा जाता है।
निफ्टी मीडिया (47 प्रतिशत से ज्यादा गिरावट) ऐसा एकमात्र सेक्टर सूचकांक है जो अपने सर्वाधिक ऊंचे स्तर (जनवरी 2018) से 20 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट के साथ ‘मंदी’ की चपेट में आ गया। निफ्टी रियल्टी सूचकांक मई 2008 में बनाए गए अपने ऊंचे स्तरों से करीब 17 प्रतिशत की गिरावट के साथ मंदी के कगार पर पहुंच गया है।
आंकड़ों से पता चलता है कि निफ्टी फार्मा, सर्विस सेक्टर, फाइनैंशियल सर्विसेज, बैंक और आईटी सूचकांक हाल में बनाए गए अपने सर्वाधिक ऊंचे स्तरों से 2 प्रतिशत से 7 प्रतिशत के बीच गिरे हैं।
इस बीच, प्रमुख सूचकांक निफ्टी 50, निफ्टी 500, निफ्टी मिडकैप 100 और निफ्टी स्मॉलकैप 100 ‘करेक्शन’ मोड में पहुंचने के नजदीक हैं और ये सितंबर 2024 के अपने ऊंचे स्तर से 8 प्रतिशत से अधिक गिर चुके हैं।
कार्नेलियन ऐसेट मैनेजमेंट के संस्थापक विकास खेमानी के अनुसार उपभोक्ता-केंद्रित क्षेत्रों को चक्रीयता से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि एफएमसीजी, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और वाहन मूल उपकरण निर्माता (ओईएम) क्षेत्रों में हाल में समाप्त तिमाही के दौरान मंदी दर्ज की गई। असुरक्षित ऋण से जुड़े बैंकिंग शेयरों में भी दबव के संकेत दिखने लगे हैं।
खेमानी ने कहा, ‘हमारा मानना है कि मुख्य बाजार अगले एक साल में एक अंक से लेकर दोहरे मध्य अंक यानी 12 प्रतिशत तक का रिटर्न दे सकते हैं, लेकिन अच्छे चयन और शेयर-केंद्रित अवसर हमेशा रहेंगे। हमें उम्मीद है कि वित्त, सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी), फार्मा और पूंजीगत वस्तु जैसे क्षेत्र अच्छा प्रदर्शन करेंगे। रसायन क्षेत्र का प्रदर्शन साल के अंत में सुधरना शुरू हो जाएगा। रक्षा, रेलवे और चुनिंदा पूंजीगत वस्तु क्षेत्रों में अच्छी तेजी आई है। हमारा मानना है कि इनमें रिस्क-रिवार्ड नए निवेश के लिहाज से अच्छा नहीं है।’
भारतीय बाजारों में बड़ी गिरावट के लिए मुख्य तौर पर विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की करीब 1.14 लाख करोड़ रुपये की बिकवाली को जिम्मेदार माना जा रहा है जो मार्च 2020 में कोविड की वजह से बाजार में आई गिरावट के बाद उनकी सबसे बड़ी बिकवाली है। मार्च 2020 में एफआईआई ने भारतीय इक्विटी बाजार से करीब 65,000 करोड़ रुपये निकाले थे। मई 2024 में, उन्होंने आम चुनाव नतीजों से पहले करीब 42,200 करोड़ रुपये निकाल लिए थे।
इक्विनॉमिक्स रिसर्च के संस्थापक एवं शोध प्रमुख जी चोकालिंगम के अनुसार विदेशी निवेशक कुछ और सप्ताह या महीनों तक बिकवाली का सिलसिला बरकरार रख सकते हैं। लेकिन, उनकी बिक्री बड़े पैमाने पर लार्ज-कैप शेयरों पर केंद्रित होगी और विशेष रूप से उन पर जो सितंबर 2024 तिमाही के कमजोर परिणाम दर्ज करेंगे।
इसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने निवेशकों को मिडकैप और स्मॉलकैप (एसएमसी) सेगमेंटों से अच्छे शेयरों का चयन शुरू करने का सुझाव दिया है जहां आय की संभावना है और नए तिमाही आंकड़े मजबूत दिख रहे हैं।