Economic Survey on Stock Market: सोमवार को जारी आर्थिक समीक्षा ने भी अन्य नियामकों की उस चिंता में अपना सुर मिला दिया, जिसमें जोखिम वाले डेरिवेटिव सेगमेंट में खुदरा निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी पर चिंता जताई गई है। डेरिवेटिव सेगमेंट में रोजाना औसत कारोबार लगातार 400 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है जबकि नकदी में करीब 1.2 लाख करोड़ रुपये का कारोबार होता है।
समीक्षा में अत्यधिक मूल्यांकन को लेकर भी चेतावनी दी गई है और वास्तविक अर्थव्यवस्था को लेकर बाजार के दावे को अत्यधिक बड़ा बताया गया है।
समीक्षा में डेरिवेटिव को सटोरिया प्रतिभूतियां बताई गई है और इसमें ट्रेडिंग को जुआ करार दिया गया है। इसमें कहा गया है, डेरिवेटिव ट्रेडिंग में काफी ज्यादा लाभ की संभावना होती है। ऐसे में यह जुआ वाली मानवीय प्रवृत्ति को खींचता है और लाभ की स्थिति में आय में इजाफा कर देता है। यह प्रतिफल खुदरा निवेशकों की डेरिवेटिव में सक्रिय रूप से शायद भागीदारी बढ़ा रहा है। हालांकि वैश्विक स्तर पर डेरिवेटिव ट्रेडिंग निवेशकों को ज्यादातर नुकसान का ही स्वाद चखाता है। इसके लिए जागरूकता फैलाने और शिक्षित किए जाने की जरूरत बताई गई है।
ऐसी ही बातें भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास और सेबी चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच ने भी कही है। साल 2020 में कोरोना महामारी फैलने के बाद से बाजार मोटे तौर पर चढ़ता रहा है, जिसने काफी नए निवेशकों को बाजार की ओर खींचा है और उन्हें परिसंपत्ति सृजित करने में मदद की है।
हालांकि शेयर बाजार में बड़ी गिरावट डेरिवेटिव निवेशकों (derivative investors) को काफी नुकसान पहुंचा सकता है और उन्हें ठगा गया महसूस करा सकता है, साथ ही लंबे समय के लिए उन्हें पूंजी बाजार में प्रवेश से रोक सकता है। समीक्षा में इसे लेकर चेतावनी दी गई है। यह नुकसान उनका है, न कि अर्थव्यवस्था का।
पिछले महीने सेबी प्रमुख ने डेरिवेटिव सेगमेंट में ट्रेडिंग के लिए निवेशकों की तरफ से ली जाने वाली उधारी पर चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था कि देश की घरेलू बचत ट्रेडिंग में जा रही है, जो अनुत्पादक गतिविधियां हैं और इससे आर्थिक या रचनात्मक लाभ नहीं होता। दास ने भी डेरिवेटिव वॉल्यूम के देश की नॉमिनल जीडीपी से ज्यादा होने पर चिंता जताई थी।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत जैसी कम प्रति व्यक्ति आय वाले देशों में वित्तीय नवाचार के नाम पर गैर-जरूरी वित्तीय दांव लगाने की कोई जरूरत नहीं है।
मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा, ‘डेरिवेटिव उत्पाद जैसे एकल शेयर वायदा अच्छी वित्तीय पहल है, मगर भारत जैसे देश में इन्हें लाने में थोड़ी जल्दबाजी की गई है।’
समीक्षा में इस बात का विशेष जिक्र किया गया है कि अर्थव्यवस्थाओं का अत्यधिक ‘वित्तीयकरण’ विकसित अर्थव्यवस्थाओं के मामले में भी कारगर नहीं रहा है।
सेबी ने कुछ समय पहले एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है, जो डेरिवेटिव खंड में अत्यधिक कारोबार से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के उपायों पर विचार कर रहा है। यह समिति खुदरा निवेशकों के हित भी सुरक्षित करने पर विचार कर रही है। हालांकि, डेरिवेटिव योजनाओं के मामले में बाजार नियामक को सावधानी पूर्वक कदम बढ़ाना होगा क्योंकि ये कर संग्रह के बड़े स्रोत बन कर उभरे हैं।
नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) पर कारोबार के लिए लिए विशिष्ट कर पहचान (यूनिक टैक्स आईडेंटिटीज) का पंजीकरण कोविड महामारी के बाद से तीन गुना बढ़ गया है। यह वित्त वर्ष 2019 में 2.9 करोड़ था, जो वित्त वर्ष 2024 में बढ़कर 9.2 करोड़ हो गया।
आयकर आंकड़ों में भी यही रुझान देखने को मिल रहा है। इन आंकड़ों के अनुसार पूंजीगत लाभ की घोषणा समीक्षा वर्ष 2023-24 में बढ़कर 3 लाख करोड़ हो गई, जो समीक्षा वर्ष 2018-19 में 9 लाख थी। डीमैट खातों की संख्या भी मार्च 2024 तक बढ़कर 15 करोड़ हो गई है।
आर्थिक समीक्षा में पू्ंजी निर्माण में प्राथमिक बाजारों की भूमिका भी रेखांकित की गई है। समीक्षा में कहा गया है कि डिजिटल ढांचे, वित्तीय समावेशन के उपाय, कम ब्रोकरेज शुल्क और अन्य स्रोतों से रकम अर्जित करने से म्युचुअल फंड और शेयर बाजार में तेजी आई है।