करीब 33 लाख करोड़ रुपये के देसी म्युचुअल फंड उद्योग को बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के नए नियमों के तहत अपनी ही योजनाओं में हजारों करोड़ रुपये निवेश करने पड़ सकते हैं। सेबी के बोर्ड ने पिछले महीने इस नियम को मंजूरी दी है।
अभी फंड कंपनियों को हर योजना में अधिकतम 50 लाख रुपये निवेश करने होते हैं। सेबी के निदेशक मंडल ने परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों (एएमसी) के हितों को हजारों यूनिटधारकों के साथ जोडऩे के लिए 50 लाख रुपये की सीमा हटाने की मंजूरी दे दी। म्युचुअल फंडों को योजनाओं में निहित जोखिम के मुताबिक निवेश करना होगा। जोखिम की स्थिति रिस्क-ओ-मीटर के मौजूदा प्रारूप के अनुसार होगी।
सेबी के अनुसार एएमसी को कम जोखिम वाली योजनाओं में 0.03 फीसदी और बहुत अधिक जोखिम वाली योजनाओं , जो आम तौर पर इक्विटी योजनाएं होती हैं, में 0.13 फीसदी निवेश करना होगा। इस हिसाब से 1 लाख करोड़ रुपये की प्रबंधनाधीन संपत्ति (एयूएम) वाली योजनाओं में फंड को 130 करोड़ रुपये निवेश करना होगा, जबकि अभी केवल 50 लाख रुपये ही करने होते हैं। सेबी के विशेषज्ञ समूह ने 0.03 फीसदी से 0.25 फीसदी के बीच निवेश का प्रस्ताव दिया है। लेकिन इस नियम से म्युचुअल फंडों को करीब 3,593 करोड़ रुपये निवेश करने होते, जो मौजूदा कुल निवेश से करीब पांच गुना अधिक है। नए नियम को सुगमतापूर्वक लागू करने के लिए नियामक ने शुरुआत में कम सीमा रखने का निर्णय किया है।
सेबी ने बोर्ड बैठक में कहा, ‘म्युचुअल फंड योजनाओं में एएमसी का न्यूनतम योगदान तार्किक और योजनाओं में निहित जोखिम के अनुसार होना चाहिए। हालांकि एएमसी पर पड्ने वाले वित्तीय असर को ध्यान में रखते हुए पांच गुना निवेश की मात्रा पर पुनर्विचार की जरूरत है।’
अभी एएमसी को 50 करोड़ रुपये नेटवर्थ रखने की जरूरत होती है। सेबी की समिति ने प्रस्ताव किया है कि म्युचुअल फंडों को अपने नेटवर्थ से अपनी योजनाओं में निवेश की अनुमति दी जाए। उद्योग के भागीदारों का कहना है कि इस कदम से म्युचुअल फंडों की अपनी योजनाओं में ज्यादा निवेश होगा और परोक्ष रूप से नेटवर्थ में इजाफा हो सकता है। इसके अलावा म्युचुअल फंडों को मार्क-टू-मार्केट घाटे के लिए ज्यादा पैसे रखने होंगे। म्युचुअल फंड पर सेबी की परामर्श समिति ने सुझाव दिया है कि एएमसी को ज्यादा अवधि तक मार्क-टू-मार्केट नुकसान होने पर नेटवर्थ की भरपाई के लिए ही एएमसी को कोष लगाने को कहा जाना चाहिए। इस कदम से छोटे एएमसी की रक्षा होगी, जिन्हें कम समय में ताजा इक्विटी जुटाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।