क्रिसिल रेटिंग्स ने मंगलवार को एक रिपोर्ट में कहा कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के नियामकीय बदलावों से ब्रोकरों (खासकर डिस्काउंट मॉडल के साथ परिचालन करने वाले) के कर पूर्व लाभ (पीबीटी) पर 25 प्रतिशत असर पड़ने की संभावना है।
समान लेनदेन शुल्क के संबंध में बाजार नियामक के आदेश के तहत एक्सचेंजों ने स्लैब के अनुसार पुरानी दरों में डिस्काउंट ब्रोकर्स को मिलने वाली छूट का लाभ खत्म कर दिया है। नए नियम 1 अक्टूबर से लागू हो गए हैं। क्रिसिल की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पूर्ण-सेवा प्रदाता ब्रोकरों (जिनकी आय अधिक है और राजस्व के विभिन्न स्रोत हैं) पर काफी कम-10 प्रतिशत से कम का असर देखने को मिलेगा।’
इसके अलावा वायदा एवं विकल्प (एफऐंडओ) में रिटेल भागीदारी नियंत्रित करने के लिए सेबी के प्रयासों से शेयर ब्रोकरों की वित्तीय स्थिति पर भी प्रभाव पड़ेगा क्योंकि सौदों के बड़े आकार के कारण उन्हें खरीदना भारी पड़ेगा और साप्ताहिक एक्सपायरी वाले इंडेक्स डेरिवेटिव उत्पादों में कमी आएगी। ये दोनों बदलाव 20 नवंबर से प्रभावी होंगे।
रेटिंग सेवा प्रदाताओं के अनुमानों के अनुसार डेरिवेटिव से राजस्व योगदान डिस्काउंट ब्रोकरों के लिए उनकी कुल आय का करीब 60 से 80 प्रतिशत है जो सर्वाधिक है। पूर्ण सेवा प्रदाता ब्रोकरों के लिए यह उनके विविध राजस्व प्रोफाइल की वजह से 10 प्रतिशत से 30 प्रतिशत के साथ अपेक्षाकृत कम है।
क्रिसिल रेटिंग्स में निदेशक शुभा श्री नारायणन ने कहा, ‘इस समय अन्य राजस्व स्रोतों के कम अनुपात और रिटेल ग्राहकों के लिए ज्यादा सख्त नियमों की वजह से डिस्काउंट ब्रोकरों पर ज्यादा प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि नए ग्राहक जुड़ने की रफ्तार भी धीमी पड़ रही है।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि बदलावों से नियामकीय और अनुपालन खर्च बढ़ जाएगा, जिससे छोटे ब्रोकरों पर दबाव पड़ेगा।
क्रिसिल रेटिंग्स में सहायक निदेशक ऐशा मारू ने कहा, ‘खासकर डिस्काउंट ब्रोकर अपने राजस्व और लागत ढांचे की समीक्षा कर रहे हैं जिससे कि संशोधित नियमों के प्रभाव को कम किया जा सके। प्रतिस्पर्धी परिवेश की वजह से ब्रोकरेज शुल्क या अन्य सेवा शुल्क बढ़ाने की उनकी क्षमता भी सीमित हो सकती है।’