भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) मॉरिशस और केमैन द्वीप से चल रहे फंडों पर पैनी नजर रख रहा है। उसे शक है कि इन फंडों ने अपने अंतिम लाभार्थी स्वामी के बारे में पर्याप्त जानकारी मुहैया नहीं कराई है। मामले की जानकारी रखने वाले दो सूत्रों ने बताया कि ऐसे फंडों में प्रवासी भारतीयों की ऊंची हिस्सेदारी होने तथा फंडों का इस्तेमाल रकम की हेराफेरी करने के लिए किए जाने की आशंका है। आशंका इस बात की भी है कि भारतीय प्रवर्तक इनके जरिये शेयर भाव में छेड़छाड़ करते हैं और ऊंची एफपीआई हिस्सेदारी का हवाला देकर निवेशकों के बीच भरोसा पैदा कर सकते हैं।
मौजूदा नियमों के अनुसार कोई भी एक अनिवासी भारतीय (एनआरआई) किसी भी विदेशी फंड की प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति की 25 प्रतिशत से अधिक रकम का लाभार्थी मालिक नहीं हो सकता है। किसी भी फंड की प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति में सभी एनआरआई की कुल हिस्सेदारी 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकती है। इस बारे में एक संरक्षक (कस्टोडियन) ने कहा, ‘मॉरिशस और केमैन द्वीप से प्रवासी भारतीय द्वारा चलाए जाने की शंका वाले सभी छोटे और मझोले फंडों पर सेबी की नजर रहेगी। सेबी उन एफपीआई के बारे में भी पूछताछ कर रहा है, जिनकी कुछ भारतीय समूहों की कंपनियों में ऊंची हिस्सेदारी है।’
मॉरिशस में करीब 600 एफपीआई हैं जो भारत में निवेश करते हैं। एनएसडीएल की वेबसाइट के अनुसार इनमें 408 श्रेणी-1 (कैटेगरी-1) में आते हैं। केमैन के 336 फंड में 277 श्रेणी-2 (कैटेगरी-2) में आते हैं। वेबसाइट पर 31 मई को मॉरिशस के 10 ऐसे फंड दिख रहे थे, जिनके खातों में लेनदेन पर रोक लगा दी गई थी।
एफपीआई के कारोबार की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा कि इस बात की आशंका है कि कई भारतीय प्रवर्तकों ने इन फंडों के जरिये अपनी ही कंपनियों के शेयरों में निवेश किया है। सूत्र के अनुसार इससे प्रवर्तक अपनी ही कंपनी में परोक्ष रूप से हिस्सेदारी रख रहे होंगे।