म्युचुअल फंड कंपनियों की योजना अपने संगठन एम्फी के जरिये बाजार नियामक सेबी से संपर्क कर बुधवार को जारी वेतन के मामले में जारी परिपत्र में संशोधन की मांग करने की है। उद्योग की तरफ से की जाने वाली प्रमुख मांगों में प्रमुख कर्मचारियों की परिधि को छोटा करने की मांग होगी। सेबी की मौजूदा परिभाषा काफी विस्तृत है और यह परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (एएमसी) के करीब-करीब पूरे कर्मियों को कवर करती है। उनमें कुछ वैसे कर्मी भी शामिल हैं, जिनका फंड के प्रबंधन या निवेश के फैसले से कोई ताल्लुक नहीं है।
एडलवाइस एएमसी की प्रबंध निदेशक व सीईओ राधिका गुप्ता ने कहा, इस परिपत्र में मानव संसाधन प्रमुख या डीलिंग स्टाफ जैसे कर्मियों को भी शामिल किया गया है। इन कर्मियों का निवेश के प्रदर्शन से कोई लेना-देना नहीं है।
उद्योग के अन्य आला अधिकारियों ने कहा कि वे सेबी से इस परिपत्र को निवेश फैसले या फंड के प्रदर्शन से सीधे तौर पर जुड़े कर्मियों तक सीमित करने का अनुरोध करेंगे। उन्होंने कहा कि फंड मैनेजमेंट टीम के अलावा अन्य कर्मचारियों को अपने वेतन का पांचवां हिस्सा अनिवार्य रूप से निवेश करने के लिए कहना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ जाता है।
इसके अलावा उद्योग चाहता है कि उच्च जोखिम वाली योजनाओं मसलन स्मॉलकैप, मिडकैप या थिमेटिक स्कीम्स का प्रबंधन करने वाले फंड मैनेजरों को कुछ डिस्क्रिशनरी यानी स्वविवेक का इस्तेमाल करने की इजाजत मिलनी चाहिए।
हीलियस कैपिटल के संस्थापक व फंड मैनेजर समीर अरोड़ा की राय हालांकि इस मामले में अलग है। उन्होंने ट्वीट किया, इक्विटी फंड मैनेजर अपने फंड को लेकर ज्यादा उत्साहित होगा, जिसका वह प्रबंधन करता है। यह सिर्फ नौकरी नहीं है जो आप थीसिस पर भरोसा किए बिना करते हैं। अगर जोखिम लेने की उनकी क्षमता कम या ज्यादा है तो वह फंड का प्रबंधन करने के लिए सही व्यक्ति नहीं है।
साथ ही उद्योग इस पर भी स्पष्टता चाहेगा कि क्या विशाखन का उपबंध इक्विटी फंड मैनेजरों को डेट श्रेणी में निवेश में सक्षम बनाएगा। मॉर्निंगस्टार इंडिया के निदेशक कौस्तुभ बेलापुरकर ने कहा, मुझे लगता है कि इरादा अच्छा है लेकिन कुछ संशोधन से मामला ठीक हो सकता है। निवेश में कुछ लचीला रुख मिलना चाहिए, जरूरी नहीं कि वह आपकी अपनी योजना में हो बल्कि फंड हाउस की अन्य योजनाओं में भी। हमेशा ऐसा नहीं होता कि जिस फंड का प्रबंधन आप कर रहे हैं वह आपके निवेश प्रोफाइल से मेल खाता हो।
परिपत्र में सेबी ने कहा है कि अगर डेडिकेटेड फंड मैनेजर सिर्फ एक योजना या श्रेणी का प्रबंधन करता हो तो 50 फीसदी कम्पनसेशन फंड मैनेजर की तरफ से प्रबंधित योजना/श्रेणी की यूनिट के जरिए और बाकी 50 फीसदी उनकी इच्छा के मुताबिक उन योजनाओं की यूनिट के जरिए दी जानी चाहिए जिसके जोखिम की वैल्यू रिस्क ओ मीटर के मुताबिक फंड मैनेजर की तरफ से प्रबंधित योजना के बराबर या ज्यादा है।
उद्योग की कंपनियों की योजना वैसे कर्मियों का मामला उठाने का भी है, जिसका वेतन मध्यम स्तर से कम है और एमएफ योजना में उनके वेतन का 20 फीसदी निवेश करने पर उन पर विपरीत असर पड़ता हो।
उद्योग के अन्य अधिकारी ने कहा, कई कर्मचारियों मसलन डीलर या कनिष्ठ शोध कर्मी 10-15 लाख रुपये सालाना वेतन पाते हैं। कई पर कर्ज आदि भी है। उनके लिए वेतन का 20 फीसदी हर महीने अलग करना मुश्किल होगा। हम सेबी से ऐसे मामलों के लिए और समय देने को कहेंगे ताकि उन्हें व्यस्थित करने का समय मिल सके।
सेबी ने कहा है कि नया नियम एक जुलाई से प्रभावी होगा।