शेयर बाजार में जारी उठा-पटक और दुनियाभर में छाये अनिश्चितता के बादलों के बीच निवेशकों ने सतर्क रुख अपना लिया है। घबराहट में कई निवेशक अपनी SIP बंद करने की सोच रहे हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। फंड हाउस वेंचुरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मार्केट साइकिल्स निवेश की दुनिया का एक अनिवार्य हिस्सा है। बाजार में उतार-चढ़ाव बना रहता है। बाजार के तेजी से ऊपर जाने के बाद उसमें सुधार (करेक्शन) का एक समय आता है। आमतौर पर बाजार में तेजी के समय निवेशक अपना निवेश बढ़ाते है, जबकि गिरावट के समय उनमें घबराहट होने लगती है। लेकिन इतिहास कहता है कि—घबराहट केवल पछतावा लाती है, जबकि धैर्य लंबे समय में इनाम देता है। निवेशकों को बाजार की अस्थिरता में बिना घबराए निवेश बनाए रहकर कंपाउंडिंग का फायदा उठाना चाहिए।
पिछले 5 वर्षों में यानी कोविड के बाद से अब तक, निवेशकों ने बाजार में कोई बड़ी गिरावट नहीं देखी है। AMFI के आंकड़ों के अनुसार, नए SIP रजिस्ट्रेशन में लगभग 21% की गिरावट आई है, जबकि SIP कैंसलेशन में भी करीब 11% की तेज गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि दिसंबर 2024 से जनवरी 2025 के बीच नए SIP रजिस्ट्रेशन में 4% की बढ़ोतरी हुई लेकिन कैंसलेशन में लगभग 37% की जबरदस्त वृद्धि दर्ज की गई। जिससे पहली बार SIP स्टॉपेज रेश्यो 100% के पार चला गया। फरवरी 2025 में इस रेश्यो में जो बढ़ोतरी देखी गई, वह मुख्य रूप से नए SIP रजिस्ट्रेशन में भारी गिरावट के कारण थी न कि कैंसलेशन की वजह से।
कई निवेशक बाजार में गिरावट के दौरान अपने SIPs को इस उम्मीद में रोक देते हैं कि वे “बेहतर समय” पर दोबारा निवेश करेंगे या कहीं और ज्यादा रिटर्न हासिल कर पाएंगे। मान लीजिए दो निवेशकों ने ₹1,000 के SIP की शुरुआत की—एक ने 25 वर्षों तक 12% एनुअल रिटर्न पर निवेश किया, जिससे उसका निवेश ₹17.0 लाख तक पहुंच गया। वहीं दूसरा निवेशक 15 वर्षों तक 15% रिटर्न के साथ निवेश करता है और जिससे उसका निवेश ₹6.2 लाख तक पहुंचता है।
इस स्थिति में आप देख सकते हैं कि ज्यादा रिटर्न होने के बावजूद, जो निवेशक लंबे समय तक निवेशित रहा उसे लगभग 2.8 गुना ज्यादा रिटर्न मिला।
Also read: Ventura की पसंद बने ये 14 इक्विटी फंड्स, 3 साल में दिया 10-18% रिटर्न; देखें डिटेल
इसका एक शानदार उदाहरण वॉरेन बफेट (Warren Buffett) का निवेश दृष्टिकोण है। उनकी संपत्ति हाई रिटर्न पाने की कोशिश से नहीं, बल्कि लंबे समय तक निवेश में बने रहने से बनी है। उन्होंने 1960 में 30 वर्ष की उम्र में $10 लाख से शुरुआत की, जो 1986 में 56 वर्ष की उम्र तक $1 अरब हो गया और 2025 में 94 वर्ष की उम्र तक यह $161 अरब तक पहुंच गया। यानी दौलत बनाने में असली ताकत सिर्फ ऊंचे रिटर्न में नहीं, बल्कि समय में होती है।
वेंचुरा की रिपोर्ट में बीते 25 वर्षों की निवेश यात्रा का विश्लेषण कर यह दिखाया गया है कि बाजार में गिरावट के दौरान SIP बंद करने की जगह यदि निवेश बनाए रखा जाए तो कंपाउंडिंग का फायदा कैसे उठाया जा सकता है।
अगर किसी निवेशक ने 1 मार्च 2000 को ₹1,000 का SIP शुरू किया होता, तो 2008 की वैश्विक वित्तीय मंदी के दौरान इसे बंद कर देने पर, या मार्च 2020 में कोविड-19 क्रैश के समय रोक देने पर, और फरवरी 2025 तक निवेशित बने रहने पर—इन तीनों स्थितियों में रिटर्न काफी अलग होते।
स्त्रोत: वेंचुरा की म्युचुअल फंड पॉइंटर रिपोर्ट
शुरुआती चरण में, पोर्टफोलियो वैल्यू को 3.2 गुना बढ़ने में लगभग 12 साल लगे, जबकि इस दौरान कुल निवेश केवल 2.5 गुना हुआ था। लेकिन 2020 के बाद, अपेक्षाकृत छोटे 1.2 गुना निवेश से पोर्टफोलियो में 3.9 गुना की बढ़ोतरी हुई—जो दर्शाता है कि बाद के वर्षों में कंपाउंडिंग का प्रभाव कितनी तेजी से बढ़ता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, कंपाउंडिंग की ताकत केवल इक्विटी मार्केट्स तक सीमित नहीं है। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी निवेशक ने PPF में ₹1,000 का SIP शुरू किया और 20 वर्षों तक निवेश किया, तो उसने कुल ₹2.4 लाख निवेश किए, जो बढ़कर ₹5.2 लाख हो गए। लेकिन अगर उसी निवेश को 25 वर्षों तक जारी रखा जाए और कुल निवेश ₹3.0 लाख हो, तो कॉर्पस ₹8.0 लाख तक पहुंच जाता है।
सिर्फ आखिरी पांच वर्षों में ही रिटर्न में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई—निवेशक ने केवल ₹60,000 अतिरिक्त निवेश किया, लेकिन उसे ₹2.2 लाख का अतिरिक्त लाभ मिला। यह दर्शाता है कि वॉरेन बफे की नेटवर्थ भी कैसे अंतिम वर्षों में तेजी से बढ़ी। फर्क बस इतना रहा कि यहां कंपाउंडिंग की दर 7% सालाना थी।
रिपोर्ट के मुताबिक, अगर किसी ने जनवरी 1995 में HDFC फ्लेक्सी कैप फंड में ₹1,000 का SIP शुरू किया होता, तो आज उसका कॉर्पस ₹1.9 करोड़ होता। लेकिन सवाल यह है कि कितने निवेशकों ने वाकई 25 साल तक निवेश जारी रखा? 1%? शायद 2%? और उनमें से भी कितनों को यह निवेश याद भी है? कितनों ने इसे भूलकर किसी पुराने अकाउंट में छोड़ दिया? अधिकांश निवेशकों के लिए डर, बदलती प्राथमिकताएं या “प्रॉफिट बुकिंग” की चाह ने उन्हें जल्दी बाहर निकलने को मजबूर कर दिया—इससे पहले कि कंपाउंडिंग अपना असर दिखा पाती।
विडंबना यह है कि SIP में असली दौलत आखिरी वर्षों में बनती है, लेकिन ज्यादातर निवेशक वहां तक पहुंच ही नहीं पाते। SIP सिर्फ निवेश का तरीका नहीं है, यह लॉन्ग टर्म में इनकम को वेल्थ में बदलने का एक टूल है। लगातार निवेश करते रहने से आप अपने जीवन के अहम लक्ष्यों जैसे रिटायरमेंट या बच्चों की पढ़ाई के लिए फंड तैयार कर सकते हैं।