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Hindenburg-Adani Case: अदाणी की प्रतिभूतियों में आईपीई प्लस ने कभी निवेश नहीं किया

बुच व उनके पति की फंड में हिस्सेदारी के आरोपों को खारिज करते हुए आईआईएफएल ने कहा कि फंड के परिचालन या निवेश निर्णय में कोई निवेशक शामिल नहीं था।

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खुशबू तिवारी   
Last Updated- August 11, 2024 | 10:06 PM IST

Hindenburg-Adani Case: पहले आईआईएफएल वेल्थ मैनेजमेंट के नाम से मशहूर 360-वन डब्ल्यूएएम ने रविवार को अमेरिकी हिंडनबर्ग रिसर्च की ताजा रिपोर्ट से उठे बवाल को शांत करने की कोशिश की। वेल्थ ऐंड ऐसेट मैनेजमेंट फर्म ने कहा कि उसके आईपीई-प्लस फंड-1 (जिसमें सेबी अध्यक्ष माधवी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने निवेश किया था) ने अदाणी समूह के शेयरों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से फंड की पूरी अवधि के दौरान कोई निवेश नहीं किया।

हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में आरोप लगाया है कि आईपीई प्लस फंड का गठन अदाणी के निदेशक ने आईआईएफएल वेल्थ मैनेजमेंट के जरिये भारतीय बाजारों में निवेश के लिए किया था ताकि अदाणी समूह के शेयर की कीमतों को बढ़ाया जा सके।

आईआईएफएल ने कहा कि आईपीई प्लस फंड (मॉरीशस पंजीकृत निवेश कंपनी) मोटे तौर पर ऋण निवेश पर केंद्रित था। वेल्थ मैनेजमेंट फर्म ने कहा कि अपने सर्वोच्च स्तर पर फंड की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां 4.8 करोड़ डॉलर पर पहुंच गई थीं और इसका 90 फीसदी से ज्यादा लगातार बॉन्डों में निवेश किया गया।

बुच व उनके पति की फंड में हिस्सेदारी के आरोपों को खारिज करते हुए आईआईएफएल ने कहा कि फंड के परिचालन या निवेश निर्णय में कोई निवेशक शामिल नहीं था। माधवी पुरी बुच और धवल बुच की हिस्सेदारी इस फंड में आए कुल निवेश का 1.5 फीसदी से भी कम थी।

इस बीच, पुरी बुच और उनके पति ने कहा कि उन्होंने इस फंड में इसलिए निवेश किया था क्योंकि मुख्य निवेश अधिकारी अनिल आहूजा, धवल के बचपन के दोस्त थे और सिटी बैंक, जेपी मॉर्गन और 3आई पीएलसी में साथ काम किया था और उनका दशकों का निवेश करियर रहा है।

आहूजा और धवल ने स्कूल में और बाद में आईआईटी दिल्ली में एक साथ अध्ययन किया। दंपति ने कहा कि उन्होंने इस फंड से अपने निवेश को तब निकाल लिया था जब आहूजा ने साल 2018 में इस फर्म में अपना पद छोड़ दिया था। दंपति ने यह भी पुष्टि की है कि फंड ने अदाणी समूह की कंपनी के किसी बॉन्ड, इक्विटी या डेरिवेटिव में निवेश नहीं किया।

360-वन ने कहा कि आईपीई प्लस-1 फंड पूरी तरह से अनुपालन करने वाला और विनियमित फंड था, जिसका परिचालन 2013 से 2019 के बीच हुआ। पुरी बुच और उनके पति ने फंड में अपना खाता 2015 में खुलवाया जब वे एनआरआई थे और सिंगापुर में रहते थे। बताया जाता है कि पति धवल के पास सिंगापुर की नागरिकता है।

कस्टोडियन व उद्योग के विशेषज्ञों ने कहा कि विदेश में रहने वाले भारतीयों के बीच आम चलन यह है कि वे ऐसी निवेश कंपनी के जरिये देश में निवेश करते हैं। उन्होंने कहा कि किसी विदेशी फंड में निवेश को सुर्खियां बटोरने के लिए इस तरह बताया जा रहा है जैसे फंड में उसकी हिस्सेदारी हो।

एक विदेशी बैंक के अधिकारी ने कहा कि वास्तव में प्रबंध शेयरधारक या सामान्य साझेदार के पास कंपनी का स्वामित्व होता है। वे निवेश इकट्ठा करते हैं और प्रबंधन शुल्क लेते हैं, वहीं भागीदारी वाले शेयरधारक या सीमित साझेदारी महज निवेशक होते हैं, जिनके पास प्रबंधन या मतदान का अधिकार नहीं होता।

हिंडनबर्ग ने पुरी बुच के उस फैसले पर सवाल उठाया है कि उन्होंने देश के साख वाले म्युचुअल फंड के बजाय एफपीआई का इस्तेमाल किया। उद्योग के प्रतिभागियों ने कहा कि एफपीआई को बेहतर विनियमित और ज्यादा भरोसेमंद माना जाता है। एनआरआई भी फेमा अनुपालन के तहत देसी म्युचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं।

हिंडनबर्ग की ताजा रिपोर्ट अदाणी की फर्मों की जांच आदि को लेकर माधवी पुरी बुच की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करती है, जिसने इन फंडों के जरिये रकम की कथित हेराफेरी की। रिपोर्ट में कहा गया है कि एफपीआई में उनकी हिस्सेदारी की वजह से ही इस मामले में ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई।

First Published : August 11, 2024 | 10:06 PM IST