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कंज्यूमर डिस्क्रिशनरी की वृद्धि, मार्जिन में नरमी

Published by
राम प्रसाद साहू
Last Updated- April 02, 2023 | 10:53 PM IST

कंज्यूमर डिस्क्रिशनरी क्षेत्र के लिए अक्टूबर-दिसंबर तिमाही (वित्त वर्ष 2022-23) सुस्त रही और इस पर उपभोक्ताओं के कमजोर सेंटिमेंट का असर पड़ा। विभिन्न कीमत वर्ग में ज्यादातर उप-श्रेणियों ने इसका खमियाजा भुगता।

वित्त वर्ष 23 की तीसरी तिमाही में सुस्त मांग के हालात और परिचालन को देखते हुए ब्रोकरेज फर्मों का आशंका है कि यह रुख वित्त वर्ष 2023-24 में लंबे समय तक रहेगा।

फिलिपकैपिटल का अनुमान है कि कंज्यूमर डिस्क्रिशनरी कंपनियां वित्त वर्ष 2024 में शिथिल पड़ जाएंगी क्योंकि स्वविवेक के अनुसार होने वाले उपभोग (डिस्क्रिशनरी कंजम्पशन) पर उच्च उपभोक्ता कीमत इंडेक्स आधारित महंगाई, नौकरियों में छंटनी/नियुक्ति में नरमी, होम लोन की ब्याज दरों में तीव्र बढ़ोतरी, स्थानीय कंपनियों की वापसी और महामारी के समय की गई बचत खत्म होने से महंगे पेंट व आभूषणों की खरीद पर असर पड़ रहा है।

मार्जिन पर भी दबाव पड़ सकता है क्योंकि इसमें हुई रिकवरी उत्पादों के प्रमोशन, छूट और प्रवेश स्तर के उत्पादों की ज्यादा बिक्री के कारण है।

हिमांशु नैयर की अगुआई में सिस्टमैटिक्स शेयर्स ऐंड स्टॉक्स के विश्लेषकों का मानना है कि डिस्क्रिशनरी को लेकर मध्यावधि का घटनाक्रम हालांकि आकर्षक है, लेकिन वित्त वर्ष 24 में आय में और कटौती हो सकती है, खास तौर से मार्जिन में, जो इस क्षेत्र की दोबारा रेटिंग कर सकता है और हालिया कमजोर प्रदर्शन को और गहरा सकता है।

अभी तक कंपनियों ने हालांकि विस्तार योजना में देरी या उसे ठंडे वस्ते में डालने के संबंध में किसी तरह का संकेत नहीं दिया है, लेकिन ब्रोकरेज फर्मों ने कहा कि अगर इस क्षेत्र में मंदी बरकरार रहती है तो ऐसा देखने को मिल सकता है।

सिस्टमैटिक्स शेयर्स ऐंड स्टॉक्स का मानना है कि क्विक सर्विस रेस्टोरेंट (क्यूएसआर) और खुदरा परिधानों में सुस्त वृद्धि का मामला अस्थायी हो सकता है। लेकिन अगर यह कुछ और महीने बना रहा तो उद्योग की ज्यादातर कंपनियों की विस्तार योजना पर खासा असर हो सकता है।

डिस्क्रिशनरी के उम्दा प्रदर्शन की वापसी हालिया विशेषता रही है, लेकिन कुछ ब्रोकरेज फर्में अब कंज्यूमर स्टेपल क्षेत्र पर दांव लगा रही हैं ताकि वह कंज्यूमर डिस्क्रिशनरी को पीछे छोड़ दे और ये फर्में ज्यादा सुरक्षित क्षेत्र पर दांव को प्राथमिकता दे रही हैं।

आनंद शाह की अगुआई में ऐक्सिस कैपिटल के कुछ विश्लेषकों ने  कहा, नौ तिमाहियों में उम्दा प्रदर्शन के बाद डिस्क्रिशनरी कंपनियों की राजस्व वृद्धि सालाना आधार पर स्टेपल कंपनियों जैसी हो गई, वहीं परिचालन के मोर्चे पर प्रदर्शन सालाना आधार पर स्थिर रही, पर क्रमिक आधार पर तेजी से नरम हुई।

अल्पावधि के लिहाज से ब्रोकरेज कंपनियों का डिस्क्रिशनरी के मुकाबले स्टेपल कंपनियों का शेयर खरीदना जारी है। खास तौर से त्योहारी सीजन के बाद डिस्क्रिशनरी मांग में नरमी क्यूएसआर, रिटेल और अपैरल श्रेणियों मे देखी गई।

बीएनपी पारिबा के भारतीय इक्विटी शोध प्रमुख कुणाल वोरा ने कहा, वित्त वर्ष 23 की तीसरी तिमाही में भारत के उपभोग का रुख नरम हुआ, लेकिन मास-मार्केट श्रेणी पर ग्रामीण मंदी और उपभोक्ताओं की कम खरीद का असर जारी रहा, हालांकि क्रमिक आधार पर इसमें सुधार दर्ज हुआ है।

अक्टूबर में मजबूती के बाद क्यूएसआर के लिए वित्त वर्ष 23 की तीसरी तिमाही में मांग में गिरावट निराशाजनक रही। कमजोर परिचालन मीट्रिक्स बने रहने के आसार हैं क्योंकि वित्त वर्ष 23 की मार्च तिमाही के पहले दो महीनों में मांग की रफ्तार सुस्त बनी रही।

सेम-स्टोर बिक्री सुस्त रही और कुल बिक्री में इजाफा स्टोर को  जोड़ने के चलते हुआ। इसके अलावा कमजोर ऑपरेटिंग लिवरेज और गेहूं व चीज की महंगाई के कारण उच्च लागत का सकल व परिचालन मुनाफा मार्जिन पर असर रहा। लागत के दबाव के बावजूद कीमत बढ़ाने को लेकर कंपनियों का रुख सतर्कता भरा है  क्योंकि इसका वॉल्यूम पर असर होता है।

परिधानों की खुदरा श्रेणी में मांग हालांकि कमजोर आर्थिक हालात और देर तक ठंड के कारण प्रभावित हुई। वी-मार्ट, शॉपर्स स्टॉप और पेज इंडस्ट्रीज ने तीन साल में बिक्री में कमी दर्ज की है, वहीं आदित्य बिड़ला फैशन ऐंड रिटेल और ट्रेंट की रफ्तार बनी रही, यह कहना है आईआईएफएल के विश्लेषकों का। उन्होंने कहा कि विभिन्न कंपनियों के मार्जिन में सिकुड़न ऋणात्मक ऑपरेटिंग लिवरेज के कारण हुई।

आभूषण क्षेत्र ने बेहतर किया। उच्च आधार के कारण वृद्धि‍ हालांकि नरम  रही, लेकिन तीन साल में बिक्री ठीक-ठाक रही। बीएनपी पारिबा रिसर्च ने बताया है कि नवंबर व दिसंबर में मांग पर सोने की कीमतों के उतारचढ़ाव का असर पड़ा। खरीदार जनवरी में लौटे जबकि सोने की कीमतें मजबूत बनी रही। उच्च आधार के बाद भी  वित्त वर्ष 23 की तीसरी तिमाही में सालाना आधार पर बिक्री ठीक-ठाक रही और ज्यादातर संगठित कंपनियों की तीन साल की औसत  सालाना वृद्धि दो अंकों में रही।

First Published : April 2, 2023 | 10:53 PM IST