बाजार नियामक सेबी ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के लिए समय में छूट दी है, जो अहम बदलाव (मैटीरियल चेंज) के खुलासे से जुड़ी है। इसके अलावा नियामक ने उन एफपीआई के लिए नियम अधिसूचित किए हैं, जिनका पंजीकरण समाप्त हो चुका है। इससे भारतीय बाजार में वे अपने निवेश की बिकवाली कर सकेंगे।
मैटीरियल चेंजेज को टाइप-1 के तौर पर वर्गीकृत किया गया है।। इसमें पुनर्गठन, न्यायाधिकार क्षेत्र में बदलाव, विलय या अधिग्रहण संबंधी परिवर्तन, एफपीआई को दी गई छूट पर होने वाला असर आदि शामिल हैं। इनका खुलासा इन बदलावों के सात कार्यदिवस के भीतर करना होगा जबकि इसके समर्थन में दस्तावेज 30 दिन के भीतर मुहैया कराने होंगे।
इससे पहले कई अहम खुलासा जल्द से जल्द करना अनिवार्य था। कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि सात दिन की अवधि एफपीआई के लिए राहत की बात है। संशोधित नियमों के साथ सेबी ने दो श्रेणियों में मैटीरियल चेंजेज को वर्गीकृत किया है। टाइप-1 श्रेणी में रिपोर्टिंग का मामला टाइप-2 के मुकाबले कम से कम समय में करने की बात है।
सेबी ने हालांकि टाइप-1 मैटीरियल चेंजेज के लिए 14 विंदुओं की सूची तैयार की है, बाकी अन्य बदलाव टाइप-2 श्रेणी में आएंगे और इनकी पुष्टि के लिए दस्तावेज के साथ 30 दिन के भीतर जानकारी देनी होगी। टाइप-1 के तहत कुछ बदलावों से एफपीआई को नया पंजीकरण कराना होगा।
जिन एफपीआई का पंजीकरण वैध नहीं है उनके लिए सेबी ने भारत में अपनी होल्डिंग बेचने और डेरिवेटिव में अपनी ओपन पोजीशन समाप्त करने के लिए 360 दिन की अवधि मुहैया कराया है। जून 2023 में 55 एफपीआई ऐसे थे जिनका पंजीकरण समाप्त हो चुका था और उनके डीमैट खाते में करीब 3,300 करोड़ रुपये की प्रतिभूतियां थीं।
सेबी ने कहा कि जिन एफपीआई का पंजीकरण प्रमाणपत्र वैध नहीं है और जिन्होंने प्रतिभूतियां नहीं बेची हैं या भारत में डेरिवेटिव में ओपन पोजीशन की बिकवाली नहीं की है तो इन नियमों के प्रावधानों के तहत ऐसा माना जाएगा कि उनने प्रतिभूतियों को बट्टे खाते में इस तरह से डाल दिया है जो समय-समय पर उनके बोर्ड ने बताया हो। बाजार नियामक ने ऐसे एफपीआई के लिए विलंब शुल्क के भुगतान के साथ पंजीकरण का प्रावधान भी किया है।