चीन में निमोनिया से पीड़ित बच्चों के अस्पताल में भर्ती होने की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस बीच भारत में कोई भी मरीज नहीं मिला है। देश में इस साल जनवरी से किए गए कुल 611 जांच नमूनों में कोई भी संक्रमित नहीं मिला है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बयान जारी कर बताया कि नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में जांचे गए कुल 611 नमूनों में माइकोप्लाज्मा निमोनिया का एक भी मामला नहीं पाया गया है। यह जांच व्यापक सांस संबंधी बीमारियों पर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की निगरानी का हिस्सा थी। इसमें मुख्य रूप से गंभीर सांस संबंधी बीमारी (एसएआरआई) पर ध्यान दिया गया था जो ऐसी बीमारी में लगभग 95 फीसदी जिम्मेदार होता है। जांच आरटी-पीसीआर द्वारा की गई। आईसीएमआर भारत का शीर्ष चिकित्सा अनुसंधान निकाय है।
स्वास्थ्य मंत्रालय का यह बयान एक खबर के बाद आया है जिसमें कहा गया था इस साल अप्रैल से सितंबर के बीच दिल्ली के एम्स ने चीन के जैसे निमोनिया से जुड़े सात जीवाणुओं की पहचान की थी। हालांकि, बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा इस बाबत पूछे गए सवाल का एम्स ने कोई जवाब नहीं दिया।
बयान में कहा गया है, ‘यह स्पष्ट किया जाता है कि इन सात मामलों का चीन के साथ-साथ दुनिया के कई हिस्सों से हाल में बच्चों को हुई सांस संबंदी परेशानी से कोई संबंध नहीं है। अप्रैल से सितंबर 2023 यानी छह महीनों के दौरान दिल्ली एम्स में चल रहे अध्ययन में सात मामलों का पता चला है मगर यह चिंता का कारण नहीं है।’
डॉक्टरों ने कहा कि निमोनिया के मामलों में ऐसी वृद्धि नहीं हुई है जिसपर चिंता जताई जा सके।
मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली के प्रमुख निदेशक और पल्मोनोलॉजी विभाग के प्रमुख विवेक नांगिया ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि माइकोप्लाज्मा एक सामान्य जीवाणु है। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि निमोनिया के लगभग 30 फीसदी रोगियों में माइकोप्लाज्मा संक्रमण होता है। उन्होंने कहा, ‘मैं यह नहीं कहूंगा कि संक्रमितों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वायु प्रदूषण और वायरल संक्रमण फैलने के कारण इस समय हमारे पास निमोनिया और सांस संबंधी बीमारियों के मरीज पहुंच रहे हैं। हाल के दिनों में सार्स-कोव2 के अलावा कोई नई बीमारी नहीं आई है।’
यशोदा हॉस्पिटल, हैदराबाद में कंसल्टेंट इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी ऐंड स्लीप मेडिसिन विश्वेश्वरन बालासुब्रमण्यम ने जानकारी दी कि उन्होंने पिछले महीने निमोनिया के मामलों में वृद्धि देखी मगर कोई भी मरीज गंभीर नहीं था। उन्होंने कहा कि अब निमोनिया के मरीजों की संख्या कम हुई है। उन्होंने कहा, ‘निमोनिया में जीनोम सिक्वेंसिंग से संक्रमण के लिए जिम्मेदार सूक्ष्मजीवों की आनुवंशिक संरचना समझा जाता है। हम नियमित रूप से असामान्य जीवाणु जीवों और वायरल संक्रमण की पहचान के लिए भी जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए स्वाब भेजते हैं।’
वहीं दूसरी ओर, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूशन के पल्मोनोलॉजी विभाग के निदेशक मनोज गुप्ता ने कहा कि कई बार वह एलिसा जांच के लिए नमूने नहीं भेजते हैं क्योंकि सेप्टम और ब्लड कल्चर जैसे परीक्षण भी होते हैं। उन्होंने कहा, ‘निर्धारित एंटीबायोटिक्स आम तौर पर माइकोप्लाज्मा को कवर करते हैं और इसलिए इसका अलग से इलाज करने की जरूरत नहीं होती है।’ डॉक्टर ने कहा कि अभी माइकोप्लाज्मा के लिए कोई सलाह नहीं दी गई है।