सरकार ने एक बड़े कदम के तहत विदेशी निवेश को अभूतपूर्व ढंग से खोल दिया है।
आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने एक नीतिगत फैसला दिया कि कोई भी भारतीय कंपनी, जिसमें विदेशी स्वामित्व 50 फीसदी से अधिक नहीं हो और जिसमें विदेशी भागीदार को बोर्ड में बड़े पैमाने पर निदेशकों को नियुक्त करने का अधिकार प्राप्त न हो, अन्य भारतीय कंपनियों में बेरोक-टोक निवेश कर सकती है।
ऐसे निवेश को किसी भी तरीके से विदेशी निवेश नहीं समझा जाएगा। औद्योगिक नीति एवं संवर्ध्दन विभाग (डीआईपीपी) द्वारा जारी एक प्रेस नोट में सरकार ने कहा है कि जब तक भारतीय कंपनी विदेशी निवेशकों के स्वामित्व (50 फीसदी से अधिक इक्विटी का स्वामित्व) या विदेशी निवेशकों द्वारा नियंत्रित (निदेशकों को नियुक्त करने का अधिकार) है, तो इसके द्वारा अन्य भारतीय कंपनियों में किया जाने वाले निवेश को विदेशी निवेश नहीं समझा जाएगा।
अगर किसी भारतीय कंपनी में किसी विदेशी का न तो ‘मालिकाना हक’ है और न ही उस पर ‘नियंत्रण’, तो उस कंपनी द्वारा किए जाने वाले निवेश को भारतीय कंपनी द्वारा किया गया निवेश समझा जाएगा। ‘नियंत्रण’ शब्द को बड़ी तादाद में निदेशकों को नियुक्त किए जाने की क्षमता के तौर पर परिभाषित किया गया है। डीआईपीपी की ‘स्वामित्व’ की परिभाषा भी बिल्कुल यही बात कहती है।
किसी भारतीय कंपनी, जिसमें विदेशी निवेश क्षेत्रीय सीमाओं के तरीके द्वारा नियंत्रित है, में विदेशी निवेशक स्वीकृत क्षेत्रीय सीमा की पूर्ण मात्रा में प्रत्यक्ष इक्विटी हिस्सेदारी ले सकता है। इस दृष्टिकोण का दूसरा पहलू भी है। भले ही कई असंबंधित निवेशक भारतीय कंपनी में एक साथ 50 फीसदी से अधिक की हिस्सेदारी रखते हैं तो भारतीय कंपनी को विदेशी निवेशक के तौर पर माना जाएगा।
इसलिए ऐसी भारतीय कंपनी द्वारा अन्य भारतीय कंपनी में किया गया कोई भी निवेश आनुपातिक निवेश के बजाय पूरी तरह विदेशी निवेश समझा जाएगा। उदाहरण के लिए, अगर भारतीय कंपनी में विदेशी भागीदारी 51 फीसदी है और यह कंपनी किसी अन्य भारतीय कंपनी में 26 फीसदी का निवेश करती है तो दूसरी कंपनी में विदेशी निवेश 26 फीसदी का 51 फीसदी नहीं समझा जाएगा, बल्कि इसे 26 फीसदी के विदेशी निवेश के रूप में समझा जाएगा।
इस दृष्टिकोण की कई चुनौतियां भी हैं। हालांकि ऐसे विदेशी निवेशक के साथ कारोबार के लिए यह एक वैध तरीका हो सकता है जो भारतीय कंपनी में बड़ी हिस्सेदारी रखता है तथा और निवेश के लिए अपनी सहयोगी कंपनियों का इस्तेमाल करता है। बोर्ड-संचालित भारतीय संस्थागत कंपनियों की तादाद अच्छी-खासी है जिन्होंने विदेशी निवेश आकर्षित किया है और उनके साथ इसी तरह का व्यवहार किया जाएगा।
उदाहरण के लिए, सरकार का नया दृष्टिकोण हिन्दुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड और आईसीआईसीआई लिमिटेड के बीच भेद नहीं करेगा। इनमें से पहली कंपनी स्पष्ट रूप से एक विदेशी कंपनी की सहयोगी कंपनी है वहीं बाद वाली एक भारतीय कंपनी है जिसका बहुलांश स्वामित्व विदेशी हाथों में है।
डीआईपीपी के नए दृष्टिकोण में एक और अनियमितता है। विदेशी निवेशकों के स्वामित्व वाली या नियंत्रण वाली भारतीय कंपनी द्वारा पूर्ण कब्जे के मामले में पूर्ण स्वामित्व वाली सहयोगी कंपनियों में निवेश के लिए एक अपवाद है।
पूर्ण स्वामित्व वाली सहयोगी कंपनी में विदेशी इक्विटी हिस्सेदारी मूल कंपनी में विदेशी इक्विटी हिस्सेदारी के स्तर के मिरर इमेज के रूप में समझा जाएगा। अगर 51 फीसदी के विदेशी स्वामित्व वाली कोई भारतीय कंपनी किसी अन्य भारतीय कंपनी की इक्विटी में 100 फीसदी का निवेश करती है तो बाद वाली कंपनी में विदेशी नियंत्रण 51 फीसदी समझा जाएगा।
लेकिन अगर 51 फीसदी के विदेशी स्वामित्व वाली भारतीय कंपनी अपनी सहयोगी कंपनी में 5 फीसदी हिस्सेदारी अन्य भारतीय निवेशक को दे देती है और 95 फीसदी का नियंत्रण रखती है तो सहयोगी कंपनी में विदेशी निवेश 95 फीसदी समझा जाएगा। निश्चित रूप से यह विदेशी निवेशकों के लिए अपनी हिस्सेदारी अन्य भारतीय निवेशकों के साथ साझा करने के लिए निरुत्साहित करता है।
यह स्पष्ट है कि यह सब सिर्फ उन क्षेत्रों में प्रासंगिक होगा जिनमें विदेशी स्वामित्व नियंत्रित है। अभी भी कई समस्याएं बरकरार हैं जिन्हें डीआईपीपी को सुलझाए जाने की जरूरत है।
(लेखक जेएसए, एडवोकेट्स ऐंड सॉलिसिटर्स के पार्टनर हैं।)