वीवी गिरि नैशनल लेबर इंस्टीट्यूट और भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की एक संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, 4 प्रमुख नियोक्ता संघों के सदस्य कानूनी सुधारों के बजाय प्रशासनिक श्रम सुधारों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं।
यह सरकार द्वारा प्रशासनिक सुधार की लोकप्रियता को दर्शाता है, जिसका मकसद अनुपालन बोझ को कम कर कारोबार सुगमता को बढ़ावा देना है। सरकार द्वारा किए श्रम सुधार के प्रभाव पर किए गए अध्ययन से यह जानकारी सामने आई है।
हालांकि रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सिर्फ 20 प्रतिशत नियत अवधि की नौकरियों (एफटीई) का नवीकरण होता है। इसका मतलब साफ है कि 80 प्रतिशत एफटीई अनुबंध खत्म होने पर बेकार हो जाते हैं। रिपोर्ट में चार नियोक्ता संघों, भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (एसोचैम), भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई), भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) और पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई) के चार विधायी सुधारों पर विचार मांगे गए थे।
इन विधायी सुधारों में औद्योगिक विवाद अधिनियम (1947) के तहत सीमा में 100 से 300 तक की वृद्धि, कारखाना अधिनियम (1948) के तहत बिजली के साथ सीमा में 10 से 20 और बिना बिजली के 20-40 की वृद्धि, ठेका श्रम (विनियमन और समापन) अधिनियम, 1970 के तहत सीमा में 20 से 50 तक की वृद्धि और कपड़ा और परिधान क्षेत्र में एफटीई अनुबंध की शुरुआत शामिल था।
इसी तरह इसमें 4 प्रमुख प्रशासनिक सुधारों- अनुपालन का स्व-प्रमाणन, एकल खिड़की मंजूरी, पारदर्शी निरीक्षण प्रणाली और पंजीकरण, रिटर्न और लाइसेंस की ऑनलाइन फाइलिंग पर भी उनके विचार मांगे। रिपोर्ट में बताया गया कि देश में एफटीई अनुबंध बढ़ रहे हैं। हालांकि सीआईआई की सदस्य कंपनियों में दी गई नई नौकरियों में केवल तीन फीसदी में एफटीई शामिल था, जबकि फिक्की के सदस्यों की आधी नौकरियों में एफटीई था।