सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि खोड़े डिस्टिलरीज लिमिटेड एक बोर्ड प्रस्ताव के बाद अपने शेयरधारकों को राइट इश्यू के आवंटन पर उपहार कर चुकाने के लिए जिम्मेदार नहीं है।
इसके विपरीत कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले में कंपनी की अपील को रद्द कर दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि इस आवंटन का मतलब शेयरों का सृजन है और यह स्थानांतरण के लिए राशि से संबद्ध नहीं है।
फैसले में यह भी कहा गया है कि कर विभाग ने पूरे मामले को गड़बड़ कर दिया है और आय कर, उपहार कर और संपत्ति कर के आह्वान पर कोई धन नहीं दिया गया है। न्यायालय की ओर से कहा गया है, ‘इस मामले में भ्रम बना हुआ है और इसका इसका तर्क परस्पर विरोधी है।’
उदाहरण के लिए इसमें ‘आवंटन’ और ‘परित्याग’ के बीच व्यापक अंतर नहीं रखा गया है। इस मामले में उपहार कर चुकाने की जिम्मेदारी शेयरधारक पर होगी। अपीली निकाय द्वारा स्पष्टीकरण के बावजूद विभाग ने अभी तक रीनाउंसर पर उपहार कर कानून लागू नहीं किया है।
बीमा कंपनी ब्याज चुकाने को जिम्मेदार
यदि वर्कमेंस कम्पनसेसन एक्ट के संदर्भ में इसके विपरीत कोई अनुबंध नहीं किया गया है तो बीमा कंपनी बीमित राशि पर ब्याज चुकाने के लिए जिम्मेदार होगी।
सर्वोच्च न्यायालय ने ‘कमला चतुर्वेदी बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी’मामले में सुनाए गए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को दरकिनार कर दिया है।
उच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि एक्ट के तहत बीमा कंपनी श्रम अदालत द्वारा तय की गई 2.21 लाख रुपये की राशि पर ब्याज चुकाए जाने के लिए जिम्मेदार नहीं है।
इस मामले में एक अपील पर सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को गलत करार दिया है। यह दुर्घटना मोटर वाहन के कारण हुई और इसलिए मोटर वेहीकल्स एक्ट के प्रावधान इसमें लागू होंगे और पॉलिसी भी इसमें कोई अपवाद नहीं है। इसलिए बीमा कंपनी को भी संबद्ध राशि पर ब्याज चुकाना होगा।
सिने निर्माताओं को कर राहत
सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले को दरकिनार कर दिया है जिसमें आय कर अधिनियम की धारा 32एबी, धारा 80एचएच और धारा 80आई के सदर्भ में सिने फिल्म निर्माताओं को आय कर लाभ देने से इनकार कर दिया था।
‘इंडिया सिने एजेंसीज बनाम कमिश्नर ऑफ इन्कम टैक्स’ मामले में न्यायालय ने अपेक्षित आकार के छोटे रॉल में फोटोग्राफिक फिल्मों के बड़े रॉल के परिवर्तन की प्रक्रिया के तहत निर्णय दिया था। सिने कारोबारियों ने दलील दी थी कि वे लाभ प्राप्त करने के हकदार हैं, क्योंकि वे नए उत्पाद बना रहे हैं।
उच्च न्यायालय ने इन कारोबारियों को ये लाभ दिए जाने से इनकार कर दिया था और इसलिए कारोबारियों ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया है।
सुनवाई के लिए दस्तावेज जरूरी
सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय से नागार्जुन कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर अपील पर फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा है, क्योंकि कंपनी ने इस मामले से संबद्ध जरूरी दस्तावेज नहीं सौंपे थे।
कंपनी ने लेवलिंग और ग्रेडिंग जैसे कार्यों को पूरा करने के लिए एनटीपीसी के साथ भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल) से ठेके हासिल किए थे।
इस उद्देश्य के लिए लीज होल्डर से जमीन की खुदाई की जानी थी। उस वक्त माइन्स ऐंड जियोलॉजी के निदेशक की ओर से बीएचईएल और ठेकेदारों को पांच गुना की पेनाल्टी के साथ फीस के लिए डिमांड नोटिस जारी किए गए। जब इन डिमांड नोटिस को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई तो उसने कंपनी के खिलाफ एक आदेश जारी कर दिया।
कंपनी ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर यह तर्क दिया कि खनन रिपोर्ट और निरीक्षण नोट जैसे कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज मामले की सुनवाई से समक्ष नहीं सौंपे गए थे।
सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय से कंपनी द्वारा दस्तावेज सौंपे जाने के बाद इस मामले की दोबारा सुनवाई करने को कहा है।
मध्यस्थ की नियुक्ति
भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एएस आनंद को वीजा इंटरनेशनल और कंटिनेंटल रिसोर्सेज के बीच एक विवादित मामले में मध्यस्थ नियुक्त किया गया है।
दोनों कंपनियों ने उड़ीसा माइनिंग कॉरपोरेशन के सहयोग से गंधमर्दन इलाके में एकीकृत एल्युमिनियम परिसर स्थापित करने के लिए ‘वीजा एल्युमिनियम लिमिटेड’ नाम से एक कंपनी बनाने के लिए 2005 में एक समझौता किया था।
दोनों पार्टियों के बीच विवाद पैदा हो गया और एक मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए वीजा इंटरनेशनल सर्वोच्च न्यायालय में चली गई थी।
स्कूल फीस पर कर का मामला
सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि किसी स्कूल की ओर से छात्रों से वसूली गई फीस पर पंचायत द्वारा कर नहीं लगाया जा सकता।
‘विवेकानंद स्कूल बनाम प्रेसीडेंट ऑफ जिला पंचायत’ मामले में उत्तराखंड पंचायत कानून के तहत स्कूल द्वारा छात्रों से वसूली गई फीस पर कर लगाया गया था।
उच्च न्यायालय ने कर लगाए जाने को वैध ठहराते हुए कहा था कि स्कूल एक वाणिज्यिक संस्था है। लेकिन एक अपील पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के इस फैसले को रद्द कर दिया और अधिकारियों से स्कूल की आय का पुनर्मूल्यांकन करने को कहा गया है।