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ऑडिट की खामियों से बचने के लिए सही उपाय जरूरी

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 10, 2022 | 9:10 PM IST

कंपनियों में हाल में कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनसे शेयरधारकों और उपयोगकर्ताओं के बीच ऑडिट पेशे में विश्वास का संकट गहराया है। इस समस्या का निष्पक्ष तरीके से समाधान निकालना होगा।
सत्यम प्रकरण इसका एक प्रमुख उदाहरण है। पेशा, नियामक और सभी संबद्ध नियामकों को पहले यह पता लगाना होगा कि संकट के समाधान के लिए सही दवा क्या है? किसी पेशेवर मसले के लिए पेशेवर समाधान की जरूरत होती है। इसलिए सार यह है कि मौजूदा समस्या के समाधान के लिए इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) को स्वयं आगे आना चाहिए।
प्राथमिक कदम के तौर पर सरकार को आईसीएआई को सशक्त बनाना चाहिए। पिछले 6 दशकों में इस संस्थान ने श्रेष्ठ कार्य किया है। पिछले दशक के दौरान इसने अकाउंटिंग स्टैंडड्र्स या ऑडिटिंग स्टैंडड्र्स की स्थापना जैसे कुछ बुनियादी मामलों पर काम किया है। सरकार ने एनएसीएएस जैसे कई निकायों का गठन किया।
सरकारी मंजूरी की लंबी प्रक्रिया के जरिये संस्थान के पाठयक्रम में बदलाव लाना है जिनमें से ज्यादातर तकनीकी मामले हैं, जिन्हें आईसीएआई को सुलझाना चाहिए। ऑडिटिंग ढांचे की कथित समस्याओं के संभावित समाधान के बारे में कुछ मिथक भी हैं। यहां मैं इनमें से कुछ के बारे में बता रहा हूं।
ऑडिट फर्मों का रोटेशन
हालांकि यह समाधान बेहद आसान लगता है और हर कुछ साल में कंपनियां ऐसा करने की कोशिश भी करती हैं, लेकिन कार्यान्वयन के लिहाज से यह सरल काम नहीं है। जी-20 के सभी देशों में सिर्फ इटली ही ऐसा देश है जिसने फर्म रोटेशन को अनिवार्य बनाया और इसे आजमाया। स्पेन, ब्राजील और कोरिया इसे त्याग चुके हैं। व्यावहारिक समस्या यह है कि ऑडिट को प्रभावी बनाने के लिए ऑडिटर को कंपनी के बारे में अपार ज्ञान होना जरूरी है।
जब कोई ऑडिटर किसी कंपनी में निवेश करता है और इसके कामकाज को लेकर महारत हासिल कर लेता है तो नए ऑडिटर को इस कंपनी में अपनी पकड़ मजबूत बनाने में समय लगता है। उसे फिर से कंपनी की कार्य प्रणाली के बारे में सीखना पड़ता है।
भारत जैसे देश में 30 फीसदी से भी अधिक कंपनियां एकल स्वामित्व वाली हैं और बड़ी तादाद में अन्य कंपनियां छोटे और मझोले व्यवसायों से संबद्ध हैं जो सराहनीय स्वतंत्रता और अखंडता के साथ काफी समय पहले से ही अपने ग्राहकों की सेवा कर रही हैं। ऐसे में रोटेशन से नया ग्राहक आधार सुनिश्चित हुए बगैर कंपनियों में ग्राहकों के खोने का भय बढ़ जाएगा।
ज्वाइंट ऑडिट
जी-20 के सभी देशों में से केवल फ्रांस में ही सामूहिक ऑडिट की परंपरा है। डेनमार्क 2005 में इस समाधान को त्याग चुका है। भारतीय परिदृश्य में सामूहिक ऑडिटरों की जिम्मेदारी के ऑडिटिंग मानक वैश्विक मानकों से काफी अलग हैं। वैश्विक रूप से प्रत्येक ज्वाइंट ऑडिटर पूरी बैलेंस शीट के लिए जिम्मेदार है, लेकिन भारतीय मानकों के मुताबिक प्रत्येक ज्वाइंट ऑडिटर स्वयं द्वारा किए गए कार्य के लिए जिम्मेदार है।
बैलेंस शीट के पाठक यह पता नहीं लगा सकते कि इसमें कौन सा कार्य किस फर्म द्वारा किया गया है। किसी मुसीबत की स्थिति में ऐसी अस्पष्टताएं लापरवाही के लिए जिम्मेदार तथ्यों का पता लगाने के काम में बाधा डाल सकती हैं।
1990-92 का ‘बैंक घोटाला’ इसका एक शानदार उदाहरण है। इस घोटाले में 250 से अधिक ऑडिट फर्मों पर आरोप लगाया गया था, लेकिन इनमें से कुछ ही कंपनियां दोषी पाई गईं। दरअसल, अनिवार्य रोटेशन, आवश्यक ज्वाइंट ऑडिट और किसी सेंट्रल एजेंसी द्वारा नियुक्ति के बावजूद बैंकिंग क्षेत्र में बड़े घोटालों को नहीं रोका जा सकता।
सहकर्मियों की समीक्षा
मौजूदा संदर्भ में श्रेष्ठ तरीका आईसीएआई और अन्य नियामकों द्वारा पीयर रिव्यू को मजबूत और व्यापक बनाया जाना है। हालांकि इस तरीके में समीक्षकों की पसंद को लेकर मतभेद है। प्रभावी परिणाम के लिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि समीक्षक पर्याप्त जानकारी और समान आकार की कंपनियों के साथ कार्य के गहन अनुभव से लैस हो।
अन्यथा पीयर रिव्यू के रास्ते पर चलने वाली संस्था अपनी चमक खो देगी। आईसीएआई को नियमों का कठोरता से पालन सुनिश्चित करना चाहिए और पेशेवर नीतियों का उल्लंघन करने वाली फर्म या व्यक्ति के खिलाफ कदम उठाना चाहिए। आईसीएआई द्वारा हाल में उठाए गए त्वरित कदम इसके सकारात्मक संकेत हैं कि यह संगठन सही रास्ते पर है।
निरीक्षण
भारत में फिलहाल किसी तरह का स्वतंत्र निरीक्षण बोर्ड नहीं है। अन्य विकसित देशों की तरह भारत के लिए भी ऐसे बोर्ड की जरूरत है। यह यूरोपीय संघ की एक अनिवार्य आवश्यकता है और 2010 के बाद वे भारतीय ऑडिटर प्रभावित होंगे जिनकी कंपनियां यूरोपीय संघ मे सूचीबद्ध हैं।
भारत एक ऐसा देश है जिसमें उन फर्मों की तादाद दुनिया में सर्वाधिक है जिन्होंने विभिन्न ईयू एक्सचेंजों में सूचीबद्ध 200 से अधिक कंपनियों का ऑडिट किया है। एक स्वतंत्र निरीक्षण बोर्ड इंटरनेशनल फोरम ऑफ इंडिपेंडेंट ऑडिट रेग्युलेटर्स (आईएफआईएआर) की सदस्यता के लिए आवेदन कर सकता है।
(राहुल रॉय अर्न्स्ट ऐंड यंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं।)

First Published : March 23, 2009 | 6:24 PM IST