सर्वोच्च न्यायालय ने आज कहा कि बेनामी कानून पिछली तिथि से नहीं बल्कि केवल आगे की तारीख से लागू किया जा सकता है। बेनामी कानून को 1 नवंबर, 2016 से लागू किया गया था। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने संशाधित कानून से पहले (प्रभावी तिथि से पूर्व) की गई सभी कार्रवाई को भी दरकिनार कर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय ने 3 साल जेल और भारी जुर्माने से संबंधित कानून के एक प्रावधान को ‘मनमाना’ होने के आधार पर ‘असंवैधानिक’ करार दिया।
अदालत के इस फैसले से कई लोगों, कंपनियों को राहत मिलेगी, जिनके खिलाफ बेनामी कानून के तहत जांच की गई है और उक्त प्रावधान के कारण उन्हें सख्त सजा का सामना करना पड़ रहा था।
28 साल पुराने निष्प्रभावी कानून में संशोधन कर उसे 1 नवंबरी, 2016 से लागू किया गया था और कई कंपनियां बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन कानून पर इस फैसले का इंतजार कर रहे थे।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार तथा हिमा कोहली ने अपने फैसले में कहा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि 1988 के अधिनियम को सख्त देनदारी अपराध बनाने की कोशिश की गई और बेनामी संपत्ति के अलग अधिग्रहण की अनुमति दी। इससे यह सवाल उठता है कि क्या ऐसा आपराधिक प्रावधान, जिससे सरकार ने 28 साल की निष्क्रियता के बाद संपत्तियों को जब्त करने के लिए उपयोग करने का इरादा रखती है, कानून की किताबों में मौजूद हो सकता था। इसमें दुरुपयोग की आशंका है और पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना ऐसे सख्त प्रावधानों का होना बड़ा संवैधानिक प्रश्न खड़ा करता है।’अदालत पहले ही कह चुकी है कि 1988 के इस कानून के तहत आपराधिक प्रावधान मनमाने हैं और लागू करने लायक नहीं हैं। साथ ही 2016 में संशोधन के जरिये लाए गए कानून के तहत उन लेनदेन को जब्त नहीं किया जा सकता जो 5 सितंबर, 1988 और 25 अक्टूबर, 2016 के बीच हुए हैं। ऐसा करना सख्त सजा के बराबर होगा।
आम तौर पर जब पिछली तारीख से जब्ती की जाती है तो यह तर्क दिया जाता है कि ऐसी संपत्ति या साधन का बने रहना समाज के लिए खतरनाक होगा।
अदालत ने कहा कि इस कानून की धारा 3 (आपराधिक प्रावधान) और धारा 5 (जब्ती कार्यवाही) असंवैधानिक थी। इसका मतलब होगा कि 2016 के संशोधन वास्तव में नए प्रावधान और नया अपराध बनाते हैं। इसलिए इस कानून को पिछली तारीख से लागू करने का कोई सवाल ही नहीं है।
बेनामी कानून, 2016 में बेनामी लेनदेन की परिभाषा का विस्तार किया गया है और कठोर जुर्माना लगाया गया है। इससे कई फर्में और लोग जांच के दायरे में आ गए क्योंकि इसे पिछली तारीख से लागू किया गया। कर विभाग ने नकद लेनदेन और संपत्ति सौदों के मामले में इस कानून के तहत हजारों नोटिस जारी किए थे।
शीर्ष अदालत ने यह फैसला कलकत्ता उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की याचिका पर दिया। उच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि 1988 के कानून में 2016 में किए गए संशोधन आगे की तारीख से ही लागू होंगे।