नाटकीय घटनाक्रम के बीच मंगलवार को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस्तीफा दे दिया और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने घोषणा की कि नया मुख्यमंत्री चुनने के लिए बुधवार सुबह विधायी दल की बैठक बुलाई गई है। हालांकि रावत चाहेंगे कि उनके खास धन सिंह रावत उनकी जगह लें। लेकिन इस होड़ में अन्य बहुत से उम्मीदवार शामिल हैं। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, पार्टी नेता अनिल बलूनी, राज्य कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, उत्तराखंड भाजपा महासचिव सुरेश भट्ट और नैनीताल-उधमसिंह नगर से सांसद अजय भट्ट शामिल हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि ‘सभी विकल्प खुले हैं।’
रावत का इस्तीफा उनके लिए अपमानजनक और असामान्य इसलिए रहा क्योंकि सप्ताह की शुरुआत में वह राज्य की राजधानी गैरसैंण में थे, जहां उन्होंने विधानसभा की बैठक बुलाई थी। वह राज्य में 18 मार्च को भाजपा सरकार के चार साल पूरे होने का जश्न मनाने की योजनाओं को अंतिम रूप देने जा रहे थे। मंगलवार सुबह पार्टी आलाकमान के निर्देशों के बाद उन्होंने जल्दबाजी में विधानसभा सत्र स्थगित कर गैरसैंण से उड़ान भरने के लिए सरकारी हेलीकॉप्टर मंगवाया और अपना इस्तीफा राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को सौंप दिया। कुछ दिन पहले ही पार्टी नेताओं ने उनके नेतृत्व में भरोसा जताया था। राज्य इकाई के प्रभारी दुष्यंत गौतम ने नेतृत्व बदलाव की खबरों को खारिज किया था और कहा था, ‘उन्हें (रावत को) बदलने की कोई वजह नहीं है।’
गौतम ने महज दो दिन पहले ही कहा था, ‘पार्टी उन्हें क्यों बदलेगी? उन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है। उन्होंने बहुत से अहम जन कल्याणकारी कार्यक्रम शुरू किए हैं, जैसे एक रुपये में पानी का कनेक्शन देना। राज्य को देश में पहला ऐसा राज्य बनाना, जिसने प्रदेश के सभी अस्पतालों में पांच लाख रुपये तक के मुफ्त इलाज के लिए सभी को अटल आयुष्मान स्वास्थ्य कार्ड दिए हैं।’
भाजपा के लिए उत्तराखंड में बहुतायत की समस्या है। इसने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल की थी। वर्ष 2000 में राज्य बनने के बाद किसी भी पार्टी को इतनी प्रचंड जीत नहीं मिली थी। इस प्रचंड जीत (70 सदस्यीय विधानसभा में 57 सीट) की वजह से पार्टी को निर्दलीयों या बहुजन समाज पार्टी (बसपा) या उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) जैसी छोटी पार्टियों के समर्थन की जरूरत नहीं थी। उक्रांद राज्य के निर्माण से जुड़ी रही है। यह एक ऐसा दल है, जिसने हमेशा दबाव समूह का काम किया है।
इसके बावजूद त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे से यह संकेत मिलता है कि पार्टी को प्रचंड बहुमत मिलने के बावजूद मतभेदों की समस्या खत्म नहीं हुई है। वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा को 46.5 फीसदी मत मिले थे और इसने विपक्षी पार्टी कांग्रेस को भारी अंतर से हराया था। कांग्रेस को महज 11 फीसदी मत मिले थे। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले अपनी सीटें बचाए रखने में सफल रहे थे।
लेकिन इन वर्षों के दौरान रावत की आलोचनाएं भी हुई हैं। ऐसे आलोचकों में नाराज चल रहे पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी और स्वतंत्र विचारों वाले भगत सिंह कोश्यारी शामिल हैं। कोश्यारी महाराष्ट्र के राज्यपाल के पद पर रहते हुए भी उत्तराखंड की राजनीति में गहरी रुचि लेते रहे हैं। मेजर जनरल खंडूड़ी राज्य सरकार के कुछ फैसलों की आलोचना में मुखर रहे हैं। इनमें से एक देवप्रयाग में निजी डिस्टिलरी को मंजूरी देने का फैसला है। देवप्रयाग वह जगह है, जहां भागीरथी और अलकनंदा नदियां मिलकर गंगा नदी बनाती हैं। दूसरी तरफ रावत ने इसका पुरजोर समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि यह संयंत्र स्थापित करने वाली कंपनी केवल निर्यात गुणवत्ता की शराब का उत्पादन करेगी और यह इकाई नदियों के संगम से 40 किलोमीटर दूर है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था, ‘यह इकाई रोजगार पैदा करेगी।’ इतने ही सार्वजनिक रूप से खंडूड़ी ने कहा कि देवप्रयाग में शराब इकाई लगाना उत्तराखंड के लिए ‘आत्महत्या के समान’ है और राज्य शराब इकाई के लिए उपयुक्त नहीं है। भाजपा नेता और सांसद अजय भट्ट ने कहा कि देवप्रयाग में शराब उत्पादन का फैसला ‘बहुत ऌगलत’ था। जब 2016 में कांग्रेस सरकार सत्ता में थी, तब भाजपा ने वहां शराब इकाई लगाने की आलोचना की थी।
यह संभव है कि रावत को इस बारे में कुछ भनक हो। कुछ दिन पहले उन्होंने विभिन्न बोर्डों, परिषदों और निगमों में 17 अहम पदों का वितरण किया था और इसे कैबिनेट के विस्तार के रूप में दिखाने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन बड़ी तादाद में विधायक और असंतुष्ट दिल्ली आए थे और यह शिकायत की थी कि विधानसभा में आठ बार जीतने वाले विधायकों को भी मंत्री नहीं बनाया गया है। असंतुष्टों में सबसे प्रमुख पिथौरागढ़ के डीडीहाट से विधायक बिशन सिंह चुफाल थे। वह पहले राज्य भाजपा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह पिछले साल सितंबर में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलने दिल्ली आए थे। उन्होंने रावत की अगुआई के तहत राज्य में भ्रष्टाचार के संबंध में अपनी चिंताएं साझा की थीं।
चुफाल भाजपा के प्रमुख नेता हैं और इस पद के मुख्य दावेदारों में से एक हैं। उन्होंने दावा किया था कि रावत के कार्यकाल में पिछले तीन साल के दौरान उनके क्षेत्र में कोई विकास कार्य नहीं हुआ है। चुफाल की तरह एक अन्य भाजपा नेता उमेश शर्मा ने सितंबर में नड्डा को एक ईमेल भेजकर रावत सरकार में ‘विकास कार्यों में देरी’ की शिकायत की थी। भाजपा विधायक पूरण सिंह फत्र्याल ने भी कथित रूप से नड्डा को पत्र लिखकर टनकपुर और जौलजीबी के बीच सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। राज्य के ज्यादातर पर्यवेक्षक खुद से यह पूछ रहे हैं कि अगर रावत का कोई खास आदमी उनकी जगह नहीं लेता है तो क्या वह आसानी से चले जाएंगे।