केंद्र सरकार पुरानी एनीमिया की बीमारी और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से वितरित किए जाने वाले चावल को समृद्घ करने के अपने कार्यक्रम को विस्तारित करने पर विचार कर रही है। वहीं, करीब 18 विशेषज्ञों द्वारा लिखे गए एक हालिया शोध पत्र में दावा किया गया है कि इस कार्यक्रम में देश में कई सारी पोषण संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए संतुलित और विविधतापूर्ण भोजन की केंद्रीय भूमिका को नजरअंदाज किया गया है।
बढ़ाने के लिए अत्यधिक सावधानी की वकालत करते हुए लेखकों ने कहा कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और भारतीय पोषण संस्थान (एनआईएन) दिखाता है कि आबादी की सामान्य सूक्ष्मपोषण जरूरत को पूरा करने के लिए विविधतापूर्ण प्राकृतिक भोजन की आवश्यकता होती है। पत्र में कहा गया है, ‘इसलिए भोजन में विविधिता लाए बिना चावल को लौह से युक्त करने से बहुत कम अंतर पड़ेगा।’
व्हेन द क्योर माइट बिकम द मैलडी : द लेयरिंग ऑफ मल्टिपल इंटरवेंसंस विद मंडाटरी माइक्रोन्यूट्रिएंट फोर्टिफिकेशन ऑफ फूड्स इन इंडिया शीर्षक से यह पत्र 28 जुलाई, 2021 को अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन में प्रकाशित हुई थी।
केंद्र ने संसद में दिए एक हालिया जबाव में कहा था कि वह चावल के समृद्घिकरण और पीडीएस के जरिये इसके वितरण पर एक प्रायोगिक योजना चला रही है। कुल 174.64 करोड़ रुपये के परिव्यय से 2019-20 में शुरू की गई इस योजना की अवधि 3 साल है। कार्यक्रम को आगे फिलहाल इस योजना में 15 राज्यों के 15 जिलों यानी कि हरेक राज्य से एक जिले को शामिल किया गया है और अब तक छह राज्यों आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश ने अपने चुने हुए जिलों में इस चावल का वितरण शुरू कर दिया है।
केंद्र ने जवाब में यह भी कहा था कि आईसीडीएस और मध्याह्न भोजन कार्यक्रमों के लिए समृद्घ चावल की खरीद और आपूर्ति के लिए जिम्मेवार एफसीआई ने अब तक 6.6 लाख टन समृद्घ चावल की खरीद की है। इस बीच पत्र के प्रमुख लेखकों में से एक प्रोफेसर एचपीएस सचदेव ने कहा कि सरकारी खजाने पर केवल सामाजिक सुरक्षा तंत्रों के जरिये आपूर्ति किए जाने वाले चावल के समृद्घिकरण का खर्च सालाना करीब 2,600 करोड़ रुपये बैठेगा।
