सरकार विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) के लिए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों के अनुरूप नए कानून बनाने पर काम कर रही है। नए कानून में विवादास्पद शुद्ध विदेशी मुद्रा (एनएफई) आय को सेज इकाइयों के मूल्यांकन के लिए पैमाना नहीं माना जाएगा।
मामले की जानकारी रखने वालों ने बताया कि प्रस्तावित संशोधित कानून का नाम डेवलपमेंट ऑफ एंटरप्राइज ऐंड सर्विस हब्स (देश) विधेयक रखा गया है। इसमें इकाइयों के प्रदर्शन का मूल्यांकन उनकी शुद्ध वृद्धि के आधार पर होगा। साथ ही रोजगार सृजन एवं अतिरिक्त आर्थिक गतिविधि, निवेश तथा शोध एवं विकास को प्रोत्साहन और बुनियादी ढांचे के विकास जैसे व्यापक मानकों पर भी गौर किया जाएगा।
मौजूदा सेज अधिनियम 2005 के तहत सेज की इकाइयों के लिए धनात्मक शुद्ध विदेशी मुद्रा आमदनी आवश्यक है। इसका मतलब है कि उनके निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य से अधिक होना चाहिए। ऐसी इकाइयों को धनात्मक एनएफई हासिल करने लिए सरकार की तरफ से कुछ सब्सिडी और छूट दी जाती हैं, जिन पर तीन साल पहले डब्ल्यूटीओ में विवाद खड़ा हो गया था।
इन हब या केंद्रों का जोर मौजूदा सेज की तरह केवल निर्यात बढ़ाने पर नहीं होगा।
उन्हें देसी बाजार में भी माल बेचने की इजाजत होगी। इसमें उन्हें तैयार माल के बजाय आयातित कच्चे माल और इनपुट पर ही शुल्क चुकाना होगा। मशीनरी, कंप्यूटर उपकरण जैसे पूंजीगत माल तथा कच्चे माल पर सीमा शुल्क और एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (आईजीएसटी) नहीं लिया जाएगा।
डेलॉयट में पार्टनर एमएस मणि ने कहा कि ‘देश विधेयक’ निर्यातकों की वास्तविक जरूरतों का ज्यादा ख्याल रखने वाला है। मणि ने कहा, ‘सेज इकाइयों की देश में आपूर्ति की क्षमता (देश के तहत) खासी बढ़ जाएगी। पहले इकाइयों को घरेलू बाजार में आपूर्ति के लिए कई मंजूरियां लेनी होती थीं। इसी तरह मौजूदा कानून के मुताबिक अगर कोई इकाई सेज में उत्पाद बनाने के लिए आयातित पूंजीगत माल का इस्तेमाल करती है तो उसका माफ किया गया सीमा शुल्क पलट दिया जाएगा यानी वसूला जाएगा। नए कानून में कहा गया है कि सरकार कुछ निश्चित परिस्थितियों (जिन्हें बाद में परिभाषित किया जाएगा) में रियायत दे सकती है।’
विधेयक में कुछ प्रत्यक्ष कर लाभों को दोबारा पेश किए जाने के आसार हैं, जिनके तहत इन केंद्रों में स्थापित इकाइयों और केंद्रों को 2032 तक 15 फीसदी कॉरपोरेट टैक्स चुकाना होगा। यह नियम नई और पुरानी दोनों तरह की परियोजनाओं पर लागू होगा। सेज को मुहैया कराए गए प्रत्यक्ष कर लाभ पिछले कुछ साल में धीरे-धीरे वापस ले लिए गए हैं। इससे नीतिगत अस्थिरता के कारण सेज निवेश घटा है। कर की रियायती दर से घरेलू विनिर्माण बढ़ सकता है। विनिर्माण में नया निवेश करने वाली नई कंपनी को आयकर अधिनियम के तहत 15 फीसदी कर चुकाने का विकल्प मिलेगा। मगर ये लाभ उन्हीं कंपनियों को मिलेंगे, जो कर प्रोत्साहन नहीं लेंगी और मार्च 2024 से पहले उत्पादन शुरू कर देंगी।
इस विधेयक में कपड़ा पार्क, फूड पार्क जैसे मौजूदा औद्योगिक क्षेत्रों को डेवलपमेंट हब में बदलने का प्रावधान होगा। मौजूदा कानून में विभिन्न प्रकार के सेज का वर्गीकरण नहीं किया गया है मगर ‘देश’ में दो प्रकार के डेवलपमेंट हब- सेवा एवं उद्यम हब शामिल होंगे। उद्यम हब में जमीन पर आधारित क्षेत्र की जरूरतें होंगी, जिसमें विनिर्माण और सेवा गतिविधियों की मंजूरी होगी। सेवा हब में बने हुए यानी इमारत वाले क्षेत्र आधारित अनिवार्यताएं होंगी और उनमें केवल सेवा गतिविधियों की मंजूरी होगी।