देश में हवाईअड्डों की निजीकरण प्रक्रिया के अगले चरण में बोली लगाने के लिहाज से किसी निजी कंपनी के लिए परियोजनाओं की संख्या पर शायद पाबंदी नहीं होगी। शुरू में ऐसा सुझाव दिया गया था कि कोई निजी कंपनी निजीकरण प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में 2 से अधिक हवाईअड्डा परियोजनाओं के लिए बोलियां नहीं लगा सकती है। इसका उद्देश्य किसी एक इकाई का दबदबा स्थापित होने से रोकना था। हालांकि अब बिजनेस स्टैंडर्ड को ऐसी खबर मिली है कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी मूल्यांकन समिति (पीपीपीएसी) ने इस सुझाव के खिलाफ अपनी राय दी है। पीपीपीएसी पीपीपी परियोजनाओं के लिए सरकार द्वारा नामित समिति है।
वर्ष 2018 में निजीकरण प्रक्रिया के दौरान भी सरकार ने कंपनियों को सभी छह हवाईअड्डों के लिए बोली लगाने की अनुमति दी थी। इनमें गौतम अदाणी एंटरप्राइजेज ने छह हवाईअड्डों-लखनऊ, अहमदाबाद, जयपुर, मंगलूरु, तिरुवनंतपुरम और गुवाहाटी- के लिए सर्वाधिक बोली लगाई थी। अदाणी एंटरप्राइज ने सितंबर में जीवीके समूह से मुंबई हवाईअड्डे का भी अधिग्रहण कर लिया था। इसके बाद इस पूरी प्रक्रिया पर राजनीति तेज हो गई थी और कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि सरकार ने अदाणी समूह को लाभ देने के लिए नियमों में बदलाव किया था। अब पीपीपीएसी ने यह तर्क दिया है कि आगे जिन हवाईअड्डों का निजीकरण होना है, वे तुलनात्मक रूप से छोटे हैं और वहां यात्रियों का आवागमन कम संख्या में होता है। पीपीपीएसी के अनुसार अगर कोई एक कंपनी सभी छह हवाईअड्डों के परिचालन के लिए सफल बोलीदाता रहती तो इससे एकाधिकार स्थापित होने जैसी नौबत नहीं आएगी।
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण छह हवाईअड्डों-वाराणसी, अमृतसर, भुवनेश्वर, रांची, त्रिची, इंदौर और रायपुर- को निजी हाथों में देने के लिए बोलियां आमंत्रित कर सकता है। जनवरी के दूसरे सप्ताह में सरकार बोलियां देने के लिए कह सकती है। सरकार अपनी इस महत्त्वाकांक्षी निजीकरण योजना के तहत हवाईअड्डों के प्रबंधन का अधिकार 50 वर्षों के लिए निजी इकाइयों को देगी। इस व्यवस्था के तहत सरकार और कंपनियां राजस्व (प्रति यात्री) राजस्व साझा करेंगी। यह अर्थव्यवस्था में निवेश आक र्षित करने और रोजगार सृजन के साथ ही महानगरों से बाहर हवाईअड्डों का विकास करने की सरकार की योजना का हिस्सा है। बोलियां प्रति यात्री शुल्क पर आधरित होंगी और इसके अनुसार जो सर्वाधिक बोली लगाएगी परियोजना उसके खाते में जाएगी। इस पूरी प्रक्रिया की जानकारी रखने वाले एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘अगर हम इन छह हवाईअड्डों पर इस वर्ष कुल यात्रियों के आवगतन की तुलना देश के किसी बड़े हवाईअड्डे जैसे दिल्ली या मुंबई से करें तो यह संख्या इनमें किसी एक हवाईअड्डे से काफी कम होगी। व्यावहारिक तौर पर किसी कंपनी के एकाधिकार स्थापित होने की आशंका नहीं रह जाती है।’