ब्रिटेन की प्रमुख तेल कंपनी केयर्न एनर्जी ने भारत सरकार को धमकी दी है कि यदि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत द्वारा दिए गए 1.2 अरब डॉलर के भुगतान के फैसले पर अमल नहीं किया गया तो 160 से अधिक देशों में उसकी परिसंपत्तियों को जब्त किया जाएगा। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल होगी। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता मानदंडों के मद्देनजर भारतीय संप्रभु परिसंपत्तियों की जब्ती की संभावना बेहद मामूली हो सकती है।
कुछ सरकारी अधिकारियों ने बताया कि वास्तव में भारतीय अदालतों के जरिये प्रक्रिया को आगे बढ़ाना ही केयर्न के लिए सबसे अच्छा मौका है जिसमें बई साल लग सकते हैं। इसके अलावा भारत मध्यस्थता अदालत के फैसले को हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में चुनौती देने के लिए तैयार है। साथ ही भारत निचली डच अदालतों के फैसले के प्रवर्तन पर रोक लगाने के लिए भी आवेदन करेगा। उसी के आधार पर भारत अन्य देशों में इस फैसले का प्रतिरोध करेगा।
केयर्न ने पिछले सप्ताह कहा था कि करीब 1.7 अरब डॉलर की वसूली 160 से अधिक उन देशों में भारत के स्वामित्व वाली परिसंपत्तियों से की जा सकती है जिन्होंने 1958 के न्यूयॉर्क कॉन्वेंशन ऑन द रिकॉग्निशन ऐंड एनफोर्समेंट ऑफ फॉरेन आर्बिट्रल अवाड्र्स पर हस्ताक्षर किए हैं। कंपनी ने कहा है कि यदि मध्यस्थता अदालत के फैसले पर अमल नहीं किया गया तो वह उन परिसंपत्तियों की जब्त करने के लिए अदालत का
रुख करेगी।
हालांकि, विशेषज्ञों ने बताया कि मध्यस्थता अदालत के फैसले के प्रवर्तन को न्यूयॉर्क कॉन्वेंशन की धारा 5 के तहत चुनौती दी जा सकती है। इंडसलॉ के पार्टनर मयंक मिश्रा ने कहा, ‘केयर्न एनर्जी को न्यूयॉर्क कन्वेंशन के तहत मान्यता एवं क्रियान्वयन के लिए परीक्षण को पूरा करना होगा। न्यूयॉर्क कन्वेंशन की धारा 5 के तहत इस फैसले को उन देशों में प्रतिवाद किया जा सकता है जहां न्यूयॉर्क कन्वेंशन लागू होता है। इस कार्यवाही में कुछ साल लग सकते हैं।’
इसके अलावा यदि सरकार नीदरलैंड की अदालत में इस फैसले को चुनौती देती है तो केयर्न को जबरदस्त चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। मिश्रा ने कहा, ‘इस प्रकार की अदालत प्रवर्तन को रोकने के लिए अपने फैसले को लंबित
रख सकती है। ऐसे में इस दौरान किसी भी संप्रभु परिसंपत्ति को जब्त करना आसान नहीं होगा।’
सर्वोच्च न्यायालय के वकील एवं आर्बिट्रेशन प्रैक्टिशनर सूर्येन्दु शंकर ने कहा कि भारत की अपील पर अदालत यदि सुनवाई शुरू करने का निर्णय लेती है तो न्यूयॉर्क कन्वेंशन की अन्य धाराओं के तहत उस फैसले का प्रवर्तन बाध्यकारी नहीं होगा। ऐसी स्थिति में न्यूयॉर्क कन्वेंशन के तहत प्रवर्तन अदालत को फैसले को स्थगित करने का अधिकार दिया गया है। ऐसे में इस प्रकार की चुनौती वाली कार्यवाही लंबित हो जाएगी।