प्रतिष्ठित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी | फोटो क्रेडिट: Commons
विदेशी छात्रों, खासकर भारतीय छात्रों के लिए अमेरिका से एक अच्छी खबर आई है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने दुनियाभर के अपने दूतावासों को निर्देश दिया है कि वे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के लिए स्टूडेंट और एक्सचेंज विजिटर वीजा फिर से शुरू करें। यह फैसला बोस्टन की एक फेडरल कोर्ट के उस आदेश के बाद आया है, जिसमें राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के निर्देश को अस्थायी रूप से रोक दिया गया। बता दें कि ट्रंप ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में विदेशी छात्रों को पढ़ाई करने से रोकने का फैसला लिया था। कोर्ट के इस फैसले ने भारतीय छात्रों को बहुत राहत दी है, जो अमेरिका में सबसे बड़े विदेशी छात्र समूहों में से एक हैं।
भारतीय एजुकेशन कंसल्टेंट्स ने इस कदम का स्वागत किया है और इसे एक जरूरी सुधार बताया है। Gradding.com की फाउंडर ममता शेखावत ने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा, “हाल ही में अमेरिकी फेडरल कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद एक फैसला आया, जिसने विदेशी छात्रों को उस नियम से छूट दी, जो उन्हें हार्वर्ड जैसे विश्व प्रसिद्ध संस्थानों में पढ़ाई जारी रखने से रोक रहा था।”
उन्होंने आगे कहा, “यह छात्रों के लिए बहुत राहत का फैसला है। खासकर भारतीय छात्रों की बात करें, तो उनके लिए फिर से पढ़ाई के अवसर खुल गए हैं, जो अमेरिकी सरकार ने उनसे छीन लिए थे।”
6 जून को अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो द्वारा हस्ताक्षरित एक कूटनीतिक केबल में दुनिया भर के दूतावासों को इस आदेश का पालन करने के लिए कहा गया। केबल में बताया गया कि यह निर्देश यूएस डिस्ट्रिक्ट जज एलिसन बरोज द्वारा जारी अस्थायी रोक आदेश के अनुसार है। जज के फैसले ने ट्रंप के उस ऐलान को अस्थायी रूप से रोक दिया है, कम से कम तब तक, जब तक आगे की कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती। ट्रंप प्रशासन ने इस प्रवेश प्रतिबंध के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों का हवाला दिया था।
हार्वर्ड और ट्रंप प्रशासन के बीच पिछले कुछ महीनों में तनाव बढ़ा है। अमेरिकी सरकार ने यूनिवर्सिटी को दी जाने वाली 220 करोड़ डॉलर से अधिक की ग्रांट रोक दी है और साथ ही इसके टैक्स-फ्री दर्जे को खत्म करने की बात भी कही है। हालांकि, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने इसके जवाब में सरकार को कानूनी चुनौतियां दी हैं।
हालांकि, अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इसको लेकर कोई सार्वजनिक बयान तो नहीं दिया है, लेकिन 6 जून के केबल में साफ किया गया कि सोशल मीडिया जांच और आवेदकों की ऑनलाइन मौजूदगी की जांच सहित बाकी सभी स्टूडेंट वीजा दिशा निर्देश अभी भी लागू हैं।
पिछले साल अमेरिका में 3.3 लाख से अधिक भारतीय छात्र पढ़ रहे थे, जिसके साथ भारत अमेरिकी संस्थानों के लिए विदेशी छात्रों का सबसे बड़ा सोर्स बन गया है। University Living के फाउंडर और CEO सौरभ अरोड़ा ने कहा कि ऐसे बदलावों का असर बहुत गहरा होता है। उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, “हर नीतिगत बदलाव का अपना एक कारण होता है।”
उन्होंने कहा, “कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है, लेकिन यह सावधानी की जरूरत को भी दिखाता है। वीजा प्रक्रिया अब और सख्त हो रही है। छात्रों को अपनी डिजिटल मौजूदगी पर ध्यान देना होगा, अपने डॉक्यूमेंट्स पूरी तरह तैयार रखने होंगे। साथ ही उन्हें इंटरव्यू में ईमानदार रहना होगा।”
Rostrum Education के को-फाउंडर संजोग आनंद ने 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान ट्रंप प्रशासन और हार्वर्ड-MIT के बीच हुए टकराव की याद दिलाई। उन्होंने कहा, “पिछले कुछ दिनों में कई छात्रों को नए वीजा निर्देशों के कारण देरी का सामना करना पड़ा, जिनमें अतिरिक्त चेकिंग और अनिश्चितता शामिल थी। लेकिन, जैसा कि हमने 2020 में देखा, ये पल अक्सर गुजर जाते हैं।”
Career Mosaic के फाउंडर और डायरेक्टर अभिजीत जावेरी ने कहा, “यह फैसला स्पष्टता और स्थिरता देता है, जिससे छात्र हार्वर्ड जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में पढ़ाई के अपने सपनों को बिना किसी अनिश्चितता के पूरा कर सकते हैं।”
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जावेरी ने कहा कि यह फैसला अकादमिक आदान-प्रदान और खासकर भारतीय छात्रों के अमेरिकी शिक्षा प्रणाली में योगदान की अहमियत को मजबूत करता है। उन्होंने आगे कहा, “आर्थिक प्रभाव के साथ ही वे कई और भी मूल्यवान चीजें अपने साथ लाते हैं। इसमें विचार, संस्कृतियों और आकांक्षाओं का आदान-प्रदान शामिल है, जो विश्व स्तरीय शिक्षा को परिभाषित करता है।”
पिछले शुक्रवार को जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज के साथ ओवल ऑफिस में हुई बैठक के दौरान राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा, “हम चाहते हैं कि विदेशी छात्र आएं। हमें इस पर गर्व है, लेकिन हम उनकी लिस्ट देखना चाहते हैं।”
हार्वर्ड का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “हार्वर्ड हमें उनकी लिस्ट नहीं देना चाहता था। अब वे हमें लिस्ट देने वाले हैं। अगर सच कहूं तो मुझे लगता है कि वे अब ठीक व्यवहार करने लगे हैं।”
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शेखावत ने कहा कि यह फैसला सिर्फ कानूनी जीत नहीं, बल्कि विदेश में पढ़ने की इच्छा रखने वाले छात्रों के लिए मनोबल बढ़ाने वाला है।
उन्होंने कहा, “मैंने विदेश में पढ़ने की चाहत रखने वाले छात्रों की मेहनत और समर्पण को बहुत करीब से देखा है। यह फैसला अकादमिक स्थिरता देता है और एक मजबूत संदेश देता है कि वैश्विक अवसरों के बीच आने वाली मुश्किलें ज्यादा देर तक नहीं टिक सकतीं।”
उन्होंने आगे कहा, “छात्रों का दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में शैक्षणिक उत्कृष्टता हासिल करने का अधिकार हर हाल में सुरक्षित रहना चाहिए। यह फैसला बहुत जरूरी स्पष्टता देता है और उन्हें भरोसा दिलाता है कि उनके सपने अभी भी मायने रखते हैं।”