अंतरराष्ट्रीय

H-1B visa: ट्रंप और बाइडन नीतियों ने भारतीय हिस्सेदारी और अमेरिका में योगदान को कैसे प्रभावित किया?

एच-1बी वीजा पर ट्रंप भले मस्क का समर्थन कर रहे हैं लेकिन उनके पिछले कार्यकाल के आंकड़े बयां कर रहे अलग कहानी

Published by
यश कुमार सिंघल   
शिखा चतुर्वेदी   
Last Updated- December 30, 2024 | 11:19 PM IST

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा कार्यक्रम पर ईलॉन मस्क का समर्थन किया है, लेकिन उनके पहले कार्यकाल के दौरान वीजा आंकड़े कुछ अलग कहानी कहते हैं। एच-1बी वीजा एक गैर-आप्रवासी वीजा है, जो अमेरिकी कंपनियों को दूसरे देशों से कुशल विशेषकर तकनीकी विशेषज्ञ भर्ती करने की अनुमति देता है। प्रौद्योगिकी कंपनियां हर साल भारत और चीन जैसे देशों से हजारों कर्मचारियों को अपने यहां लाने के लिए खास तौर पर एच-1बी वीजा पर निर्भर रहती हैं।

तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप और उनके बाद जो बाइडन के कार्यकाल के दौरान एच-1बी वीजा पाने वालों में भारतीयों की संख्या सबसे ज्यादा रही, लेकिन धीरे-धीरे इसमें कमी आई। वित्त वर्ष 2017 में जहां यह वीजा हासिल करने वालों में 72.1 प्रतिशत भारतीय नागरिक थे, वहीं ट्रंप के कार्यकाल में 2019 में यह आंकड़ा घटकर 69.93 प्रतिशत पर आ गया। हालांकि कोविड महामारी के दौरान 2020 में यह वीजा पाने वालों की संख्या फिर बढ़ी और आंकड़ा 75.66 प्रतिशत पर पहुंच गया।

वित्त वर्ष 2022 में राष्ट्रपति जो बाइडन के कार्यकाल के दौरान एच-1बी वीजा में हिस्सेदारी बढ़कर 80.71 प्रतिशत तक जा पहुंची, लेकिन अगले साल यानी वित्त वर्ष 2023 में इसमें मामूली गिरावट आई और वैश्विक स्तर पर हिस्सेदारी 77.73 प्रतिशत पर दर्ज की गई।

इसके अलावा, पहली बार 2017 में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत के एच-1बी वीजा आवेदन स्वीकृत होने में कमी दर्ज की गई थी। उस समय कुल स्वीकृत आवेदनों में भारत से 2,76,000 भारतीय थे जो वैश्विक स्तर पर हिस्सेदारी के हिसाब से 75.59 प्रतिशत है। वित्त वर्ष 2019 में इस हिस्सेदारी में गिरावट आई और यह 71.7 प्रतिशत रही, लेकिन महामारी के दौरान इसमें पुन: उछाल आई और यह हिस्सेदारी सर्वाधिक 74.87 प्रतिशत हो गई।

कोविड के बाद राष्ट्रपति बाइडन के कार्यकाल के दौरान इस हिस्सेदारी में खासी कमी आई। वित्त वर्ष 2021 में जहां एच-1बी वीजा की भारतीय हिस्सेदारी 74.09 प्रतिशत थी, वहीं कम होते-होते वित्त वर्ष 2023 में यह 72.32 प्रतिशत पर आ गई। अमेरिका द्वारा एच-1बी वीजा अस्वीकृत किए जाने का आंकड़ा तो नहीं दिया गया, लेकिन ऐसे वीजा अस्वीकृत होने की दर दोनों राष्ट्रपतियों के कार्यकाल के दौरान अंतर को स्पष्ट कर देती है।

ट्रंप के राष्ट्रपति रहते सबसे अधिक एच-1बी वीजा अस्वीकृत किए गए थे। सन 2018 में 24 प्रतिशत ऐसे पेशेवरों के वीजा थे जो अभी नौकरी शुरू करने जा रहे थे और इसके शिकार 12 प्रतिशत ऐसे थे जो पहले से अमेरिका में काम कर रहे थे।

हालांकि उसके बाद के वर्षों में वीजा अस्वीकृत होने की दर घटती गई, लेकिन फिर भी यह दर उच्च बनी रही। जब जो बाइडन राष्ट्रपति बने तो अस्वीकृत होने वाले वीजा की संख्या शुरुआती रोजगार के लिए नाटकीय ढंग से 3.7 प्रतिशत पर दर्ज की गई जबकि जो पेशेवर 2021 में वहां पहले से कार्यरत थे, वीजा अस्वीकृत होने की दर 3.5 प्रतिशत रही।

आज अमेरिका में लगभग 51 लाख भारतीय अमेरिकी कार्यरत हैं जो वहां अपनी उम्मीदों, सपनों और आकांक्षाओं को आकार देते हैं। ‘स्मॉल कम्यूनिटी, बिग कंट्रीब्यूशन, बाउंडलेस होरिजन’ शीर्षक से आई एक रिपोर्ट में अमेरिका में भारतीय समुदाय के योगदान पर प्रकाश डाला गया है।

भारतीय मूल के लोगों का योगदान

अमेरिकी जनसंख्या में भारतीय मूल के लोगों की संख्या मात्र 1.5 प्रतिशत है, लेकिन यह समुदाय वहां बहुत ताकतवर आर्थिक शक्ति बन कर उभरा है। रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक साल फेडरल कर राजस्व में भारतीय-अमेरिकी समुदाय 5-6 प्रतिशत यानी लगभग 300 अरब डॉलर का योगदान देता है। करों के अलावा भारतीय मूल के लोगों की व्यय क्षमता भी 370 से 460 अरब डॉलर के बीच है और वे सेल्स टैक्स, कारोबारी निवेश और रोजगार पैदा करने में खासी मदद कर रहे हैं।

भारतीय मूल के लोग अमेरिका की शिक्षा प्रणाली में बहुत अधिक योगदान दे रहे हैं। भारत के लगभग 2,70,000 छात्र वहां के विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में यह आंकड़ा लगभग 25 प्रतिशत और कुल छात्रों में 1.5 प्रतिशत होता है।

ऐसे विविधतापूर्ण योगदान न केवल भारतीय-अमेरिकी समुदाय की आर्थिक ताकत को दर्शाते हैं, बल्कि अमेरिका की सामाजिक और वित्तीय तरक्की में उनकी भूमिका को भी रेखांकित करते हैं।

First Published : December 30, 2024 | 11:19 PM IST