अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के जेनरेटिव एआई के शोध से पता चलता है कि इससे नौकरियां घटने के बजाय बढ़ने की संभावना है, जबकि कुछ नौकरियां जानी भी स्वाभाविक है। आईएलओ गिग और प्लेटफॉर्म के काम में बेहतर कामकाज के लिए अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों को लेकर जल्द बातचीत शुरू करेगा। रुचिका चित्रवंशी और शिवा राजौरा से एक ई-मेल साक्षात्कार में आईएलओ के डायरेक्टर जनरल गिलबर्ट एफ होंगबो ने कहा कि भारत ने सामाजिक सुरक्षा बढ़ाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। प्रमुख अंश…
निश्चित रूप से यह गहरे और परस्पर जुड़े संकटों का दौर है, जिसमें श्रम बाजार में स्वास्थ्य व अन्य पहलुओं पर समझौता किया गया है। पिछले 25 साल में पहली बार चरम गरीबी और अत्यधिक संपदा एक साथ तेजी से बढ़ी है। 2019 और 2020 के बीच वैश्विक असमानता द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी भी अन्य समय की तुलना में असमानता तेजी से बढ़ी है।
अगर हम बहुपक्षीय दृष्टिकोण और लैंगिक समता और सामाजिक न्याय को समर्थन देने वाली नीतियों पर मिलकर काम करें, तो इस पैमाने की समस्याओं से निपटा जा सकता है। भौगोलिक, तकनीकी व पर्यावरण संबंधी बदलाव के लिए ठोस व व्यावहारिक समर्थन की जरूरत होगी, जो पहले से ही चल रहा है। इसमें गुणवत्तायुक्त शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण, प्रभावी सामाजिक सुरक्षा और कामगारों के समर्थन के लिए तकनीक का इस्तेमाल शामिल है।
यह हमारे चयन के विकल्पों पर निर्भर होगा। जोखिम की पहचान, गंदे, कठिन व खतरनाक कार्यों, श्रम जांच की व्यवस्था में सुधार, ऊर्जा और संसाधन की कुशलता बढ़ाने और कौशल प्रशिक्षण में यह अहम भूमिका निभा सकती है। लेकिन हमें सुनिश्चित करना होगा कि इसका इस्तेमाल काम की स्थिति खराब करने, असमानता बढ़ाने, कामगारों की स्वायत्तता कमजोर करने व उनकी निगरानी बढ़ाने के बजाय लोगों की सहायता करने में हो।
आईएलओ के हाल के जेनेरेटिव एआई पर कि गए एक शोध में पाया गया है कि इससे नौकरियां घटने के बजाय बढ़ने की संभावना है। यह स्वाभाविक है कि कुछ नौकरियां जाएंगी भी। कुछ विशेष तरीके के रोजगार जैसे क्लर्क के काम अन्य की तुलना में एआई से ज्यादा प्रभावित होंगे। लैंगिक मसला भी है? इससे महिलाओं का रोजगार ज्यादा प्रभावित हो सकता है। ज्यादा आमदनी वाले देशों में नौकरियां प्रभावित होने की संभावना अधिक है, जिनके पास एआई में निवेश व इसके लाभ उठाने के संसाधन हैं।
इससे रोजगार के मूल्यवान अवसरों का सृजन हुआ है। खासकर उनके लिए अवसर बढ़े हैं, जो परंपरागत पूर्णकालिक कार्य नियमित रूप से नहीं कर सकते और उनके साथ भेदभाव होता है। लेकिन एक तरफ जहां उनको संपत्ति बनाने व आर्थिक समृद्धि के अवसर मिल रहे हैं, वहीं काम करने की खराब स्थितियों में उनका शोषण हो रहा है।
आईएलओ के सर्वे में पाया गया है कि दो तिहाई प्लेटफॉर्म पर कामगारों को औसत वेतन से कम मिल रहा है, वहीं सिर्फ 40 प्रतिशत को स्वास्थ्य बीमा, जबकि 15 प्रतिशत से कम को काम के दौरान दुर्घटना पर बीमा मिल रहा है। करीब 20 प्रतिशत को ही वृद्धावस्था के लाभ मिल रहे हैं। यह स्वीकार्य नहीं है। गिग व प्लेटफॉर्म के काम में बेहतर कामकाज को प्रोत्साहित करने के लिए 2025 में आईएलओ अंतरराष्ट्रीय श्रम मानक पर बातचीत शुरू करेगा।
आईएलओ अगले अक्टूबर में जिनेवा में श्रम सांख्यिकीविदों का 21वां इंटरनैशनल कॉन्फ्रेंस आफ लेबर स्टैटिस्टीशियंस (आईसीएलएस) कराने जा रहा है। इस मसले को परिभाषित करने में किस तरह की चुनौती आ रही है और सम्मेलन से हम क्या उम्मीद कर सकते हैं?
21वें आईसीएलएस से हम सिर्फ अनौपचारिकता को लेकर नए मानक स्वीकार किए जाने की उम्मीद नहीं कर रहे हैं, बल्कि काम करने के भविष्य के प्राथमिकता के क्षेत्रों जैसे कमाई, डिजिटल प्लेटफॉर्म के काम और देखभाव के काम पर भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मजबूत दिशानिर्देश मिलने की संभावना देख रहे हैं।
आईएलओ के हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि सामाजिक सुरक्षा बढ़ाने की दिशा में भारत में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। भारत जैसे बड़े देश में सामाजिक सुरक्षा को लेकर आंकड़े एकत्र करना चुनौती बनी हुई है।
इस आकार के देश के लिए सभी कामगारों को, खासकर अनौपचारिक क्षेत्र को सुरक्षा के दायरे में लाना चुनौती बनी हुई है। भारत को नौकरियों को औपचारिक बनाने की बहुत ज्यादा जरूरत है, जिससे कि गरीबों तक सामाजिक सुरक्षा की पहुंच बन सके।