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शांति निकेतन कब बनेगा विश्व धरोहर?

द इंटरनैशनल कौंसिल ऑन मॉन्यूमेंट्स ऐंड साइट्स ने शांति निकेतन को विश्व धरोहर में शामिल करने की सिफारिश की

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ईशिता आयान दत्त
Last Updated- May 12, 2023 | 10:57 PM IST

यूनेस्को की सलाहकार संस्था द इंटरनैशनल कौंसिल ऑन मॉन्यूमेंट्स ऐंड साइट्स ने शांति निकेतन को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल करने की सिफारिश की है। सितंबर में सऊदी अरब के रियाद में समिति की बैठक में विभिन्न देशों के सदस्यों को इस सिफारिश पर निर्णय लेना है। शांति निकेतन को धरोहर स्थल के रूप में शामिल करने पर पिछले एक दशक से विचार चल रहा है।

इस संबंध में नामांकन दस्तावेज सबसे पहले 2009 में भारतीय पुरातत्व संस्थान (एएसआई) के लिए संरक्षण वास्तुकार आभा नारायण लांबा और मनीष चक्रवर्ती ने तैयार किया था। मगर यह प्रस्ताव कई कारणों से आगे नहीं बढ़ पाया। एएसआई ने 2021 में लांबा को इस दस्तावेज को तैयार एवं अद्यत करने के लिए नियुक्त किया था। शांति निकेतन के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि इसकी चर्चा शुरू होते ही गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर का नाम केंद्र में आ जाता था।

गुरुदेव का दृष्टिकोण शांति निकेतन को रचनात्मकता के केंद्र में तब्दील कर देता था। विश्व धरोहर स्थल का दर्जा पाने के लिए कुछ निश्चित मानदंड तय किए गए हैं। ये मानदंड व्यक्तित्व या अमूर्त चीजों के मामले में लागू नहीं होते हैं।

लांबा कहती हैं, ‘शांति निकेतन अपने आप में अनोखा था और धरोहरों की सूची में इसका नाम शामिल कराना भी उतना ही चुनौतीपूर्ण था। इसका कारण यह था कि गुरुदेव रवींद्र नाथ एक दूरदर्शी कलाकार एवं विचारक थे और यूनेस्को के मानदंडों के अंतर्गत हमें मूर्त तत्वों के सांस्कृतिक मानदंडों पर भी तर्क करना था।‘

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उन्होंने कहा कि उन्हें यह सिद्ध करना था कि शांति निकेतन एक सांस्कृतिक परिसंपत्ति है और इसमें वास्तुकला, संरचना, निर्माण रूप एवं कलाकृति जैसे मूर्त तत्व भी हैं। नारायण ने कहा कि विश्व धरोहर स्थल होने के लिए ये शर्तें पूरी करनी होती हैं।

लिहाजा शांति निकेतन को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता देने का आधार मूर्त हिस्से- स्थानीय सामग्री से लेकर शिल्पकला- हैं। लांबा कहती हैं, ‘20वीं शताब्दी में भारत उपनिवेशवाद की जंजीर में था और शांति निकेतन औपनिवेशिक वास्तुकला से ध्यान हटाकर एक नई आधुनिक पहचान तैयार कर रहा था।

यह पहचान पश्चिमी देशों की तरफ नहीं बल्कि स्वदेश की चीजों का परिचय दुनिया से करा रहा था। शांति निकेतन स्थानीय सामग्री एवं तकनीक का अन्वेषण करते हुए भारत के समृद्ध अतीत से साक्षात्कार करा रहा था और पूर्व की संस्कृति की मदद से एक अखिल एशियाई आधुनिकता सृजित कर रहा था।

नारायण कहती हैं कि शांति निकेतन में जापान, चीन, बाली की वास्तुकला की झलक मिलती है और इसी तरह श्रीलंका की वास्तुकला पर शांति निकेतन की छाप मिलती है। निर्माण और खुला वातावरण यहां पर आकर एक दूसरे मिल जाते हैं।

लांबा कहती हैं, ‘इन तमाम खूबियों के बीच शांति निकेतन में नंदलाल बोस (आधुनिक भारतीय काल के प्रणेताओं में एक) और रामकिंकर बैज (मशहूर शिल्पकार एवं पेंटर) के कार्यों की भी छाप दिखती है। यह भारतीय वास्तुकला के लिए एक नई पहचान है।

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शांति निकेतन को किसी एक परिभाषा में नहीं समेटा जा सकता है। यह किसी दायरे में बंधने के लिए बना भी नहीं था। इतिहासकार एवं रवींद्र नाथ की जीवनी लिखने वाली उमा दासगुप्ता कहती हैं, ‘वैकल्पिक शिक्षा का एक अनोखा विचार यहां स्थापित हुआ।

गुरुदेव और महात्मा गांधी दोनों का मानना था कि भारत में अधिकांश लोग गांवों में रहते हैं और जब तक उनके अनुरूप एक शिक्षा व्यवस्था तैयार नहीं की जाती है तब तक यह अर्थपूर्ण नहीं रह जाएगी।‘ गुरुदेव इस मायने में सौभाग्यशाली थे कि उनके पिता देवेंद्रनाथ ने ग्रामीण बंगाल में 1860 के दशक के उत्तरार्द्ध में एक आश्रम की स्थापना की थी। देवेंद्रनाथ ने शांति निकेतन न्यास की स्थापना की थी। इसमें विद्यालय एवं एक मेले का आयोजन करने की व्यवस्था दी गई थी।

गुरुदेव ने खुली हवा में शिक्षा देने और रचनात्मकता के केंद्र जैसे प्रयोग शुरू किए और उन्हें पूरी दुनिया में प्रसिद्ध बना दिया। इस तरह शांति निकेतन ने कई पीढ़ियों को प्रेरित किया। विश्व भारती यूनिवर्सिटी की शुरुआत के साथ यह एक विश्वविद्यालय शहर बन गया।

सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेस कोलकाता की पूर्व निदेशक एवं मानद प्राध्यापक ताप्ती गुहा-ठाकुरता कहती हैं कि 1920 में स्थापित कला भवन नंदलाल बोस की अगुआई में भारत में कलात्मक आधुनिकतावाद के एक नए केंद्र के रूप में स्वतंत्रता के वर्षों में काम किया। वह कहती हैं, ‘यह बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट से अलग हो गया और एक नई विजुअल भाषा की शुरुआत की। इस भाषा ने पश्चिम के बजाय पूर्व के देशों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया।‘

गुहा-ठाकुरता ने कहा कि बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लखनऊ, फैजपुर और हरिपुरा में आयोजित सत्रों के पवेलियन के लिए गांधी द्वारा पेंटर के रूप में चुने गए। बाद में उनकी टीम को नेहरू ने भारत के संविधान के पृष्ठों के उद्धरण के लिए आमंत्रित किया।

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बोस 1940 में कला भवन में सत्यजित रे के शिक्षक भी थे। शहर में पले बढ़े मात्र 20 वर्ष के रे पहले शांति निकेतन जाने के लिए तैयार नहीं थे। उनके पुत्र संदीप राय कहते हैं कि उनके पिता जब वहां गए तो उनकी आंखें खुल गईं। रे हमेशा कहते थे, ‘अगर मैं शांति निकेतन नहीं गया होता तो पथेर पांचाली नहीं बनी होती।‘ शांति निकेतन आकर वे ग्रामीण बंगाल से रूबरू हुए।

कोलकाता से करीब 150 किलोमीटर दूर शांति निकेतन जीवन जीने का एक जरिया हो गया था। हाल के दिनों में विश्व भारती विश्वविद्यालय विवादों में घिरा रहा है। इसकी स्थापना गुरुदेव ने की थी जो 1951 में केंद्रीय विश्वविद्यालय बन गया।

गुहा-ठाकुरता कहती हैं, ‘वर्तमान समय में शांति निकेतन टैगोर ने जो सपना देखा था उससे मेल नहीं खाता है। यूनेस्को से मान्यता एक तरह से कभी अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय संस्कृति के प्रतीक रहे शांति निकेतन को एक श्रद्धांजलि होगी। यह इसे दोबारा प्रसिद्धि दिलाने का एक अवसर भी होगा।‘

First Published : May 12, 2023 | 10:57 PM IST