कोचिंग सेंटरों के साथ-साथ आम बच्चों के घरों में यह कहावत आम है कि ‘एक बार आईआईटी चले जाओ, लाइफ सेट है।’ मगर कई लोग अब इस पर भी सवाल उठा रहे होंगे। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में दाखिला होना उतना भी आसान नहीं है। इस साल संयुक्त प्रवेश परीक्षा-मुख्य (जेईई-मेन) में 14,15,110 छात्र शामिल हुए थे, लेकिन 2 फीसदी से भी कम बच्चों को दाखिला मिल सका। कहा जाता है कि आईआईटी में दाखिला अमेरिका के प्रसिद्ध मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) की तुलना में भी कठिन है।
मगर अब हालिया घटनाक्रम को देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि आईआईटी से स्नातक हो जाना ही सभी के लिए सफल होने की निशानी नहीं है। हजारों छात्र कैंपस प्लेसमेंट में नौकरी पाने के लिए संघर्ष करते हैं।
मई महीने के अंत में आईआईटी कानपुर से केमिकल इंजीनियरिंग करने वाले धीरज सिंह ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत आवेदन दायर कर आईआईटी, खड़गपुर से पिछले तीन शैक्षणिक वर्षों के दौरान प्लेसमेंट का आंकड़ा मांगा। जून में संस्थान ने बताया कि साल 2021-22 में प्लेसमेंट के लिए पंजीकृत 2,256 छात्रों में से 1,615 को नौकरी मिली, जो कुल आंकड़े का 71.5 फीसदी होता है। उसके अगले साल यानी साल 2022-23 में 2,490 छात्रों ने कैंपस प्लेसमेंट के लिए अपना पंजीकरण कराया था मगर उनमें से 67.2 फीसदी यानी 1,675 छात्र ही नौकरी हासिल करने में सफल हो सके जबकि पिछले साल यानी 2023-24 में 2,660 पंजीकृत छात्रों की तुलना में महज 58.7 फीसदी यानी 1,564 छात्रों को कंपनियों ने अपने यहां नौकरी पर था। हालांकि, जवाब में यह भी कहा गया था कि प्लेसमेंट की प्रक्रिया जारी है।
धीरज सिंह ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘यह जान लें कि आमतौर पर स्नातक करने वाले 75 फीसदी छात्र आईआईटी, खड़गपुर में प्लेसमेंट के लिए पंजीकरण करवाते हैं और शेष छात्र आगे की पढ़ाई, उद्यमिता, सिविल सेवा आदि की तैयारी करते हैं।’
उन्होंने आरटीआई के जरिये ही अन्य आईआईटी से भी ऐसे आंकड़े मांगे थे और बताया कि साल 2024 में प्लेसमेंट के लिए तैयार 40 फीसदी छात्रों को अभी तक नौकरी के प्रस्ताव तक नहीं मिले हैं। बीते तीन वर्षों में ‘अनप्लेस्ड’ की संख्या साल 2021-22 के 19 फीसदी से दोगुना होकर साल 2023-24 में 38 फीसदी हो गई है।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि वेतन भी अब समान रूप से कम होने लगी है। टीमलीज डिग्री अप्रेंटिसशिप के मुख्य कार्य अधिकारी रमेश अल्लुरी रेड्डी बताते हैं, ‘शुरुआती वेतन अब वैसा नहीं रहा जैसा पहले हुआ करता था।’
सिंह भी पहले आईआईटी छात्रों को पेश किए जाने वाले करोड़ रुपये से अधिक के पैकेज को याद करते हैं, जिसका कभी संस्थान प्रचार-प्रसार करता था और कहते हैं कि अब वास्तविकता बदल गई है और औसत पैकेज में 15 से 20 फीसदी की कमी आ गई है।
आईआईटी, दिल्ली के एक छात्र का कहना है कि संस्थान के उसके कई साथी चिंतित हैं। यहां तक कि जिन छात्रों को प्री-प्लेसमेंट ऑफर मिला है अथवा मिल चुका है उन्हें अब डर सता रहा है कि ऑफर रद्द भी सकता है क्योंकि अतीत में ऐसा हो चुका है। तो ऐसा क्यों हैं कि आईआईटी के हजारों छात्रों का जीवन पटरी पर (सेट नहीं हुआ है) नहीं आया है।
जानकारों का कहना है कि इसकी एक बड़ी वजह व्यापक आर्थिक स्थिति है। रेड्डी कहते हैं, ‘वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी है, युद्ध की स्थिति है और इस समय बहुत कुछ अस्थिर है।’
आरटीआई दाखिल करने वाले सिंह का कहना है कि खासकर अमेरिका जैसे देशों में उच्च ब्याज दर और बढ़ती महंगाई के कारण कंपनियां भी अब वृद्धि के बजाय लाभप्रदता पर ज्यादा ध्यान दे रही हैं। वह कहते हैं, ‘वे निश्चित रूप से अपने कर्मचारियों की संख्या घटा रहे हैं, जो ऐसा पहला खर्च है जिसे वे कम करना चाहते हैं।’
दूसरा बड़ा कारण है, वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौरान जब प्रौद्योगिकी में तेजी का अनंत दौर देखा जा रहा था तब प्रौद्योगिकी कंपनियों ने जरूरत से ज्यादा लोगों को नौकरी पर रख लिया था। रेड्डी ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप नौकरी छोड़ने वालों की संख्या भी बढ़ी। कंपनियों ने भी पुनर्गठन शुरू किया।
आईआईटी-बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) से पढ़ाई करने वाले और शिक्षा क्षेत्र में वर्षों तक काम करने वाले पूर्णेंद्र किशोर ने कहा कि आईआईटी के छात्रों को सबसे ज्यादा नौकरी देने वाली सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियां भी अब बड़े कर्मचारी आधार और गिरती मांग के बीच फंसी हैं।
उन्होंने कहा, ‘ये कंपनियां बड़े पैमाने पर नियुक्ति के लिए जाने जाती थीं और जब ये गायब हो गई तब से स्थिति और बिगड़ गई।’ एक अन्य कारण आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) को अपनाना भी है। अचानक हुई वृद्धि ने सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग नौकरियों को सर्वाधिक प्रभावित किया है और इससे नौकरी की पेशकश में भी गिरावट आई है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक, अच्छी बात यह है कि जेनरेटिव एआई पूरी भूमिकाओं को बदलने के बजाय खास कामों को स्वचालित करके नौकरियों को बढ़ा सकता है। अध्ययन में कहा गया है कि अधिकतर नौकरियों केवल आंशिक रूप से स्वचालन के प्रति संवेदनशील हैं।
सिंह का कहना है कि एआई के कारण ऑटोमेशन इतना तेज हो गया है कि कंपनियों को अब छोटे स्तर की नौकरियों के लिए किसी को रखने की भी जरूरत नहीं है। उदाहरण के लिए, फिलहाल एआई लर्निंग स्किल सेट की मांग है मगर विभिन्न कंपनियों में वेब डेवलपर्स के लिए अवसर कम हो गए हैं।
कंपनियां भी अब अपने कारोबारी मॉडल में बड़े और महत्त्वपूर्ण बदलाव कर रही हैं। खास कामों अथवा स्किल के लिए नियुक्ति रही है और छात्र इस बदलाव की रफ्तार का सामना नहीं कर पा रहे हैं। रेड्डी ने कहा, ‘सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले छात्र एक कुशल इंजीनियर के कौशल के बारे में नहीं जानते हैं, जो अब महत्त्वपूर्ण है।’
परंपरागत तरीके से आईटी, इंजीनियरिंग, कंसल्टिंग और वित्त कंपनियां मुख्य तौर पर आईआईटी से नियुक्तियां करती हैं। विनिर्माण एवं सेमीकंडक्टर कंपनियों तथा वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) द्वारा नियुक्तियों में वृद्धि के साथ इसमें बदलाव आ रहा है।
इसके अलावा, इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग भी अब बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा करने के लिए तैयार है। इसके साथ ही ड्रोन उद्योग और ग्रीन हाइड्रोजन मिशन भी ऐसे ही हैं। चिप डिजाइन, साइबर सुरक्षा, मशीन लर्निंग और यूजर एक्सपीरियंस डिजाइन की मांग में अपेक्षित वृद्धि है। मगर उनमें से कुछ नौकरियां पाने के लिए अलग से कोशिश करनी पड़ेगी।
डेलॉयट कैंपस वर्कफोर्स ट्रेंड्स 2024 के मुताबिक, अधिकतर कंपनियां अब कौशल के आधार पर भर्ती करना चाह रही हैं। उदाहरण के लिए, इंजीनियरिंग में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस एवं मशीन लर्निंग, मैनेजमेंट में सोशल सेलिंग और फार्मा में कंप्यूटेशनल बायोलॉजी सबसे अधिक मांग वाली श्रेणी है। डेलॉयट इंडिया के पार्टनर नीलेश गुप्ता ने कहा, ‘इस साल कैंपस भर्तियों में थोड़ी मंदी देखी जा रही है।
कंपनियां नए लोगों की तुलना में अनुभवी उम्मीदवारों को प्राथमिकता दे रही है। पिछले पांच वर्षों में पहली बार आईआईटी सहित शीर्ष 10 कॉलेजों की कैंपस भर्तियों में मामूली गिरावट देखी जा रही है।’ उन्होंने कहा, ‘एआई, मशीन लर्निंग, साइबर सिक्योरिटी, कंप्यूटेशनल डायनेमिक्स, रोबोटिक्स, मेकाट्रोनिक्स एवं कंट्रोल सिस्टम और ईएसजी टेक शीर्ष कौशल हैं जिससे संस्थानों के छात्रों को 10-15 फीसदी प्रीमियम वेतन मिल रहा है।’
देश भर के कोचिंग संस्थानों में वैश्विक महामारी के दौरान सीमित पहुंच के कारण प्रवेश में भारी गिरावट देखी गई। प्रमुख कोचिंग संस्थानों के दाखिले में 30 से 35 फीसदी की गिरावट देखी गई। मगर जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था को दोबारा बल मिलना शुरू हुआ दाखिले बढ़ने लगे और बिना प्लेसमेंट वालों की बढ़ती संख्या के बावजूद इसमें वृद्धि बदस्तूर जारी है।
किशोर कहते हैं कि कोटा और अन्य कोचिंग केंद्रों में दाखिला लेने वालों में से अधिकतर छात्र छोटे शहरों से आते हैं। उन्होंने कहा, ‘बच्चे आईआईटी में दाखिला का सपना लेकर आते हैं। उनके लिए हालिया घटनाक्रम को समझना काफी कठिन है।’ महानगरों के युवा करियर के कई विकल्पों पर बात करते हैं मगर छोटे शहरों के छात्रों के लिए बड़े पैमाने पर इंजीनियरिंग, चिकित्सा और अन्य पारंपरिक विकल्प ही हैं।
सिंह का कहना है कि देश के लिए रोजगार डेटा सिस्टम की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘भारतीय रिजर्व बैंक को अपनी मौद्रिक नीति से पहले रोजगार संकेतकों को देखने में सक्षम होना चाहिए, जैसे अमेरिका फेड ब्याज दरें तय करने से पहले करता है। यह उद्योग के लिए निवेश और वृद्धि चक्र की शुरुआत से पहले एक बड़ा इनपुट है।’ रेड्डी का कहना है कि पाठ्यक्रम के हिस्से के तौर पर कम से कम छह महीने से एक साल तक व्यावहारिक तरीके से ऑन-द-जॉब प्रशिक्षण होना चाहिए। संस्थानों को भी अधिक व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू करने चाहिए।
मगर उम्मीद जिंदा है। आईआईटी, पटना के पंजीकृत छात्रों में से 72 फीसदी छात्रों को पहले ही नौकरी मिल चुकी है और शेष के लिए प्रक्रिया जारी है। संस्थान के ट्रेनिंग ऐंड प्लेसमेंट ऑफिसर कृपाशंकर सिंह का कहना है, ‘हमें जून 2024 तक के आंकड़ों में अच्छे सुधार की उम्मीद है।’ उन्होंने कहा कि नियोक्ताओं की अपेक्षाएं पूरी करनी के लिए संस्थान ने अपस्किलिंग के लिए एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। हालांकि, खबर प्रकाशित होने तक अन्य आईआईटी को भेजे गए ईमेल का कोई जवाब नहीं मिला।