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सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा भूमि मुआवजा मामलों की जांच के लिए नई SIT का गठन किया

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जयमाल्य बागची के खंडपीठ तीन भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारियों की एक विशेष जांच टीम बनाने का आदेश दिया है।

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भाविनी मिश्रा   
Last Updated- August 13, 2025 | 11:04 PM IST

उच्चतम न्यायालय ने नोएडा प्राधिकरण द्वारा भूमि मालिकों को दिए गए मुआवजे में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए एक नई विशेष जांच टीम (एसआईटी) का गठन करने का आज आदेश दिया। अदालत ने कहा कि कई मामलों में मुआवजा ‘अधिक’था, जो वरिष्ठ अधिकारियों और भूमि मालिकों के बीच साठगांठ के संकेत देता है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जयमाल्य बागची के खंडपीठ तीन भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारियों की एक विशेष जांच टीम बनाने का आदेश दिया है। यह नई टीम, पिछली एसआईटी की जगह लेगी, जिसने मुआवजे के भुगतान में अनियमितताओं की बात कही थी।

शीर्ष अदालत ने यह भी निर्देश दिए हैं कि नोएडा में किसी भी नई परियोजना के विकास के लिए अब पहले से पर्यावरण प्रभाव आकलन करने और अदालत के हरित खंडपीठ की मंजूरी लेना अनिवार्य होगा जो पर्यावरण से जुड़े मामलों में सुनवाई करता है। इस साल जनवरी में, अदालत ने नोएडा प्राधिकरण की ‘पूरी कार्यप्रणाली’ की जांच के लिए उत्तर प्रदेश काडर के तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की एक एसआईटी का गठन किया था।

एसआईटी की रिपोर्ट में पाया गया कि कम से कम 20 मामलों में, कुछ लाभार्थियों को दिया गया भूमि मुआवजा, कानूनी हक से ज्यादा था। इसमें नोएडा प्राधिकरण के दोषी अधिकारियों का भी नाम लिया गया और संभावित मिलीभगत, केंद्रीय शक्ति और प्राधिकरण के प्रशासनिक कामकाज में पारदर्शिता की कमी पर चिंता जताई गई।

एसआईटी रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि बड़े फैसले जनता की निगरानी या जनता को जानकारी दिए बिना लिए जा रहे थे।

अदालत फिलहाल नोएडा के एक कानून अधिकारी की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिन पर कुछ भू-स्वामियों को ‘भारी मात्रा में मुआवजा देने’ का आरोप है जबकि कथित तौर पर वे अपनी अधिग्रहित जमीन के लिए इतने अधिक मुआवजे के हकदार नहीं थे।

अदालत द्वारा बुधवार को गठित नई एसआईटी को प्रारंभिक जांच करने और अगर उन्हें गलत काम करने के पुख्ता सबूत मिलते हैं, तब उचित कानूनी प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया है। अदालत ने कहा कि इस प्रक्रिया की निगरानी, कम से कम कमिश्नर रैंक के एक पुलिस अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए, जो कोर्ट को समय-समय पर स्थिति की रिपोर्ट भी देंगे।

अदालत ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव से यह भी कहा है कि वे इन निष्कर्षों को मंत्रिपरिषद के सामने रखें और चार हफ्तों के भीतर एक मुख्य सतर्कता अधिकारी (जो आईपीएस काडर से जुड़े हों या फिर सीएजी से जिनकी प्रतिनियुक्ति हो) की नियुक्ति करें।

इसके अलावा, इसी समय सीमा के भीतर एक नागरिक सलाहकार बोर्ड का भी गठन किया जाना है। इस मामले में सुनवाई आठ हफ्तों के लिए स्थगित कर दी गई है जिसके दौरान एसआईटी की रिपोर्ट, सख्त न्यायिक निगरानी में रहेगी।

First Published : August 13, 2025 | 11:00 PM IST