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बायोमास परियोजनाओं की सब्सिडी में देरी खत्म करने की तैयारी, मॉनसून के बाद बकाया सब्सिडी देगा मंत्रालय

यह बैकएंड सब्सिडी है, जिसमें निवेशक पहले ही संयंत्र स्थापित करते हैं और पूरा खर्च वहन करते हैं, चाहे वह ऋण लेकर खर्च किया गया हो, या इक्विटी के माध्यम से।

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पूजा दास   
Last Updated- August 11, 2025 | 10:34 AM IST

नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम (एनबीपी) के तहत अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पादन की परियोजनाओं के लिए 200 करोड़ रुपये से ज्यादा की बकाया सब्सिडी चुकाने की दिशा में काम कर रहा है। अधिकारियों ने संकेत दिए हैं कि बायोमास पेलेट डेवलपर्स द्वारा मॉनसून के बाद किए जाने वाले निरीक्षण के बाद सीबीजी (कंप्रेस्ड बायो गैस) संयंत्रों को सब्सिडी देना शुरू कर दिया जाएगा। पिछले जून में कड़े नियमों में ढील दिए जाने और बड़े संयंत्रों के लिए खरीद संबंधी चुनौतियों के कारण देरी हुई है।

एक अधिकारी ने कहा, ‘पहले के दिशानिर्देशों के कुछ कड़े प्रावधानों के कारण हमारी तरफ से सब्सिडी जारी करने में देती हुई है। इसमें लगातार 3 महीने तक 80 प्रतिशत क्षमता से संयंत्र का काम करने की शर्त शामिल है। यह अव्यावहारिक साबित हुआ क्योंकि जब तक उठान नहीं हो जाती, संयंत्र अपनी क्षमता नहीं बढ़ा सकते थे और प्रायः वे अपनी क्षमता के 60 से 70 प्रतिशत ही चले।’

एमएनआरई ने तर्क दिया कि इस बात पर ध्यान होना चाहिए कि संयंत्र जरूरी कुशलता के साथ चल रहा है और यह एक दिन में भी देखा जा सकता है, न कि 3 महीने के टिकाऊ प्रदर्शन के आधार पर इसे तय किया जाना चाहिए। इन दिशानिर्देशों में 27 जून को संशोधन किया गया, जिसमें क्षमता के प्रदर्शन पर जोर है, न कि टिकाऊ उत्पादन पर। इस बदलाव से निवेश और काम करने की क्षमता के आधार पर सब्सिडी की अनुमति दी जा सकती है।

अधिकारी ने बताया, ‘इस बदलाव के कारण सब्सिडी वितरण की प्रक्रिया बहाल हो गई है और करीब 200 करोड़ रुपये का बकाया कुछ महीनों में भुगतान कर दिए जाने की उम्मीद है।’

डेवलपरों खासकर पैलेट ब्रैकेट बनाने वालों के साथ हुई पिछली बैठक के दौरान उन्होंने कहा कि मॉनसून सीजन के दौरान उनके लिए पूरी क्षमता से संयंत्र चलाना कठिन है, ऐसे में हमारी जांच को मॉनसून के बाद तक टाला जाए। अब जांच के बाद भुगतान में एक महीने लगेंगे।’

इस सिलसिले में एमएनआरई से मांगी गई जानकारी का जवाब नहीं मिला। यह बकाया प्राथमिक रूप से उन परियोजनाओं से जुड़ा है, जिन्हें पिछले 3 साल में मंजूरी मिली। इन्हें बनाने में सामान्यता एक से डेढ़ साल लगते हैं। संयंत्र चालू होने पर भी प्रायः वे तत्काल पूरी क्षमता के साथ नहीं चल पाते हैं, इसमें 3 से 6 महीने वक्त लगता है।

संयंत्रों को फर्मेंटेशन प्रॉसेस के कारण स्थिर होने में इतना वक्त लगता है। दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘मंजूरी 3 साल पहले शुरू हुई, लेकिन ज्यादातर संयंत्र पिछले साल औरउसके बाद ही चालू हुए। इसकी वजह से पूरी क्षमता में पहुंचने और सब्सिडी के लिए दावा करने में देरी हुई।’

यह बैकएंड सब्सिडी है, जिसमें निवेशक पहले ही संयंत्र स्थापित करते हैं और पूरा खर्च वहन करते हैं, चाहे वह ऋण लेकर खर्च किया गया हो, या इक्विटी के माध्यम से। इसके बाद सरकार की भूमिका कुल लागत के एक हिस्से को वापस करने तक ही होती है। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ऐसे में जब एक बार स्पष्ट साक्ष्य मिल जाते हैं कि निवेश किया गया है और संयंत्र चल रहा है, तभी हम अनावश्यक देरी किए बगैर सब्सिडी जारी कर सकते हैं।

First Published : August 11, 2025 | 10:17 AM IST