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हिंदी नाम वाले बिलों पर चिदंबरम क्यों भड़के? जानिए पूरा विवाद

चिदंबरम बोले- हिंदी शब्दों को अंग्रेजी अक्षरों में लिखना गैर-हिंदी राज्यों का अपमान, 75 साल की परंपरा तोड़ने पर उठाए सवाल

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बीएस वेब टीम   
Last Updated- December 16, 2025 | 4:09 PM IST

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने संसद में पेश किए जा रहे विधेयकों के नाम हिंदी में रखने पर सरकार की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि हिंदी शब्दों को अंग्रेजी अक्षरों में लिखकर बिलों के नाम रखना गैर-हिंदी बोलने वाले लोगों और राज्यों के लिए परेशानी पैदा करता है। चिदंबरम ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कहा कि वे इस बढ़ती परंपरा के खिलाफ हैं। उन्होंने याद दिलाया कि पिछले 75 साल से संसद में बिलों के नाम अंग्रेजी में लिखे जाते रहे हैं और इससे कभी कोई दिक्कत नहीं हुई, फिर अब सरकार अचानक यह बदलाव क्यों कर रही है।

उन्होंने कहा कि इस फैसले से उन राज्यों को दिक्कत होगी, जहां हिंदी आधिकारिक भाषा नहीं है। ऐसे लोग न तो इन बिलों के नाम ठीक से समझ पाते हैं और न ही सही तरह से बोल पाते हैं। चिदंबरम ने इसे गैर-हिंदी बोलने वाले लोगों का अपमान बताया। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार पहले कई बार भरोसा दे चुकी है कि अंग्रेजी एक सहायक आधिकारिक भाषा बनी रहेगी, लेकिन अब उन्हें डर है कि यह वादा टूट सकता है।

संसद में पेश किए गए नए बिल

सोमवार को संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार ने विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान बिल पेश किया, जिसका मकसद उच्च शिक्षा के लिए एक नया नियामक बनाना है। यह नया निकाय यूजीसी, एआईसीटीई और एनसीटीई जैसी मौजूदा संस्थाओं की जगह लेगा। इसके अलावा सरकार ने शांति बिल 2025 भी पेश किया है, जो परमाणु ऊर्जा से जुड़े पुराने कानूनों को खत्म कर निजी क्षेत्र के लिए रास्ता खोलने से जुड़ा है।

सरकार मनरेगा का नाम बदलने से जुड़ा एक और बिल भी संसद में ला सकती है। इससे पहले भी सरकार ने कई पुराने कानूनों के नाम बदलकर नए हिंदी नाम वाले कानून लागू किए हैं। उदाहरण के लिए, अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे इंडियन पीनल कोड (IPC) की जगह अब भारतीय न्याय संहिता लाई गई है। इसी तरह क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (CrPC) को हटाकर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता लागू की गई है। वहीं, इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम बनाया गया है।

First Published : December 16, 2025 | 4:09 PM IST