Loksabha elections 2024: वर्ष 2024 में सुधारवादी एजेंडा या कल्याणवाद की राह ?

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अर्चिस मोहन   
Last Updated- August 24, 2023 | 5:57 PM IST

नरेंद्र मोदी सरकार की नौवीं वर्षगांठ के जश्न के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि अब से 10 महीने बाद उसे एकजुट विपक्ष का सामना करना पड़ेगा जो मतदाताओं को यह समझाने की कोशिश करेगा कि प्रधानमंत्री ‘अच्छे दिन’ देने के अपने वादे से मुकर गए हैं।

मोदी और उनकी पार्टी के सामने चुनौतियां साल 2019 जैसी ही हैं जब उन्होंने हिंदी भाषी क्षेत्रों के तीन प्रमुख राज्यों में चुनावी विफलता के पांच महीने के भीतर ही लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की थी।

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बातचीत में कहा, ‘2004 की ‘इंडिया शाइनिंग’ से जुड़ी चुनावी आपदा ने भाजपा के वर्तमान नेतृत्व को वैचारिक रूप से चुस्त होना सिखाया है जो फरवरी 2019 के लेखानुदान और अब की स्थिति से भी स्पष्ट है।’

दिसंबर 2022 में हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव हारने के बाद अप्रैल महीने में केंद्र ने यह अध्ययन करने के लिए एक समिति का गठन किया कि नई पेंशन योजना में कोई बदलाव आवश्यक है या नहीं। चुनावों के दौरान कांग्रेस का एक केंद्रीय मुद्दा ‘पुरानी पेंशन योजना’ को बहाल करना था।

कृषि संकट के चलते भाजपा को छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा और इसके ठीक दो महीने से भी कम समय में फरवरी 2019 में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल अंतरिम बजट पेश करने के लिए लोकसभा में उपस्थित हुए और उन्होंने इस नियम को बढ़ा दिया कि एक निर्वाचित सरकार को केवल पांच पूर्ण बजट पेश करना चाहिए।

उन्होंने पीएम किसान निधि योजना, छोटे किसानों के लिए 6,000 रुपये के वार्षिक भत्ता और मध्यम वर्ग के लिए आयकर में थोड़ी राहत देने सहित कई प्रमुख फैसलों की घोषणा की।

वर्ष 2018 की शुरुआत में राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद सौंपते हुए, सोनिया गांधी ने कहा था, ‘मुझे विश्वास है कि भाजपा के ‘अच्छे दिन’ वास्तव में शाइनिंग इंडिया में बदल जाएंगे, जिसने हमें जीत (2004 के चुनावों में) दिलाई।’

मोदी के करिश्मे, अंतरिम बजट के माध्यम से किसानों और मध्यम वर्ग तक सरकार की पहुंच का दायरा बढ़ने और पुलवामा-बालाकोट प्रकरण के चलते राष्ट्रवादी उत्साह के दम पर मोदी 1971 के बाद पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करने वाले पहले प्रधानमंत्री बन गए।

भाजपा ने केंद्र में सत्ता में अपने नौ वर्षों के दौरान राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन किया है। मोदी ने 2015 में इस आलोचना की वजह से भूमि विधेयक वापस ले लिया कि यह ‘सूट बूट की सरकार’ हैं और ‘गरीब कल्याण’ को अपनी सरकार का मूल मंत्र मान लिया था।

मई 2016 तक, उन्होंने उत्तर प्रदेश में उज्ज्वला योजना शुरू की, जहां एक साल बाद चुनाव होने वाले थे और इसके साथ ही शौचालय बनाने का काम किया गया। जब राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश के किसानों से कृषि ऋण माफी का वादा किया तब भाजपा ने भी योगी आदित्यनाथ की शपथ के कुछ हफ्तों के भीतर इसे पूरा करने की पहल की।

8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी, उत्तर प्रदेश में पहले चरण के मतदान से ठीक तीन महीने पहले हुई थी। लोगों को विश्वास था कि इससे अमीरों को नुकसान हुआ है जिसके चलते यह धारणा बनी कि मोदी ने भ्रष्टाचार को खत्म करने की अपनी प्रतिबद्धता पूरी की है।

मोदी सरकार ने संप्रग से विरासत में मिली कुछ योजनाएं खुद बनाईं, जैसे जन-धन योजना, आधार-आधारित प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण और आवास योजना और इसके अलावा कारोबारियों की तरफ से शिकायत के बाद दिसंबर 2017 के गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) नियमों में संशोधन भी किया गया।

भाजपा ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और 2019 की जीत के कुछ महीनों के भीतर ही अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करने के अपने मूल एजेंडे को हासिल कर लिया। इसके अलावा पार्टी ने सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लिया और एक ‘लाभार्थी वर्ग’ तैयार किया ताकि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और कृषि कानूनों पर विरोध जैसे झटकों से उबरने में मदद मिले और इसकी वजह से ही मार्च 2022 में उत्तर प्रदेश में फिर से चुनाव जीतने में मदद मिली।

नए संसद भवन, गगनयान का शुभारंभ, सितंबर में भारत द्वारा जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी और जनवरी में राम मंदिर के उद्घाटन से प्रधानमंत्री मोदी का करिश्मा और बढ़ेगा। हालांकि, कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री की लोकप्रियता के बावजूद भाजपा थकी हुई नजर आ रही थी। उत्तर भारत में भाजपा को वोट देने वाले, हाशिये पर रहने वाले लोग और गरीब लोग कांग्रेस की ओर चले गए जैसा कि कर्नाटक में महिलाओं ने भी ऐसा किया।

चुनावी ‘रेवड़ियां’ या मुफ्त उपहारों पर बहस के बीच कर्नाटक में पार्टी की हार से पता चलता है कि भाजपा नए विचारों के साथ आने की कोशिश कर रही है जो मोदी को जवाहरलाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी करने में मदद कर सकते हैं और इसकी वजह से उनकी पार्टी को लगातार तीन आम चुनावों में जीत मिल सकती है।

भाजपा की चुनौती कांग्रेस को एक बार फिर से मात देने की है जो अब फिर से उभरती नजर आ रही है और जिसने अपनी ‘गारंटी’ के तेज संदेश को अपनाया है और कई क्षेत्रीय दलों, विशेष रूप से बिहार, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के दलों को एक साथ लाने की पहल भी की है।
अब इस बात पर विचार हो रहा है कि क्या भाजपा विकास और आर्थिक विकास के सुधारवादी एजेंडे पर लौटेगी, जिसका उसने 2014 में वादा किया था या कल्याणवाद के अपने मॉडल को बरकरार रखेगी।

First Published : May 26, 2023 | 10:39 PM IST