भारतीय वायुसेना का एक लड़ाकू विमान प्रशिक्षण के दौरान राजस्थान में चूरू के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिससे इसमें सवार दोनों पायलट की मौत हो गई। भारतीय वायुसेना ने एक्स पर पोस्ट कर इसकी जानकारी दी। पोस्ट में वायुसेना ने कहा, ‘दुर्घटना में किसी भी नागरिक संपत्ति को नुकसान होने की सूचना नहीं है।’ जांच के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का गठन किया गया है। भारतीय वायुसेना ने पिछले छह महीनों में हुईं दुर्घटनाओं में तीन पायलट, एक पैराट्रूपर, तीन जगुआर और एक मिराज खो दिए हैं। सभी हादसे शांतिकाल में हुए।
इस साल प्रशिक्षण के दौरान यह चौथा विमान गिरा है। इससे पहले 2 अप्रैल को गुजरात के जामनगर में इसी तरह दो सीटों वाला जगुआर हादसे का शिकार हो गया था, जिसमें एक पायलट की मौत हो गई थी और दूसरा घायल हो गया। यह विमान रात में उड़ान भरने के बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसके तीन दिन बाद वायुसेना की स्काईडाइविंग टीम के एक पैराट्रूपर की उत्तर प्रदेश के आगरा में एक प्रदर्शन के दौरान दुर्घटना में मौत हो गई थी।
इससे पहले 6 फरवरी को मध्य प्रदेश के शिवपुरी में और 7 मार्च को हरियाणा के अंबाला में हुई अलग-अलग दुर्घटनाओं में पायलट सुरक्षित निकलने में कामयाब रहे। भारतीय वायुसेना की पिछली तीन लड़ाकू विमान दुर्घटनाओं की जांच को सबसे गंभीर के रूप में वर्गीकृत किया गया है। जेट दुर्घटनाओं या घटनाओं को क्षति की सीमा के आधार पर श्रेणियों में बांटा जाता है। विश्लेषकों के अनुसार वैश्विक डेटा के अनुसार, जहां दुर्घटना दर उड़ान समय पर आधारित है, इस वर्ष की घटनाएं या दुर्घटनाएं असामान्य नहीं हैं। वायु सेना के लिए दुर्घटना दर हर 10,000 उड़ान घंटों में एक दुर्घटना है।
वर्ष 2017 और 2022 के बीच भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमानों से जुड़ी 34 दुर्घटनाएं हुई हैं जो मानवीय त्रुटि, तकनीकी खराबी, विदेशी-वस्तु क्षति और पक्षियों की वजह से हुईं। वर्ष 1991 से 2000 तक 283 दुर्घटनाएं हुईं। इनमें 42 प्रतिशत मानवीय त्रुटि के कारण हुईं। कुल 4,418 घटनाओं में 221 विमान पूरी तरह नष्ट हो गए और वायु सेना के 100 पायलट मारे गए। रक्षा पर संसदीय स्थायी समिति की 2024-25 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लड़ाकू विमानों की दुर्घटना दर 0.93 (2000-2005) के शिखर से 2017-2022 के दौरान घटकर घटकर 0.27 और 2020-2024 में और घटकर 0.20 रह गई थी। वायु सेना के पास पिछले साल स्वीकृत 368 विमानों के मुकाबले 238 बुनियादी, मध्यवर्ती और उन्नत प्रशिक्षक विमान थे।