राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (एनएफआरए) ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की है। हाल में दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘कामकाज के विभाजन’ के मानकों का उल्लंघन करने के आधार पर लेखापरीक्षा नियामक के 11 कारण बताओ नोटिसों को रद्द कर दिया था।
मामले से जुड़े जानकारों के मुताबिक एनएफआरए ने राष्ट्रीय कंपनी कानून अपील न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के पिछले आदेश का हवाला दिया है, जिसमें पाया गया था कि नियामक ने कार्यों के विभाजन के संबंध में कानून का अनुपालन किया है, और बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधिकरण के फैसले को बरकरार रखा।
इसके पहले एनएफआरए ने कहा था कि कंपनी अधिनियम की धारा 132 (2) बी के मुताबिक उसके अध्यक्ष व 2 सदस्यों वाले कार्यकारी निकाय जुर्माना लगाने और अनुशास संबंधी कार्रवाई करने का अधिकार है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने एनएफआरए की संवैधानिक वैधता और उसके पूर्वव्यापी अधिकारों को बरकरार रखा और कहा कि वह लेखापरीक्षा की समीक्षा करने और अनुशासन संबंधी कार्यवाही शुरू करने के लिए राय बनाने के बीच कार्यों का विभाजन बनाए रखने के लिए बाध्य है। डेलॉयट हस्किंस ऐंड सेल्स एलएलपी, एसआरबीसी ऐंड कंपनी एलएलपी और कुछ चार्टर्ड अकाउंटेंटों की ओर से याचिका दायर कर एनएफआरए की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी, जिस पर सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया। दिल्ली उच्च न्यायालय ने एनएफआरए द्वारा जारी 11 कारण बताओ नोटिस खारिज कर दिए, जो प्राथमिक रूप से आईएलऐंडएफएस से जुड़े मामले थे।
यह कहते हुए नोटिस रद्द किया गया कि नियामक निकाय द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया में देश की वित्तीय रिपोर्टिंग और ऑडिटिंग के मानकों का उल्लंघन हो रहा है और इसमें तटस्थता और निष्पक्ष मूल्यांकन का अभाव था।