रूस, तेल और बाजार का खेल

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 08, 2022 | 9:02 AM IST

ब्रिक देशों यानी ब्राजील, रूस, भारत और चीन के बारे में सबसे पहले दिसंबर 2007 में हमने बातचीत की थी।


और हमने कहा था, ‘पिछले सात साल में रूस के बाजार का जो प्रदर्शन रहा है, उसने ब्रिक देशों में लगातार विकास के मॉडल को नकार दिया है और ऐसा लगता है कि इन देशों में दरअसल जिंस की कीमतों में आए उछाल को ही विकास माना जा रहा है।

यह सच है कि बाजारों में अभी तक सुधार नजर नहीं आया है और हम उस मोड़ पर पहुंच रहे हैं, जहां कीमतों में अचानक बदलाव होगा। इसीलिए यह भी तय है कि बाजारों में सुधार अब तेजी से होगा।’


तेल का चक्र

ताज्जूब की बात है, लेकिन रूस के बाजार तेल की कीमतों में गिरावट आने के साथ ही तकरीबन 80 फीसदी तक गिर गए। तेल की कीमतें जब रिकॉर्ड तक पहुंचीं, तब भी हालात अलग थे। उस समय भी बाजार के और ऊपर जाने की भविष्यवाणियां की जा रही थीं।

तब भी हम कुछ और बोल रहे थे। 12 मई 2008 को हमने कहा था, ‘किसी की कीमत में अप्रत्याशित और लगातार इजाफा नहीं हो सकता, चाहे वह कच्चा तेल ही क्यों न हो।

तेल की कीमतों में अचानक और जबरदस्त उछाला का सीधा मतलब गिरावट का करीब आना है। तेल की कीमत 200 डॉलर प्रति बैरल हो जाएगी, यह तेल उत्पादक और निर्यातक देशों का मानना है। लेकिन असल में क्या होगा, यह उन देशों को भी मालूम नहीं है।’

आम लोगों के मुताबिक हमारा बयान उलटबांसी था और उस पर कड़ी प्रतिक्रियाएं भी हुईं। तेल बाजार के एक नजूमी ने तो फौरन कह दिया, ‘जो ऊपर जाता है, वह नीचे भी आएगा। यह बात कहकर बहस को आगे बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है।’

खैर, जो ऊपर गया था, वह नीचे आ भी गया। ऊपर जाने और नीचे आने के इस क्रम को ही हम चक्र कहते हैं। कुछ समय तक कीमतें चढ़ सकती हैं और उसके बाद मामूली वक्त के लिए ही सही, उनमें गिरावट जरूर आती है। दरअसल चक्र की तरह कीमतें बढ़ती हैं और थोड़े वक्त के लिए गिरती भी हैं।

लेकिन अगर इस चक्र की अवधि बढ़ जाती है, तो हमारी निगाह उस पर ठहर जाती है। तेल की कीमत 37 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचना चक्र को सही ठहराता है।

क्यों आई गिरावट

चरम के एक छोर पर पहुंचने के बाद अब मामला उलट गया है, तेल भी नीचे आ रहा है और रूस की अर्थव्यवस्था भी। रूस के बारे में किस्से नहीं सुनाई देते क्योंकि तेल के बारे में भी ज्यादा नहीं बोला जाता।

हमें सुनाई देता है कि तेल की कीमत गिरकर पांच डॉलर प्रति बैरल पहुंच जाएगी क्योंकि मंदी और वाहन उद्योग की दुर्दशा की वजह से तेल की भी धार पतली हो गई है।

रूस के मुख्य एक्सचेंज एमआईसीईएक्स को दो दिन के लिए बंद करना पड़ा था क्योंकि 16 सितंबर को महज कुछ घंटों में ही उसमें 17 फीसदी की गिरावट आ गई थी।

उसके साथ वही हुआ, जो दुनिया भर के बाजारों के साथ हुआ। इसकी जो वजहें गिनाई जा रही हैं, वे हैं – बैंकिंग क्षेत्र का जबरदस्त उछाल, ढांचे में बदलाव की कवायद, तेल की कीमतों में गिरावट, रियल एस्टेट का गिरना, विकास का थमना, रूस और जॉर्जिया की लड़ाई, परेशान विदेशी निवेशक और घटते हुए मार्जिन।

रूस में मौजूदा संकट की तुलना कई लोग तो 1998 के रूबल संकट से भी कर रहे हैं। कुछ का तो यह भी कहना है कि यह अंधेरा 2009 में ही नहीं, बल्कि 2010 और 2011 में भी बरकरार रहेगा।

ज्वार भाटा

अगर यह मंदी 1929 की महामंदी या 1998 के आर्थिक संकट से ज्यादा खौफनाक है, तो यह ऐतिहासिक गिरावट होगी, लेकिन इसके बाद भी संभावनाओं की कमी नहीं है। अगर तेल की कीमत 500 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने की भविष्यवाणी में भी दम है, तो रूस की हालत सुधरने में वक्त नहीं लगेगा।

तकरीबन 500 अरब डॉलर के भंडार और महज दो फीसदी जनता के शेयर बाजार में लगे होने की वजह से रूस के पास मुस्कराने की अच्छी खासी वजहें हैं। तेल, गैस और धातु को अगर मिला दिया जाए, तो रूस से होने वाले कुल निर्यात में 80 फीसदी हिस्सेदारी उन्हीं की है।

तेल की कीमत बढ़ने से केवल रूस के बाजार ऊपर नहीं जाएंगे, बल्कि इक्विटी और दूसरी संपत्तियों में दुनिया भर में गतिविधियां तेज हो जाएंगी। 1998 और 2008 को जोड़कर देखा जाना संयोग भर नहीं है।

रूस और तेल

रूस और तेल के बीच जो रिश्ता है, उसे विश्व अर्थव्यवस्था के चश्मे से भी देखा जा सकता है। बाजार एक साथ नीचे आ सकते हैं, लेकिन वे हमेशा एक साथ उछलें, यह जरूरी नहीं है। गिरावट तेजी से होती है और उछाल धीमे-धीमे आती है।

इसलिए बाजारों के ऊपर जाते वक्त अंतर पता चल सकता है। मिसाल के तौर पर सभी वैश्विक सूचकांक सुधार की बात कह रहे हैं। कुछ उभरते बाजार इनमें सबसे आगे हैं और कुछ दूसरे बाजार अभी नीचे गिर रहे हैं।

जर्मनी का डीएएक्स और अमेरिका का डाउ भी उछाल के लिए तैयार दिख रहा है, लेकिन अभी उसमें एक तिमाही का वक्त तो बाकी है। लेकिन आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि बाजार की चाल बदलने में साल भर का वक्त लगेगा। इसलिए माना जा सकता है कि बाजार के लिहाज से अगला वित्त वर्ष इतना खराब नहीं रहेगा।

तेल और बाजार

2009 में बाजार के धरातल पर आने की बात डाउ पर चलने वाले बाजार के 9 से 12 साल के चक्र से भी साबित होती है। 1998 से 2009 के बीच 11 साल होते हैं, जिनमें रिकॉर्ड तेजी से रिकॉर्ड गिरावट हो जाती है। 11 साल के इस अरसे में डाउ में तीन छोटे-छोटे चक्र दिखे हैं।

पहला 1998 से 2002 तक था, जब प्रौद्योगिकी चरम पर थी, दूसरा 2002 से 2006 तक रहा, जब औद्योगिक क्षेत्र शिखर पर पहुंचा और 2008 में तेल के रिकॉर्ड पर पहुंचने से बाजार चोटी पर पहुंचा। यानी 3.3 साल में बाजार एक चक्र पूरा कर रहा है और 2009 में यह धरातल पर पहुंच जाएगा।

इसके बाद 3 या 4 साल के लिए उछाल का दौर शुरू हो जाएगा। इसलिए भारत और ब्राजील दोनों जगह बाजार अभी और गिरेगा, लेकिन अगले साल इसमें उछाल आना ही चाहिए।

(लेखक वैश्विक विकल्प अनुसंधान फर्म ऑर्फियस के मुख्य कार्यकारी हैं)

First Published : December 14, 2008 | 10:10 PM IST