इस साल 20 फरवरी फ्रैंकलिन टेम्पलेटन म्युचुअल फंड में मेरा आखिरी दिन था और हो सकता है कि यह कॉर्पोरेट जगत में भी मेरा आखिरी दिन हो।
यकीनन यह मेरा मेरे बॉस के लिए काम करने का भी आखिरी दिन था। मैं अपने लिए एक नया रास्ता खोज निकाला था- एक कर्मचारी से मैंने स्वरोजगार का रास्ता चुना। और जैसे ही यह मौका आया, मेरी दुनिया पूरी तरह से बदल गई।
नए लोगों को ऐसा करने से पहले कई सवालों के जवाब देने के लिए तैयार रहना होगा। नौकरी से कारोबार की तरफ बढ़ना कितना आसान है या मुश्किल? इस दौरान कैसी चुनौतियां मेरे रास्ते में अएंगी? मुझे किन-किन बातों का ध्यान रखना होगा? इसमें क्या-क्या जोखिम हो सकते हैं? अगर मासिक नकद प्रवाह में कोई अनिश्चितता आ गई तो उसका सामना मैं कैसे करूंगा?
फिलहाल, मैं इन सवालों के जवाब ढूंढ़ने की राह में हूं। यहां मेरे खुद के कुछ अनुभव हैं जिन्हें मैं आपके साथ बांटना चाहता हूं। बेशक यह तो समय ही बताएगा कि मैं अपने कारोबार में सफल रहा हूं या नहीं और क्या मेरा चुनाव सही था या नहीं।
चलिए मेरे इस कदम के पीछे की प्रेरणा से शुरुआत करते हैं। आखि क्यों कोई भी व्यक्ति अपनी नौकरी को छोड़कर स्वरोजगार को अपनाता है? अगर मैं अपने करियर पर एक नजर डालूं तो यह दूसरी बार हुआ है जब मैंने नौकरी छोड़ी है और वह भी तब जब मेरे पास दूसरा कुछ और करने को नहीं था। दोनों बार में सबसे बड़ा अंतर है सोच का।
जब पहली बार मैंने नौकरी छोड़ी थी, तब मेरा आत्म-विश्वास बहुत गिर गया था, लेकिन दूसरी बार मैंने पूरे दृंढ़ निश्चय और सोच-विचार कर अपनी नौकरी छोड़ीथी। पहली बार में मैं किसी चीज से भागना चाहता था, इस बार में कुछ करने के विचार से नौकरी छोड़ रहा था। इस बार एक अच्छी कंपनी छोड़ने का दर्द मुझे हो रहा था, जबकि पहली बार एक नौकरी छोड़ने की वजह से दर्द था।
इन दोनों स्थितियों में अंतर समझना बेहद जरूरी है। आत्म-विश्वास में कमी या सोच के चलते आप जो भी काम करना चाहते हैं, उसे करने में मन नहीं लगता- एक सोच-समझ कर लिया गया निर्णय, आपको सफलता दिला सकता है। मैं इस बात की कभी सलाह नहीं देता कि जब कोई अपनी नौकरी से खुश न हो, उसे तब तक उस नौकरी के साथ जुड़े रहना चाहिए, जब तक कि वह अपने दिमाग को पूरी तरह से तैयार नहीं कर लेता।
शांत दिमाग से सोचने पर आपको यहां पहले बताए गए सवालों के जवाब भी मिल जाएंगे और उसके बाद आप एक बढ़िया निर्णय ले सकेंगे। नौकरी में मिल रहे आरामों को छोड़ पाना इतना आसान भी नहीं है।
जैसा कि मैं पहले भी बता चुका हूं कि दोनों बार नौकरी छोड़ने में सबसे बड़ा अंतर मेरी सोच का था। जब दिमाग शांत नहीं होता, तब हम मनमाफिक विकल्प न होने पर भी उसके बारे में सोचने लगते हैं। जब मैं नौकरी छोड़ना चाहता था, मैंने कई ऐसे उद्योगों में भी अपना बायोडाटा भेज दिया, जिसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं था और जिनके बारे में मुझे कोई अनुभव भी नहीं था।
मैं दिन-प्रतिदिन नौकरी के लिए बेचैन हो रहा था। उस समय मेरी बैचेनी बहुत ज्यादा बढ़ रही था और मुझे उस समय एक गङ्ढे में भी गिरना मंजूर था। ऐसा कुछ हुआ नहीं, उसमें कुछ हाथ मेरे भाग्य का है और कुछ मेरे शुभ-चिंतकों की दुआओं का। मैं खुशनसीब हूं कि उस समय मेरे कुछ शुभ-चिंतक सामने आए और उन्होंने मेरी मदद के लिए हाथ बढ़ाया। दूसरी बार भी बहुत से शुभ चिंतक मदद के लिए सामने आए, लेकिन तब स्थितियां मेरे नियंत्रण में थीं।
एक शांत और बेहतर स्थिति में दिमाग आपको विभिन्न विकल्पों और जोखिम के बारे में सोचने की क्षमता देता है। अगर आप नौकरी छोड़ने का मन बना रहे हैं और अपना कारोबार शुरू करना चाहते हैं, तब क्रिकेट के महान खिलाड़ी सुनील गावस्कर के शब्दों को याद कीजिए- बेशक यह दूसरे विषय (जब किसी ने उन्हें निर्णय की टाइमिंग के बारे में पूछा) में थे, लेकिन यह सब जगह फिट बैठते हैं। उनका कहना था, ‘आपको तब निकला चाहिए जब लोग आपसे पूछें क्यों न कि तब जब वे आपसे पूछें कब।’
आप अपनी नौकरी कब छोड़ रहे हैं, यह काफी महत्वपूर्ण है। अगर आपका बिता हुआ हालिया करियर बहुत बढ़िया रहा है, तब अधिक चांस है कि अधिक लोग आपको याद रखें और आप जल्दी से नौकरी छोड़ सकते हैं। अन्यथा, आपको भाग्य और मदद की अधिक जरूरत है।