इस साल जीवन बीमा कारोबार में सकारात्मक बढ़ोतरी की उम्मीद

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 12:36 AM IST

पिछले साल बीमा के नये कारोबार में कमी आई है लेकिन आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ की प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी शिखा शर्मा कहती हैं कि कारोबार सुधरने के संकेत मिल रहे हैं और इस साल नई बिक्री से होने वाली प्रीमियम आय में बढ़ोतरी होगी।
उन्होंने शिल्पी सिन्हा से कहा कि निजी क्षेत्र में देश की सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी अपने कारोबार को मजबूत करने पर ध्यान दे रही है। अगले 12 से 18 महीने में यह मुनाफे में आने का प्रयास कर रही है। बातचीत के कुछ अंश:
पिछले साल नये कारोबार में गिरावट देखी गई। क्या आप इसकी आशा करती थीं और साल 2009-10 को लेकर आपका क्या नजरिया है?
अर्थव्यवस्था में मंदी की आशा हमें थी, लेकिन हम ऋणात्मक वृध्दि की उम्मीद नहीं कर रहे थे। जीवन बीमा उद्योग में ऋणात्मक बढ़ोतरी हुई है और हमारा प्रदर्शन भी उद्योग के समतुल्य ही रहा। लेकिन, अब ग्राहकों की धारणाएं बदल रही हैं।
कंपनियों ने भी परिवर्तन को समण है और ऐसी नई योजनाएं लेकर आ रही हैं जो वर्तमान बाजार के नजरिये से बेहतर हैं। इस साल सकारात्मक वृध्दि होगी। बाजारों में मंदी को देखते हुए थोड़ा जोखिम तो है। आर्थिक अनिश्चितता का माहौल है और लोग दीर्घावधि की बचत योजनाओं से कतरा रहे हैं। कुछ समय पहले तक बैंक भी अधिक जमा दरों की पेशकश कर रहे थे।
पिछले साल कंपनी ने विस्तार नहीं किया जबकि इसके पहले के वर्ष में आपने कई शाखाएं खोली थीं। क्या अभी भी क्षमताएं अधिक हैं?
आम तौर पर क्षमताओं को पूरी तरह इस्तेमाल में लाने में 12 से 15 महीने लग जाते हैं। लेकिन अब, हमें इसमें दो से ढाई वर्ष लगेंगे। अगले साल हम विस्तार की सोचेंगे। मध्यावधि और दीर्घावधि के लक्ष्यों के नजरिये से हमने ग्रामीण और स्वास्थ्य योजनाओं की शुरुआत की थी। और, इनका प्रदर्शन काफी अच्छा है। हमाया ध्यान परिचालन सक्षमता और बिक्री पर होगा। इन सबके लिए अभी का समय उपयुक्त है। बाजार के साथ बढ़ने के लिए जरूरी है कि हम सक्षम हों।
क्या कंपनी को और अधिक पूंजी की आवश्यकता है?
बुनियादी ढांचा बनाने और नये कारोबार के लिए सॉल्वेंसी मार्जिन उपलब्ध कराने के लिए हमें पूंजी की जरूरत होगी। नये कारोबार के साथ ही हमें पूंची चाहिए होगी।
मुनाफे में आने की संभावना कब तक है?
यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारा कारोबार कैसा रहता है। खर्चे के मामले में हम उम्मीद करते हैं कि यह अगले 12 से 18 महीनों में संभव हो जाएगा। उत्पाद संरचना में बदलाव होने से पूंजी जरूरतों में भी बदलाव आता है।
सबसे ज्यादा जरूरी है खर्च के अनुपात, नये कारोबार के मार्जिन, उनसे जुड़े मूल्यों और सांख्यिकीय घाटे पर ध्यान केंद्रित करना। जब हम व्यवपक स्तर पर विस्तार कर रहे थे तो हमारा खर्च अनुपात बढ़ कर 14.9 प्रतिशत तक पहुंच गया था। अब, यह घट कर 14 प्रतिशत के स्तर पर आ गया है।
तो क्या हम उम्मीद करें कि 18 महीने बाद कंपनी सूचीबध्द हो जाएगी?
मुनाफे में आना ही वह सब कुछ नहीं है जो निवेशक देखते हैं। खर्च अनुपात जैसी चीजों पर ध्यान देना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। कुछ बाधाए हैं। उनमें से एक है बाजार की दशा। जब तक विदेशी निवेश की सीमा 26 प्रतिशत से बढ़ा कर 49 प्रतिशत नहीं कर दी जाती तब तक हमें बहुत सारे एफआईआई प्रतिभागी नहीं मिल सकते हैं।
सरकार अनिवार्य रूप से सूचीबध्द होने के नियमों को हटाने के बारे में सोच रही है, ऐसे में क्या अभी भी कंपनी को सूचीबध्द करने का तुक बनता है?
यह अस्पष्ट है कि आपको दस वर्षों में सूचीबध्द होना है या फिर आप 10 साल बाद सूचीबध्द हो सकते हैं। अगर इस नियम को समाप्त कर दिया जाता है तो सूचीबध्दता तभी हो पाएगी जब प्रवर्तक इसकी जरूरत समझेंगे। हमलोगों का आधार मजबूत है, इसलिए हम आवश्यक पूंजी जुटाने में सक्षम हैं। यह एक अलग प्रक्रिया होने जा रही है कि क्या बाजार जीवन बीमा कंपनियों का अलग मूल्यांकन देखना चाहती है?
बीमाकर्ताओं को मुनाफे में आने में इतना वक्त क्यों लगा?
लोग इस तरह की वृध्दि की आशा नहीं करते हैं। बाजार हिस्सेदारी की दृष्टि से ऐसा अनुमान किया जा रहा था कि पहले 10 वर्षों में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत हो जाएगी लेकिन हम पहले ही 60 प्रतिशत की हिस्सेदारी प्राप्त कर चुके हैं। टॉपलाइन में वास्तव में भारी बदलाव हुए हैं। महंगाई हमारे अनुमानों से कहीं अधिक बढ़ गई। नौकरियां बदलने की दर हमारे अनुमानों से कहीं अधिक हो गई। लेकिन, ये सब अपेक्षाकृत छोटे मसले हैं।
इतनी सारी जीवन बीमा कंपनियां हैं, क्या हालात म्युचुअल फंड जैसे होंगे जहां पांच-छह बड़े खिलाड़ी हैं और शेष इस दौर में शामिल हैं? क्या आपको समेकन की उम्मीद है?
यह परीक्षण का दौर है। अगर यह दो सालों तक चलता रहता है तो इससे उद्योग अलग हो जाएगा। फिर, उद्योग की संरचना में पांच-छह बड़े खिलाड़ी होंगे और कई छोटे खिलाड़ी इस दौर में बने रहने का निर्णय करेंगे। इस दौर में टिके रहना आसान नहीं है क्योंकि  यह पूंजी पर आधारित उद्योग है। इससे समेकन की संभावना बढ़ेगी।
तो क्या आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल जैसी बड़े खिलाड़ी द्वारा कंपनियों की खरीदारी का तुक बनता है?
यह इस बात पर निर्भर करता है कि विक्रेता कौन है। अगर हमें विस्तार के मामले में या कोई नया वितरण फ्रैंचाइजी मिलता है या कोई महत्वपूर्ण ब्रांड या फिर क्षमताओं में इजाफा होता है तो खरीदारी करने का तुक बनता है।
ऐसा सुनने में आ रहा है कि आप आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल छोड़ रही हैं…
इस मुद्दे पर मैं कोई बातचीत नहीं करना चाहती।

First Published : April 15, 2009 | 6:21 PM IST