सोना खरीदने का यूं तो कोई खास वक्त नहीं होता मगर शादी-ब्याह और त्योहारों के दौरान लोग खास तौर पर इसकी खरीदारी करते हैं। इस बार त्योहारी सीजन से ठीक पहले सोने के भाव गिर गए हैं, जिससे खरीदरारों का उत्साह बढ़ा है। जुलाई में मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज पर सोने का बेंचमार्क वायदा 50,000 रुपये प्रति 10 ग्राम से नीचे चला गया। लेकिन उसके बाद भाव कुछ सुधरे और भाव 50,000 रुपये से कुछ ऊपर चला चढ़ गया। मगर वैश्विक बाजारों में सोने की कीमतों में ज्यादा गिरावट है और फिलहाल यह 1,726 डॉलर प्रति औंस के आस-पास कारोबार कर रहा है।
जानकारों का कहना है कि रुपये में लगातार गिरावट की वजह से घरेलू कीमतें वैश्विक कीमतों की तुलना में कम घटी हैं। सरकार द्वारा आयात शुल्क में हालिया बढ़ोतरी के कारण भी देश में सोने के भाव कुछ ज्यादा हैं।
ओरिगो ई-मंडी में सहायक महाप्रबंधक (शोध) तरुण सत्संगी को लगता है कि सोने की कीमत अगले कुछ समय तक नरमी के साथ एक दायरे में रह सकती है। इसलिए वे निवेशकों को हर गिरावट पर थोड़ा-थोड़ा सोना खरीदने की सलाह दे रहे हैं। मगर एकमुश्त खरीदारी को वह समझदारी नहीं मानते क्योंकि कीमतें अभी और गिर सकती हैं। केडिया एडवाइजरी के निदेशक अजय केडिया भी अभी सोना खरीदने का सही समय मानते हैं क्योंकि कीमतों में काफी गिरावट आ चुकी है।
विशेषज्ञों के ये अनुमान सुनकर लोगों को सोना खरीदने का यह एकदम सही समय लग सकता है। मगर उनके पास सोने में निवेश के दूसरे विकल्प भी हैं, जिन्हें चुनने से पहले उन्हें यह जरूर जान लेना चाहिए कि किस विकल्प में कितना कर देना पड़ता है।
धातु रूप में सोना
जब आप सोने को फिजिकल यानी धातु के रूप में यानी जेवरात, सिक्के, ईंट खरीदते हैं तो होल्डिंग अवधि यानी सोना खरीदने से लेकर बेचने के बीच की अवधि देखकर कर तय होता है। नियमों के मुताबिक अगर आप सोना खरीदने के बाद 36 महीने पूरे होने से पहले ही बेचते हैं तो उससे होने वाली कमाई को अल्पावधि पूंजीगत लाभ एसटीजीसी माना जाएगा और आपकी कुल आय में जोड़ दिया जाएगा। इस पर आपको अपने कर स्लैब के अनुसार आयकर चुकाना होगा। लेकिन अगर आप 36 महीने पूरे होने के बाद सोना बेचते हैं तो आपको लाभ यानी रिटर्न पर इंडेक्सेशन के फायदे के साथ 20 फीसदी (उपकर और अधिभार मिलाकर 20.8 फीसदी) दीर्घावधि लाभ कर चुकाना होगा। इंडेक्सेशन में खरीद मूल्य को महंगाई के हिसाब से बढ़ा दिया जाता है, जिससे रिटर्न कम हो जाता है और कर भी कम देना होता है। मगर इस रूप में सोना खरीदने पर उसकी कीमत और मेकिंग चार्ज के ऊपर 3 फीसदी जीएसटी भी देना पड़ता है। अगर आप अपने पास पड़े पुराने गहनों से ही नए गहने गढ़वाते हैं तो मेकिंग चार्ज पर 5 फीसदी जीएसटी देना होता है।
पेपर गोल्ड
इसमें गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड म्युचुअल फंड आते हैं। मगर इन सभी में किए गए निवेश को भुनाते समय फिजिकल सोने की तरह ही कर लगता है।
सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड
मगर पेपर गोल्ड में निवेश के बेहद प्रचलित विकल्प सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड पर कर के नियम अलग हैं। अगर आप सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड की परिपक्वता अवधि पूरी होने यानी 8 साल तक अपने पास रखते हैं तो कोई कर नहीं देना पड़ता। उससे पहले बेचने पर फिजिकल गोल्ड की ही तरह कर लगेगा। सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को पांच साल के बाद भुनाने का विकल्प होता है। डीमैट रूप में बॉन्ड लेने पर किसी भी समय स्टॉक एक्सचेंज में बेच सकते हैं। इन्हें किसी और को देने पर लगने ले दीर्घावधि पूंजीगत लाभ कर पर इंडेक्सेशन का फायदा भी मिलता है।
सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड पर प्रत्येक वित्त वर्ष में 2.5 फीसदी ब्याज भी मिलता है। लेकिन इस पर कर वसूला जाता है। यह ब्याज अन्य स्रोतों से आय के तौर पर आपकी सकल आय में जुड़ जाएगा और कर स्लैब के हिसाब से ही आपको आयकर देना होगा। इस पर टीडीएस का प्रावधान नहीं है।
डिजिटल गोल्ड
डिजिटल गोल्ड पर भी फिजिकल गोल्ड की तरह कर लगता है। गूगल पे, पेटीएम, मोबिक्विक और फोनपे जैसे मोबाइल वॉलेट के अलावा पीसी ज्वैलर्स, कल्याण ज्वैलर्स, तनिष्क, सेनको गोल्ड एंड डायमंड जैसे कई आभूषण ब्रांड भी डिजिटल गोल्ड उपलब्ध कराते हैं। आप सीधे एमएमटीसी-पीएएमपी, ऑगमोंट गोल्ड और सेफगोल्ड से भी न्यूनतम 1 रुपये का डिजिटल गोल्ड खरीद सकते हैं।