पिछले कुछ दिनों में आतंकवाद को लेकर जितनी चर्चा हुई है, शायद ही उतनी चर्चा किसी दूसरे मुद्दे को लेकर हुई हो।
मुंबई में हुए आतंकी हमलों में कई लोगों की जान गई और इससे उनके परिवार वालों को बड़ा सदमा भी लगा है। इस हमले को लेकर लोगों में जितना भय और आक्रोश है, वह तो धीरे धीरे शांत हो जाएगा पर अब समय आ गया है कि वास्तविकता का सामना किया जाए। कई ऐसे परिवार होंगे, जिनका कोई महत्वपूर्ण सदस्य इस हमले में मारा गया होगा।
वर्ष 2006 में ट्रेन में हुए धमाकों में भी जिन परिवारों ने अपने किसी सदस्य को खोया था उन्हें बाद में गंभीर वित्तीय संकट से जूझना पड़ा था। अगर किसी परिवार का कमाने वाला सदस्य ही न रहे, तो उस परिवार की क्या हालत होगी यह सभी समझ सकते हैं।
हालात तब और बुरे हो जाते हैं, जब इन परिवारों पर पहले से ही मकान और दूसरे ऋणों का बोझ हो। बहुत से लोगों को यह बाद में समझ में आया कि उन्होंने जो बीमा करवाया था, उसमें कोई ऐसा प्रावधान था ही नहीं, जो आतंकवाद से हुए हमलों का जोखिम उठा सके।
मुंबई हमलों में मारे गये लोगों के परिजन इसी उधेड़बुन में फंसे हैं कि उनकी जीवन बीमा पॉलिसी आतंकवाद के खिलाफ उन्हें सुरक्षा मुहैया कराती है या नहीं या फिर ऐसी दुर्घटनाओं के लिए कोई अलग पॉलिसी होती है।
सुकून पहुंचाने वाली खबर यह है कि ज्यादातर जीवन बीमा पॉलिसियों में आतंकवाद से हुए नुकसान को शामिल किया जाता है।
हालांकि अगर किसी व्यक्ति की मौत आतंकवाद के कारण होती है, तो उसे दुर्घटना से हुई मौत के लिए जो राशि तय है, वह नहीं मिलेगी।
माना कि अगर किसी व्यक्ति ने 40 लाख का बीमा करवाया है और दुर्घटना की स्थिति में अलग से 10 लाख रुपये का बीमा है, तो ऐसे में आतंकवाद से मृत्यु होने पर परिवार को 40 लाख रुपये के बीमा के तहत ही भुगतान किया जाएगा।
दुर्घटना के लिए जो अलग से 10 लाख रुपये का प्रावधान था, उसके लिए कोई भुगतान नहीं किया जाएगा। अगर कोई अलग से आतंकवाद में हुए नुकसान के लिए बीमा करवाना चाहता है, तो ऐसी स्थिति में एक इंश्योरेंस ब्रोकिंग कंपनी ने न्यू इंडिया एश्योरेंस के साथ मिलकर एक आतंकवाद बीमा पॉलिसी पेश की है।
इस पॉलिसी के जरिये 5 लाख रुपये का कवर मिलता है जिसके लिए सालाना 99 रुपये का प्रीमियम भरना पड़ता है और यह एक साल के लिए वैध है। जब भी कोई जीवन बीमा पॉलिसी खरीद रहे हों तो उसके सभी शर्तों को बारीकी से जांचना बहुत जरूरी है।
कई बीमा कंपनियां साधारण जीवन बीमा पॉलिसी में भी आतंकवाद को कवर करती हैं और यह अतिरिक्त कवर के तौर पर होता है। याद रखें कि जोखिम को टालने के लिए जीवन बीमा पॉलिसी बहुत महत्वपूर्ण तरीका है।
लोगों को बस जीवन बीमा के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए बल्कि, चिकित्सा, मकान और संपत्ति के लिए भी बीमा योजनाओं पर ध्यान देना चाहिए।
हर व्यक्ति की जरूरतें अलग अलग होती हैं और इसके लिए जरूरी है कि वह इन्हें समझ कर वित्तीय जोखिम से बचने के लिए बीमा योजनाओं का चुनाव करे। सही चुनाव से ही आगे जाकर जोखिम कम होता है।
संपत्ति का बीमा कराने से संपत्ति को हुए किसी तरह के नुकसान की भरपाई की जाती है, जैसा हमनें ताज और ओबरॉय होटलों के मामले में देखा। इन बीमा पॉलिसियों में लोगों को हुए नुकसान को भी कवर किया जाता है, जैसे कि अगर होटल परिसर में ही मेहमानों और दूसरे लोगों की मौत हुई हो या फिर उन्हें चोट पहुंची हो।
ऐसे ही बीमा विकल्प मकान मालिकों के लिए भी उपलब्ध हैं। आपको कुछ और बातों का ध्यान रखने की जरूरत है। जैसे कि आपकी बीमा पॉलिसियों की जानकारी आपके परिवार वालों को हो।
यानी उन्हें पता होना चाहिए कि वह पॉलिसी किस तरह की है, किन स्थितियों में कवरेज मिल सकता है और अगर क्लेम करना हो तो क्या करना चाहिए।
इसके लिए जरूरी है कि परिवार में सभी लोगों को बीमा पॉलिसियों के बारे में पूरी जानकारी हो। साथ ही हर पॉलिसी के तहत क्या क्या फायदे हैं इसके बारे में भी संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए। साथ ही सभी पॉलिसियों से जुड़े कागजात को सहेज कर रखें ताकि जरूरत पड़ने पर ज्यादा भागदौड़ न करनी पड़े।
एक तो परिवार में किसी व्यक्ति की मौत होने पर पहले ही दुख का पहाड़ टूटा होता है और अगर ऐसे में वित्तीय मोर्चों पर भी माथा पच्ची करनी पड़े या फिर भाग दौड़ करनी पड़े तो परेशानी और बढ़ जाती है। जहां तक सेटलमेंट की प्रक्रिया का सवाल है तो क्लेम करने की प्रक्रिया काफी सरल होती है।
मुंबई जैसी आतंकवादी घटनाओं के बाद बीमा कंपनियां ने अपने नियमों में बदलाव किया है और इसे थोड़ा सरल बनाया है। क्लेम के लिए जल्द से जल्द भुगतान करने की व्यवस्था होती है।
जहां दूसरी बीमा योजनाओं में व्यक्ति की मौत के बाद जांच पड़ताल की लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है वहीं इस मामले में प्रक्रिया थोड़ी आसान है।
यहां किसी खास जांच की जरूरत नहीं होती है। मृत्यु के प्रमाणपत्र को लेकर भी आतंकी हमले में मारे गए लोगों के लिए रियायतें हैं।
पुलिस की रिपोर्ट या फिर पोस्टमार्टम की रिपोर्ट को भी मृत्यु प्रमाणपत्र के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। वहीं अगर सरकार या फिर नगर निगम के रिकॉर्ड में किसी की मृत्यु की पुष्टि हो रही हो तो वह भी काफी है।
क्लेम की प्रक्रिया में नहीं हैं दाव पेंच
क्लेम के लिए दूसरी बीमा पॉलिसियों की तरह विशेष जांच पड़ताल की कोई जरूरत नहीं
जहां जरूरी हो, वहां दोहरे दुर्घटना बीमा का फायदा भी मिलेगा
सरकार या नगर निगम के किसी भी रिकॉर्ड में आतंकवादी हमले के कारण हुई मौत का उल्लेख हो, तो उसे ही मृत्यु का प्रमाणपत्र समझ लिया जाएगा
अगर मृत्यु का वास्तविक प्रमाणपत्र उपलब्ध न हो, तो पुलिस रिपोर्ट या फिर पोस्टमार्टम की रिपोर्ट भी मान्य होगी