इस साल जनवरी से मार्च के बीच मकानों की बिक्री खासी तेजी से हुई मगर उसके बाद कोरोनावायरस की दूसरी लहर ने सब कुछ बंद करा दिया और अप्रैल-जून तिमाही में बिक्री भी लगभग ठप हो गई। जून के बाद फिर हलचल दिखी है और रिहायशी संपत्तियों की मांग बढ़ रही है। इसलिए जो अपने रहने के लिए मकान खरीदना चाहते हैं, उनके लिए सौदा पक्का करने का यही सही समय है क्योंकि देर करने से खास फायदा होता नहीं दिख रहा है।
लौट रही मांग
सूचना प्रौद्योगिकी जैसे कुछ क्षेत्रों में कर्मचारियों को पिछले वित्त वर्ष के दौरान भी अच्छा बोनस मिला था और वेतन में बढ़ोतरी भी बढिय़ा रही थी। चालू वित्त वर्ष के दौरान अर्थव्यवस्था में 8.5 से 10 फीसदी का इजाफा होने के अनुमान भी लगाए जा रहे हैं, जिससे लोगों की खरीदारी की क्षमता और भी बढ़ सकती है।
यह भी माना जा रहा है कि हाइब्रिड वर्क मॉडल यानी कुछ दिन दफ्तर और बाकी दिन घर से ही काम करने का मॉडल आगे भी चलता रहेगा। उसे देखकर वे कर्मचारी अपना मकान खरीदने की सोचने लगे हैं, जो दफ्तर से करीब होने की वजह से अभी महंगे किराये के मकान में रह रहे हैं। ऐसे लोग दफ्तर से दूर सस्ते मकान की तलाश कर रहे हैं। कुछ लोग बड़े घर में जा रहे हैं क्योंकि उन्हें घर के एक कमरे में ही दफ्तर बनाना है। प्रॉपटाइगर डॉट कॉम के समूह मुख्य परिचालन अधिकारी मणि रंगराजन कहते हैं, ‘खरीदारों में करीब 35-40 फीसदी वे लोग हैं, जो मौजूदा घर से बड़ा घर खरीदना चाहते हैं।’
खरीद का सही वक्त
रियल एस्टेट में कीमतें गिर चुकी हैं, ठहरी हुई हैं या पिछले करीब आठ साल से उनमें बमुश्किल 2-3 फीसदी सालाना का इजाफा हो रहा है। इतनी लंबी सुस्ती के बाद कीमतें और गिरने की गुंजाइश नहीं के बराबर है।
कुछ बड़े डेवलपरों ने पहले ही कीमतें बढ़ा दी हैं। इंडिया सॉदबीज इंटरनैशनल रियल्टी के मुख्य कार्य अधिकारी अमित गोयल कहते हैं, ‘जिंस के दाम चढ़ चुके हैं, जिससे डेवलपरों के लिए भी लागत बढ़ रही है। जो भी नई परियोजना आएगी, उसकी लागत बढ़ी हुई ही होगी, इसलिए कीमत भी ज्यादा होगी।’
पिछले कुछ समय से खरीदार भी रेडी-टु-मूव जायदाद पर जोर देने लगे हैं। गोयल बताते हैं, ‘मुंबई, दिल्ली जैसे बड़े बाजारों में ऐसे बिना बिके मकानों की संख्या बहुत कम रह गई है।’
अगर मांग ठीकठाक तरीके से बढ़ती है तो कीमतें भी चढ़ सकती हैं। स्क्वैर याड्र्स के प्रिंसिपल पार्टनर और निदेशक (बिक्री) कपिल मल्होत्रा कहते हैं, ‘मांग सामान्य होने के साथ ही डेवलपर बचे हुए वित्त वर्ष के दौरान कीमतों में 3 से 8 फीसदी की वृद्घि कर सकते हैं।’
आवास ऋण की दरें भी 6.65 फीसदी से शुरू हो रही हैं, जो पिछले कई साल में पहली बार देखी गई हैं। महाराष्ट्र की ही तर्ज पर पश्चिम बंगाल सरकार ने भी स्टांप शुल्क में 2 फीसदी कमी का ऐलान कर दिया है। उसने सर्कल दरों में भी 10 फीसदी की कमी की है। दिल्ली सरकार ने भी 30 सितंबर तक के लिए सर्कल दरें 20 फीसदी कम कर दी हैं। इन सब वजहों से मकान सस्ते पड़ सकते हैं।
मल्होत्रा को लगता है, ‘ए ग्रेड के डेवलपर शायद छूट नहीं दें मगर बी और सी ग्रेड के डेवलपरों से मोलभाव कर खरीदार 8-10 फीसदी छूट हासिल कर सकते हैं। मांग बढ़ेगी तो मोलभाव और छूट की यह गुंजाइश खत्म हो जाएगी।’ कुछ डेवलपर अब भी 9:91 और 20:80 जैसी भुगतान योजनाएं चला रहे हैं। लेकिन दो साल पहले के मुकाबले अब ऐसी योजनाएं बहुत कम हैं।
बेंगलूरु, हैदराबाद जैसे शहरों में कुछ सूक्ष्म बाजार उभरे हैं, जहां दाम आकर्षक हैं। रंगराजन कहते हैं, ‘ज्यादातर बड़े शहरों में मेट्रो आने वाली है, इसलिए वहां बाहरी इलाकों में मकान खरीदना भी सही है।’
मगर रखें ध्यान
अपने रहने के लिए मकान तभी खरीदें, जब आपको लगे कि आपकी आय को खतरा नहीं है। साथ ही कुछ और पहलू भी हैं। सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकार एवं फिडुशियरीज के संस्थापक अविनाश लूथरिया इन पहलुओं के बारे में कहते हैं, ‘यह निश्चित हो कि आपको उस शहर और इलाके में कम से कम 10 साल रहना है वरना मकान खरीदने का इरादा टाल दीजिए और अपनी बचत कहीं और लगा दीजिए। एक बार खरीदने और फिर बेचने में आपको मकान की कीमत के 8-10 फीसदी के बराबर खर्च करना पड़ जाएगा। इतना खर्च करना समझदारी तभी कहलाएगा, जब आप उसमें लंबे अरसे तक रहें।’
महामारी की तीसरी लहर की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। अगर घर किसी एक व्यक्ति की ही कमाई से चलता है और डाउन पेमेंट के लिए रकम (मकान की कीमत की करीब 20 फीसदी) भी जुटानी है तो कम से कम 24 महीने के घर खर्च तथा मासिक किस्त के बराबर रकम खाते में रहनी चाहिए ताकि नौकरी जाने पर दिक्कत नहीं हो। दोहरी आय वाले परिवार में 24 महीने की ईएमआई के बराबर रकम काफी होगी।
